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तकनीक में बढ़ती मानवीय संवेदना
तकनीक में बढ़ती मानवीय संवेदना
- प्रकृति के जीवों में सर्वाधिक संवेदनाएं मानवीय संवेदनाएं होती है, किंतु मानव ने अपने ही ज्ञान से खुद मानव संतति के पतन की राह चुन ली है। यह सच है जिस प्रकार मानव ने जबसे तकनीक पर निर्भरता बढ़ाई है तबसे मानव में संवेदनाएं कम हुई और वही मानव तकनीक में इन्हीं संवेदनाओं बढ़ोतरी के लिए प्रयासरत है। हम इस तकनीक को किसके लिए विकसित कर रहें है मानव के लिए किंतु यह कभी नहीं सोचा जहां मानव शक्ति का बाहुल्य है वहां यह तकनीक कितनी सफल और कितनों को रोज़गारहीन बनाने में मददगार होगी। यह सत्य है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है, किंतु यह कतई सत्य नहीं कि तकनीक को मानव जीवन में बडे़ पैमाने पर लागू करना सही है, लेकिन जब तक उन लोगों को रोजगार का माध्यम उपलब्ध नहीं होता तब तक तकनीक मानव जीवन में सीमित उपयोग में लिया जाये तो मानवीय संवेदनाओं को जिन्दा रखा जा सकता है। कभी नहीं सोचा की तकनीक मानव के लिए कितनी हानिकारक है और जिसमें रोबोटिक तकनीक।
- एक सुखद भविष्य की कामना प्रकृति के हर जीव में पाई जाती है, किंतु मानव में यह अतिवादी रूप में, जो उसे अपने भविष्य के बारे में कुछ ज्यादा ही चिंतित करती नजर आती है। मानव ने कभी अपने सुखों के लिए प्रकृति का चिंतन नहीं किया है, शायद कुछ अंशों में भारतीय संस्कृति में इसके अंश मिलते हैं, पर वक्त की अंधी दौड़ में वे भी इस पर दृढ़ नहीं रह सके और तकनीकी दौड़ में शामिल हो गये।
- यदि तकनीक विकास के मानव व प्रकृति के परिवेश पर पड़ने वाले प्रभावों का चिंतन करें तो हमने सिर्फ खोया है तो कुछ अंश ही है। मानव निर्माता हो सकता है किंतु प्रकृति से ज्यादा परिपक्व नहीं। इस तकनीकी ज्ञान से जो संतुष्ट है वे एकमात्र पूंजीवादी व्यवस्था के सम्पन्न परिवार है। वे ही तकनीक के उच्च विकास का समर्थन करते हैं। शायद वे भूल रहे हैं जब प्रकृति और सुविधाविहीन (मध्यमवर्ग) वर्ग ही नहीं रहेगा तो उनका होना कोई मायने नहीं रख पायेगा। यदि भारतीय परिवेश में इस तकनीकी ज्ञान की चर्चा करें तो अधिकतर असंतुष्ट ही नजर आते है, क्योंकि कई तो ऐसे है जो कोई नई तकनीक का उपयोग तब करने में सक्षम होते है जब उस तकनीक की नई विकसित तकनीक आ जाती है जो काफी महंगी होती है और वे उसका उपयोग नहीं कर सकते है।
- जबसे तकनीक का विकास हुआ है, प्रकृति ने अपने परिवेश से कुछ न कुछ खोया अवश्य है। मानव ने प्रकृति के उस पक्ष का ही संरक्षण अधिक किया है जो उसके (उच्चवर्ग) आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और उसकी प्रतिष्ठा को बढ़ाता हो। इसके कई उदाहरण हमारे समाने जीवंत है जैसे- मानव ने अपने स्वार्थ के खातिर उस जीव का संरक्षण किया, जो उसे सर्वाधिक आर्थिक लाभ दे सकता हो और उनमें बाघ, शेर की शरणस्थलियों का अधिक संरक्षण दिया है और जो जीव उनके लिए अधिक लाभकारी नहीं था उसे लगभग नकार दिया गया। उन जीवों के समाप्त होने की उन्हें तनिक भी दुःख नहीं है। इन जीवों में गौवंश का बैल मानव सभ्यता के विकास में बड़ा सहायक था और मानव परिवहन और भार वहन की रूढ़ि रहा था। ऊंट और गधे को भी कोई संरक्षण नहीं मिल रहा है क्योंकि वे किसान और मजदूर के सहायक थे वे भी अब तकनीक से मिल रही प्रतिस्पर्द्धा के कारण उपेक्षित हो गये। अतः उनके स्थान पर टैªक्टर और आधुनिक मशीनों ले लिया हैै।
- यदि इन जीवों का मानव जीवन एवं मानव विकास पथ में उपयोग देखें तो संरक्षण प्राप्त जीवों से कई गुना अधिक है, पर समय के फेर ने और मानवीय संवेदनाओं के पतन से इनको कभी भी संरक्षण नहीं मिल पाया और जिस वर्ग का यह सहयोगी था उसने भी तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा न कर सकने के कारण इनको त्यागना प्रारम्भ कर दिया। ये जीव उस किसान और मजदूर के कृषि कार्य एवं भार वहन में पूर्ण रूप से सहयोगी था। इनको त्यागना इनके लिए तो हानिकारक तो था ही लेकिन खुद भी समय और बढ़ती तकनीक के साथ पिछड़ गया। यह पिछड़न अभी नजर नहीं आयेगी लेकिन जब तकनीक अपने पूर्ण रंगत में होगी, तब मानव खुद को ठगा सा महसूस करेगा। कोई समय था जब भोर काल होता था तो किसान अपने खेतों में हल और बैलों के साथ सूर्योदय की लालिमा को नमन करता था। अब तकनीक होने से वह मनोरम दृश्य देखने को नहीं मिलता है।
- यही नहीं अब मानव में युवा, मजदूर और किसानों के शारीरिक श्रम की पूर्णतः उपेक्षा होने लगी है जोंकि तकनीक को मिल रहा बढ़ावा का परिणाम है। मानव श्रम की अनदेखी करने आने वाले समय में चिंता का विषय बन कर उभरेगा, क्योंकि अभी मानव श्रम की उपेक्षा अधिकतर आर्थिक रूप से पिछड़े देशों में ही देखने को मिल रहा है। यह सबसे अधिक भारत जैसे विकासशील देश में है। एक बड़ा कारण यह भी है कि मानव-मानव पर विश्वास नहीं कर रहा है। आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्ग मानव की अपेक्षा तकनीक पर अधिक विश्वास करने लगा है, लेकिन यह वर्ग भूल गया कि इस उपेक्षित शारीरिक श्रम के बल पर ही सम्पन्न वर्ग मजबूती आज खड़ा हुआ है। यही किसान, मजदूर और युवा शक्ति थी जिसने हर कठिन बाधा को पार कर उस वर्ग के लिए नये मुकाम रचे। पर आज वही वर्ग इस वर्ग की उपेक्षा कर रहा है। जिससे मानवीय संवेदनाओं का पतन और तकनीकी संवेदनाओं का बढ़ावा मिल रहा है। जब काम नहीं मिलता तो यही ऊर्जा अपराध की ओर प्रवृत्त हो जाती है।
- यह सत्य है कि अब तक सम्पूर्ण मानव समुदाय को अच्छा रोज़गार कोई भी शासन व्यवस्था नहीं दे सकी, तो फिर तकनीक से हम यह आशा क्यूं लगाये है कि वह व्यक्ति को रोज़गार उपलब्ध करायेगी। भलाई इसी में है कि मध्यम वर्ग को अपनी मानवीय संवेदनाओें को जिन्दा रखते हुए एक-दूजे को अपना सहयोगी बनकर कार्य करना चाहिए। नहीं तो हश्र उन जीवों की तरह होगा। उच्च वर्ग हमें तब तक पाले हुए है जब तक उनको तकनीक में पूर्णता प्राप्त नहीं हो जाती है। जब तकनीक पूर्णता को प्राप्त होगी वही तकनीक मध्यम वर्ग को पतन की राह में अकेला छोड़ देगी।
- निष्कर्ष रूप में यह सत्य है कि मानव समय और तकनीक के विकास से इतना संवेदनाहीन हो गया कि पूर्व काल की तरह मानव-मानव में भेद फिर गहरा होता जा रहा है एक ओर जहां मानव विकास की बातें की जाती है दूसरी ओर वहीं मानव उपेक्षित हो रहा है। उच्च वर्ग तकनीक पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है और मानव श्रम से कम। यदि आर्थिक सम्पन्न वर्ग जमीनी स्तर पर आकर देखें तो शायद उन्हें यह फर्क महसूस हो सकता है, लेकिन उनके पास इन सब बातों के लिए समय नहीं है। वह भूल रहा इस आर्थिक विकास में इस वर्ग की बहुत बड़ी भूमिका रही है। हमें तकनीक को अपनाना चाहिए किंतु समझदारी से जो प्रकृति के जीवों और मानव श्रम के लिए घातक न बन सके। तभी हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ पर्यावरण दे सकते है।
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