Rajasthan GK
राजस्थान में सामाजिक सुधार
सतीप्रथा
- सर्वप्रथम सती प्रथा को बूंदी में 1822 ई. गैर कानूनी घोषित। सर्वप्रथम इस प्रथा को रोकने हेतु मुहम्मद तुगलक ने आदेश जारी किये थे।
- 1829 ई. को गवर्नर जनरल विलियम बैटिक द्वारा सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया।
- 1830 ई. अलवर में गैर कानूनी, 1844 ई. में मारवाड़ रियासत में, 1848 ई. में, जयपुर में, 1861 ई. में मेवाड़ में प्रतिबन्धित।
- राजा राममोहन राय के प्रयासों से सतीप्रथा को 1829 ई. गैर कानूनी घोषित किया गया।
- राजस्थान सती निवारण अध्योदश -1987 से लागू।
समाधि प्रथा
- किसी सिद्ध पुरूष या साधु महात्मा द्वारा जल समाधि या भू समाधि लेना।
- सर्वप्रथम जयपुर के पॉलिटिकल एजेन्ट लुडलो के प्रयासों से 1844 ईं. जयपुर में गैर कानूनी। समाधि निरोधक अधिनियम 1861 ई.।
त्याग प्रथा
- राजपूत जाति में प्रचलन, विवाह के समय चारण, भाट ढोली आदि लड़की वालों से मुंह मांगी दान-दक्षिण प्राप्त करने हेतु हठ करते, जिसे त्याग कहा जाता है।
- सर्वप्रथम 1841 ई. जोधपुर में गैर कानूनी (महाराजा मानसिंह द्वारा) घोषित।
- वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा ने इसे समाप्त करने का प्रयास किया।
- 1844 बीकानेर के रतनसिंह द्वारा प्रतिबन्धित किया गया।
डाकन प्रथा
- भील और मीणा जनजातियों में प्रचलन।
- सर्वप्रथम अप्रैल 1853 ई. महाराणा स्वरूपसिंह के समय मेवाड़ भील कोर के कमान्डेन्ट जे.सी.बुक ने खेरवाड़ा (उदयपुर) में गैर कानूनी घोषित किया।
- 1853 में मेवाड़ रेजीमेन्ट कर्नल ईडन के परामर्श पर मेवाड़ महाराणा जवानसिंह में डाकन प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया।
- नाता प्रथाः राजस्थान में नाता प्रथा एक प्रकार का पुनर्विवाह होता है। इसमें पत्नी अपने पहले वाले पति को छोड़कर किसी दूसरे पुरूष को अपना पति बनाकर उसके साथ रहने लगती। यह प्रथा अधिकांशतः जनजाति के लोगों में प्रचलित है।
डावरिया प्रथा
- रियासत कालीन राजा-महाराजाओं और जागीरदारों द्वारा अपनी लड़की के विवाह में दहेज के साथ कुंवारी कन्याएं दी जाती थी, जिन्हें डावरी या डावरिया कहा जाता था। ये जनाना महलों में सेविकाओं का जीवन व्यतीत करती थी।
दहेज प्रथा
- 1961 ई. भारत सरकार ने दहेज निरोध्क अधिनियम पारित।
दास प्रथा
- सर्वप्रथम 1832 ई. कोटा-बूंदी द्वारा रोक 1832 ई. विलियम बेंटिक ने इसे समाप्त करने हेतु रोक लगाई।
- पड़दायत-दासी को राजा उपपत्नी स्वीकार करता है।
- पासवान या खवासन- ऐसी दासी जिसे राजा हाथ पैरों में सोने के गहने पहनने का अधिकार दे दें।
बेगार प्रथा
- राजाओं सामन्तों व जागीरदारों द्वारा अपनी जनता को बिना पारिश्रमिक या कम मजदूरी देकर अध्कि मेहनत करवाना।
- ब्राह्मण तथा राजपूत जातियां इससे मुक्त।
- 1961 बेगार विरोध्ी अधिनियम पारित किया गया।
बंधुआ मजदूर प्रथा या सागड़ी प्रथा
- हाली प्रथा।
- पूंजीपति, महाजन या उच्च कुलीन लोगों से ब्याज पर पैसे लेने वाला व्यक्ति जब तक उन पैसों को चुकाता नहीं तब तक उनके घर मजदूरी करता है, 1961 सागडी निवारण अधिनियम ।
कन्या वध-
- सर्वप्रथम कोटा राज्य में 1833 ई. में गैर कानूनी घोषित, 1834 ई. को बूंदी रियासत में रोक लगाई।
- बीकानेर के रतनसिंह एवं जयपुर के सवाई जयसिंह ने इसे रोकने हेतु प्रयास (1836ई.)।
बाल विवाह
- अजमेर के हरविलास शारदा ने 1929 ई. बाल विवाह निरोध्क अधिनियम पारित किया 1 अप्रैल 1930 शारदा एक्ट सम्पूर्ण भारत में लागू (लड़की के लिए 14 वर्ष तथा लड़के के लिए 18 वर्ष)।
- जोध्पुर राज्य में वाल्टरकृत राजपूत हितकारिणी सभा के प्रयासों से यहां के पी.एम. सर प्रतापसिंह ने 1885 बाल विवाह निरोधक कानून बनाया था।
विधवा विवाह-
- ईश्वर चन्द विद्यासागर के प्रयासों से 1856 ई. विधवा पुनर्विवाह अध्निियम पारित।
- सवाई जयसिंह ने विधवाओं के पुनः विवाह पर बल दिया था।
कूकड़ी की रस्म
- आदिवासियों में विशेषतः सांसी जनजाति में यह प्रथा प्रचलित है इसमें शादी होने पर युवती को अपने चारित्रिक पवित्रता की परीक्षा देनी होती है।
देश हितैषणी सभा, उदयपुर
- 2 जुलाई 1877ई. उदयपुर में महाराणा सज्जनसिंह की अध्यक्षता में इसका गठन किया गया।
- उद्देश्यः राजपूतों की वैवाहिक समस्याओं को सुलझाना
वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा, अजमेर
- 1888-89 संस्थापक-मेवाड़ के कार्यवाहक ए.जी.जी. वाल्टर।
- उद्देश्य-राजपूतों में समाज सुधर, बहुविवाह प्रथा को समाप्त करना, टीका प्रथा को समाप्त करना
- लड़की की विवाह की आयु 14 वर्ष तथा लड़के के विवाह की आयु 18 वर्ष निर्धरित की गई।
आर्य समाज का योगदानः
- श्री चांद करण शारदा ने ‘दलितोद्धार’ नामक पुस्तक लिखी। उनकी पत्नी श्रीमती सुखदा देवी ने भी इस क्षेत्र में रचनात्मक कार्य किया।
- अजमेर के श्री हरविलास शारदा ने बाल-विवाह का घोर विरोध किया और अन्त में 1929 ई. में वे बाल-विवाह अवरोधक अधिनियम पारित करवाने में सफल रहे। यह अधिनियम ‘शारदा एक्ट’ के नाम से जाना गया।
- इसके अन्तर्गत विवाह के समय लड़के-लड़कियों की आयु क्रमशः 18 वर्ष और 14 वर्ष होनी चाहिए।
- इस विल से प्रभावित होकर जोधपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री महाराजा प्रतापसिंह ने तथा शाहपुरा स्टेट ने भी बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून बनाये।
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