History
होमरूल लीग आन्दोलन
- बाल गंगाधर तिलक 16 जून 1914 को मंडालय जेल ‘बर्मा’ से रिहा हुए।
- 1893 में एनी बेसेंट भारत आई थी उद्देश्य था ‘थियो-सॉफिकल सोसायटी’ के लिए काम करना। उन्होंने मद्रास के एक उपनगर अडियार में अपना दफ्तर खोला और 1907 से ब्रह्मविद्या ‘थियोसॉफी’ का प्रचार करने लगी।
- 1914 में एनी बेसेंट ने अपनी गतिविधियों का दायरा बढाने का निर्णय किया और ‘आयरलैंड की होमरूल लीग’ की तरह भारत में भी स्वशासन की मांग को लेकर आंदोलन चलाने की योजना बनाई। उन्हें लगा कि इसके लिए कांग्रेस की अनुमति और गरमप्रथी आंदोलनकारियों का सहयोग लेना जरूरी है। गरमपंथियों का सहयोग पाने के लिए उन्हें कांग्रेस में शामिल करना जरूरी था।
- 1915 के शुरू में एनी बेसेंट ने दो अखबारों- न्यू इंडिया, और कामनवील ‘2 फरवरी 1914’ के माध्यम से आन्दोलन छेड दिया। जन सभाऐं और सम्मेलन आयोजित किये।
- उनकी मांग थी कि जिस तरह से गोरे उपनिवेशों में वहां की जनता को अपनी सरकार बनाने का अधिकार दिया गया है, भारतीय जनता को भी स्वशासन का अधिकार मिले।
- दिसम्बर 1915 में कांग्रेस का वार्षिक बंबई अधिवेशन हुआ और तिलक तथा एनी बेसेंट के प्रयासों को सफलता मिली।
- 3 मई 1915 को राष्ट्रवादियों के पूना सम्मेलन में होमरूल लीग की स्थापना का प्रश्न उठाया गया।
- मेहता एवं गोखले कांग्रेस में तिलक की वापसी के सख्त विरोधी थे। कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन 1914 में श्रीमती बेसेंट के प्रयासों के बावजूद कांग्रेस का दरवाजा तिलक एवं अन्य राष्ट्रवादियों के लिए नही खुल सका। स्पष्ट है कि कांग्रेस नेतृत्व किसी आन्दोलन के पक्ष में नही था।
- 23 व 24 दिसंबर 1915 को तिलक ने बंबई, मध्य प्रांत एवं बरार के राष्ट्रवादियों का एक सम्मेलन पूना में बुलाया।
- सम्मेलन ने होमरूल लीग की स्थापना के औचित्य पर विचार करने के लिए 15 सदस्यों की एक समिति गठित की जिसकी रिपोर्ट राष्ट्रवादियों के बेलगांव सम्मेलन ‘27-28 अप्रैल 1916’ में पेष की गई। रिपोर्ट में लीग की स्थापना पर जोर दिया गया था।
- 28 अप्रैल 1916 को तिलक ने अपनी इंडियन होमरूल लीग की स्थापना कर दी।
- इस लीग के अध्यक्ष जोसेफ बैपतिस्ता, सचिव एन सी केलकर और जी एस खापर्डे, वी एस मुंजे, आर पी करंदीकर आदि समिति के सदस्य चुने गए थे।
- तिलक लीग के सर्वमान्य नेता थे, लेकिन उन्होंने कोई पद नही स्वीकार किया।
- वही दूसरे होमरूल लीग की स्थापना 3 दिसंबर 1916 को श्रीमती एनी बेसेंट ने अड्यार ‘मद्रास’ में की।
- जमनादास द्वारकादास, शंकरलाल बैंकर और इंदुलाल यागनिक ने बंबई से एक अखबार ‘यंग इंडिया’ का प्रकाशन किया।
- स्वराज का अर्थ:- ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्थानीय, प्रांतीय एवं केन्द्रीय स्तर पर उत्तरदायी शासन एवं प्रशासन की अधिकाधिक व्यवस्था की जाए, जैसी गोरों द्वारा शासित डोमिनियन दर्जा प्राप्त अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में थी।
- आन्दोलन का विस्तार, संगठन एवं सामाजिक आधारः-
- तिलक द्वारा स्थापित लीग का भौगोलिक स्वरूप क्षेत्रीय था। महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत एवं बरार में उसकी छः शाखाएं थी जो पूना स्थित केन्द्रीय मुख्यालय के प्रभावकारी नियंत्रण में कार्य करती थी।
- लीग की सदस्य संख्या जो नवंबर 1916 में मात्र 1,000 थी, वह बढकर अप्रैल 1917 में 14,000 और 1918 के शुरू में 32,000 तक पहुंच गई।
- श्रीमती बीसेंट द्वारा स्थापित लीग का भौगोलिक स्वरूप अखिल भारतीय था। श्रीमती बीसेंट लीग की अध्यक्षा थी। जॉर्ज अरूंडेल संगठन मंत्री-सचिव
- प्रसिद्ध वकील रामास्वामी अय्यर महासचिव, बी पी वाडिया कोशाध्यक्ष बनाए गए थे।
- पूरे देश में लीग की करीब 200 ‘132 अकेले मद्रास में ही’ शाखाऐं थी, जिन पर अद्यार केन्द्रीय मुख्यालय का नाम मात्र का नियंत्रण था।
- लीग की शाखाएं प्रमुख नगरों में खोली गई यथा बंबई, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, अहमदनगर, कालीकट, मद्रास, पटना, गया, मथुरा आदि।
- अपने चरमोत्कर्ष काल ‘दिसंबर 1917’ में लीग की सदस्य संख्या 27,000 थी।
- सदस्यों में मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल, खलीकुज्जमां, तेज बहादुर सप्रू, सी वाई चिन्तामणि ‘संयुक्त प्रांत’, सी पी रामास्वामी अय्यर, सुब्रह्मनिया अय्यर ‘मद्रास’, हसन इमाम, मजहरूल हक ‘बिहार’, शंकरलाल बैंकर, यमनादास, द्वारकादास, मुहम्मद अली जिन्ना, ‘बंबई’ तथा बी चक्रवर्ती एवं जितेन्द्र लाल बनर्जी ‘बंगाल’ के नाम विषेश रूप से उल्लेखनीय है।
- तिलक के शब्दों में ‘‘ भारत उस बेटे की तरह हैं, जो अब जवान हो चुका है। समय का तकाजा हैं कि बाप या पालक इस बेटे को उसका वाजिब हक दे दे। भारतीय जनता को अब हक लेना ही होगा। उन्हें इसका पूरा अधिकार है।’’
- तिलक ने क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा और भाषाई राज्यों की मांग को ‘स्वराज’ की मांग से जोड दिया।
- होमरूल की मांग पूरी तरह धर्मनिरपेक्षता पर आधारित थी।
- तिलक की ओर से मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में वकीलों की एक पूरी टीम ने मुकद्दमा लडा।
- नवंबर 1916 में जब, एनी बेसेंट पर बरार व मध्य प्रांत में जाने पर प्रतिबंध लगाया।
- 1917 में तिलक पर पंजाब और दिल्ली जाने पर प्रतिबंध लगाया गया। ‘विपिनचंद्र पाल पर भी’
- गोखले की ‘सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसाइटी’ के सदस्यों को लीग का सदस्य बनने की इजाजत नही थी, लेकिन उन्होंने जनता के बीच भाषण देकर और परचे बांटकर ‘होमरूल’ आन्दोलन का समर्थन किया।
- स्वदेशी आन्दोलन की भांति इस आन्दोलन में भी स्त्रियों ने भाग लिया जो कि भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का सूचक है।
- मद्रास सरकार ने जून 1917 में एनी बेसेंट, जॉर्ज अरूंडेल, तथा वी पी वाडिया को गिरफ्तार कर लिया।
- सर एस सुबह्मण्यम अय्यर ने सरकारी उपाधि ‘सर’ नाइटहुड अस्वीकार कर दी।
- मदन मोहन मालवीय, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, और मुहम्मद अली जिन्ना जैसे तमाम नरमपंथी नेता, जो अब तक लीग में शामिल नही थे, इसमें शामिल हो गये।
- 28 जुलाई 1917 को कांग्रेस की एक बैठक में तिलक ने कहा कि यदि सरकार इन लोगों को तुरंत रिहा नही करती है, तो शांतिपूर्ण असहयोग आन्दोलन चलाया जाए।
- बरार और मद्रास की कांग्रेस समितियां तो इस पर तुरंत कार्यवाई के पक्ष में थी, लेकिन बाकी समितियां कोई निर्णय करने के पहले थोडा इंतजार करने के पक्ष में थी।
- गांधीजी के कहने पर शंकरलाल बैंकर और जमनादास, द्वारकादास ने ऐसे एक हजार लोगों के दस्तखत इकठ्टे किए जो सरकारी आदेशों की अवहेलना करके जूलूस की शक्ल में जाकर एनी बेसेंट से मिलना चाहते थे।
- अभ्युदय ‘इलाहाबाद’ ने 24 मार्च 1917 को एक लेख में लिखा ‘रूसी क्रांति हमें इसका विश्वास दिलाती है कि दुनिया में कोई भी शक्ति नही है, जिसे स्फूर्तिदायी और जीवनदायी राष्ट्रवाद पराजित न कर सकता हो।‘
- भारत मंत्री मांटेग्यू ने 20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश संसद में अपनी ऐतिहासिक घोषणा में कहा कि भारत में ब्रिटिश शासन का लक्ष्य स्वशासित संस्थाओं का क्रमिक विकास है ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में भारत में क्रमश: उत्तरदायी शासन स्थापित किया जा सके।
- कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन 1917 में श्रीमती बेसेंट को अध्यक्ष बनाया गया जो उनकी बढती लोकप्रियता और भारतीय राष्ट्रवाद का परिचायक थी।
- भारत में ब्रिटिश शासन का लक्ष्य स्वशासित संस्थाओं का क्रमिक विकास है ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में भारत में क्रमश: उत्तरदायी शासन स्थापित किया जा सके।
- कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन 1917 में श्रीमती बेसेंट को अध्यक्ष बनाया गया जो उनकी बढती लोकप्रियता और भारतीय राष्ट्रवाद का परिचायक थी।
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