Human Loyalty, Losing Human

मानव महत्त्वकांक्षा से हारता मानव

एक हकीकत ऐसी देखी
जानकर अनजान बनता नर
एक भय का आतंक पाले  जीता नर

संसार में जब भी कोई विचारधारा, धर्म या कोई संस्था जन्म लेती है वह प्रारम्भ में बहुत ही अच्छी होती है परन्तु उन को अपनाने वालों की संख्या ज्यों-ज्यों बढती जाती है त्यों-त्यों महत्त्वाकांक्षी लोग अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिये षडयंत्र रचते है। जो दयालु प्रवृत्ति के होते हैं, वे जीवन के सफ़र में पिछड़ जाते हैं। इन्हीं कारणों से जातिवाद, सामंतवाद, अमीर-गरीब का फासला पैदा हो जाता है।
लोग वर्तमान में जीते हैं, भूतकाल के परिणामों से अनभिज्ञ तथा भविष्य के खतरों से अनजान होकर जीतें है। युवा और देश की बागडोर संभाले जो लोग है उनकी एक अलग दुनिया है। 

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