अब कौन कहेगा?


कैसे मिटेगा यह द्वेष भाव,
कैसे मिटेगा यह सदियों का अभिशाप,
एक कहता हमारे पूर्वज शोषित थे,
एक कहता हमें क्या जागीरें मिली,
जो आज राजा-सामन्त-पुरोहितों की श्रेणी में रखा,
हम सवर्ण गरीब हैं,
पहले भी थे उपेक्षित,
अब भी हैं उपेक्षित लोकतंत्र में,
भेदभाव एक जाति,
एक परिवार में भी होता है,
हमें आपसी द्वेष मिटाने होंगे,
जाति, धर्म के घाव मिटाने होंगे,
एक-दूजें के पूर्व में क्या हुआ,
इस बोझ को अब न वहन करेंगे हम,
एक नया भारत का सृजन करेंगे हम,
माना जाति पहचान थी मानव की,
जैसे आज एक अधिकारी वर्ग में,
क्या यहां नहीं होता वर्ग भेद,
चाहे धर्म, जात कोई भी हो,
सात दशक हो गये आज़ाद हुए,
पर क्या बदला,
वही रूढ़ियाँ मजबूत हुई,
अब आरक्षित वर्ग का बुद्धिवादी,
महत्त्वाकांक्षी बन,
अपने वर्ग के गरीब को,
आगे न आने देता,
पैसे के बल और स्वार्थों की,
 ..........

Rakesh Singh Rajput


Post a Comment

0 Comments

Close Menu