स्व सृष्टि निर्मात्री


देखो श्रवणेन्द्री ऐसी,
अभिमन्यु की मति ऐसी,
स्व जननी की निन्द्रा से,

चिरायु न पा सका ।
श्रवण किया चक्रव्यूह भेदन का,
मातृगर्भ में ही अरिमर्दन का,
जननी अनभिज्ञ रह गई,
गर्भस्थ शिशु की जिज्ञासा
बिन सुनी रह गई।
जाग्रत न हुआ जननी को
चक्रव्यूह भेदन श्रवण है अधूरा
गर्भस्थ शिशु श्रवण न रहा अधूरा
तभी अभिमन्यु चिरायु न पा सका
लगा यह सर्वथा सत्य है
जननी श्रवण मन्थन सत्य है
प्रथम पाठशाला
बाकी सब मिथ्या भ्रम है
प्रथम स्वाध्याय गर्भस्थ शिशु का
आत्ममन्थन स्व जननी का हो
फलित होगा तब मात्
प्रकट सृष्टि मे जन्मेगा तब तात् ।
कवि-
 राकेश सिंह राजपूत

Post a Comment

0 Comments

Close Menu