चारबेत गायन शैली
चारबेत गायन
राजस्थान में चारबेत गायन शैली का प्रमुख केन्द्र टोंक है। यह गायन शैली अफगानिस्तान से से मुरादाबाद होते हुए टोंक पहुंची। इसे फौजी राग भी कहते है। कव्वाली में गायक हाथ से ताली देकर गाते हैं, किंतु चारबेत गायक परम्परागत वाद्य, डफ (ढप) बजाकर कव्वाली क भांति भावावेश एवं पूरे जोश के साथ घुटनों के बल खड़े होकर गीत गाते है। कुछ गायक ऊंची कूद लेकर डफ को उछालते हुए उसे बजाते है। नायक पहले एक बंद गाता है और उसके सहयोगी पुनरावृत्ति करते है। पठानी मूल की इस प्रधान संगीत विधा में पहले गायन पश्तो में होता था। अब भारत में इसका प्रचलन लोक भाषा में भी किया जाने लगा है।
टोंक में चारबेत प्रथम नवाब अमीर खां के समय में आई थी।
राजस्थान में चारबेत गायन शैली का प्रमुख केन्द्र टोंक है। यह गायन शैली अफगानिस्तान से से मुरादाबाद होते हुए टोंक पहुंची। इसे फौजी राग भी कहते है। कव्वाली में गायक हाथ से ताली देकर गाते हैं, किंतु चारबेत गायक परम्परागत वाद्य, डफ (ढप) बजाकर कव्वाली क भांति भावावेश एवं पूरे जोश के साथ घुटनों के बल खड़े होकर गीत गाते है। कुछ गायक ऊंची कूद लेकर डफ को उछालते हुए उसे बजाते है। नायक पहले एक बंद गाता है और उसके सहयोगी पुनरावृत्ति करते है। पठानी मूल की इस प्रधान संगीत विधा में पहले गायन पश्तो में होता था। अब भारत में इसका प्रचलन लोक भाषा में भी किया जाने लगा है।
टोंक में चारबेत प्रथम नवाब अमीर खां के समय में आई थी।
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