चोल राजवंश



  • चोलों का प्रारंभिक इतिहास संगम युग से प्रारम्भ होता है। करिकाल ने ‘उरैयूर’ को अपनी राजधानी बनाया था।

विजयालय

  • 9वीं शताब्दी के मध्य लगभग 850 ई. में चोल शक्ति का पुनरूत्थान विजयालय ने किया। विजयालय को चोल साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक भी माना जाता है।
  • आरम्भ में चोल पल्लवों के सामन्त थे। 
  • विजयालय ने पाण्ड्य शासकों से तंजौर (तंजावुर) को छीन कर उरैयूर के स्थान पर इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। तंजौर को जीतने के उपलक्ष्य में विजयालय ने ‘नरकेसरी’ की उपाधि धारण की।

आदित्य प्रथम 871-907 

  • महत्वाकांक्षी आदित्य प्रथम ने पल्लव नरेश अपराजित के विरूद्ध युद्ध कर उसे मार डाला।

परान्तक प्रथम 907-955

  • आदित्य प्रथम के पुत्र परान्तक प्रथम को सुदूर दक्षिण में चोल सर्वोच्चता का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने मदुरा के पाण्ड्य शासक राजसिंह द्वितीय को परास्त कर ‘मुदुराईकोण्ड’ (मदुरा का विजेता) की उपाधि धारण की।
  • परान्तक को लंका पर आक्रमण में सफलता हाथ नहीं लगी परन्तु उसने बाणों व वैदुम्बों को पराजित किया।
  • इस काल की महत्वपूर्ण घटना परान्तक प्रथम तथा राष्ट्रकूट नरेश ‘कृष्ण तृतीय’ के मध्य ‘तक्कोलम्’ का युद्ध था जिसमें परान्तक बुरी तरह पराजित हुआ।

राजराज प्रथम 985-1014 

  • राजराज प्रथम (अरूमोािलवर्मन) के शासक बनने के बाद चोल राजवंश के यशस्वी युग का प्रारम्भ था। परान्तक द्वितीय (सुन्दरचोल) का पुत्र था।
राजराज की उपलब्धियाँ
  • केरल  पर आक्रमणः- राजराज प्रथम ने सर्वप्रथम केरल के राजा रविवर्मा को पराजित कर त्रिवेन्द्रम पर अधिकार कर लिया। इस विजय के उपालक्ष्य में उसने ‘काण्डलूर शालैकलमरूत’ की उपाधि ग्रहण की।
  • पाण्ड्य राज्य पर आक्रमण: पाण्ड्य शासक अमरभुजंग को पराजित कर उसे बन्दी बना लिया तथा उसकी राजधानी मदुरा पर अधिकार कर लिया।
  • श्रीलंका पर आक्रमणः- शक्तिशाली नौ सेना की सहायता से राजराज प्रथम ने श्रीलंका (सिंहलद्वीप) के शासक महिन्द पंचम को पराजित कर उसकी राजधानी अनुराधापुर को नश्ट-भ्रश्ट कर उत्तरी लंका पर अधिकार कर लिया।
  • राजराज ने अनुराधापुर के स्थान पर ‘पोलोन्नरूव’ को चोल प्रान्त की राजधानी बनाया तथा उसका नाम ‘जननाथमंगलम्’ रखा। इसने श्रीलंका में कुछ शिव मंदिरों का निर्माण भी करवाया। इसके पश्चात् राजराज ने मालदीव पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।

चालुक्यों से संघर्ष 

  • सन 973 ई. में कुर्नुल के राजा जटाचोड भीम ने वेंगी राजा दानार्णव की हत्या कर दी। इस संकट काल में राजराज ने वेंगी पर आक्रमण कर दानार्णव के पुत्र शक्तिवर्मंन को वेंगी का शासक बनाया तथा जटाचोड भीम को पराजित कर बन्दी बना लिया गया। इस प्रकार वेंगी के चालुक्य चोल नरेश का संरक्षित राज्य बन गया।
  • राजराज की इस सफलता से क्षुब्ध होकर चालुक्यों की पश्चिमी शाखा के सत्याश्रय ने वेंगी पर आक्रमण कर दिया। इस पर राजराज ने पुत्र राजेन्द्र को एक शक्तिशाली सेना के प्रधान के रूप में पश्चिमी चालुक्यों पर आक्रमण के लिए भेजा। इस सेना ने न केवल सत्याश्रय को वेंगी से हटने के लिए विवश किया बल्कि उसकी राजधानी मान्यखेत को ध्वस्त कर दिया तथा बीजापुर, हैदराबाद, रायचूर एवं दोआब पर अधिकार स्थापित कर लिया। इस अभियान में चोल सेना को अतुल धनराशि प्राप्त हुई थी।
  • इस प्रकार राजराज के साम्राज्य में तुंगभद्रा नदी का सम्पूर्ण दक्षिणी भाग, श्रीलंका तथा मालदीव का कुछ भाग शामिल था। अपनी शक्ति और पराक्रम को घोषित करने के लिए उसने चोलमार्तण्ड, राजाश्रय, राजमार्तण्ड, पाण्ड्य कुलरानि, अरिमोलि, सिंहलान्तक, तेलिगकुलकाल आदि बडी-बडी उपाधियां धारण की।
  • राजराज महान् विजेता के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी था। उसने भूमि का सर्वेक्षण करवाया जिससे कि उपजाऊ, अनुपजाऊ तथा बंजर भूमि का पता लग सके और उसी के आधार पर राज्य के उत्पादन का अनुमान लगाया जा सके।

मूल्यांकन

  • राजराज की गणना महान शासकों में की जाती है। वह शिव का परम भक्त था। उसने तंजौर में राजराजेश्वर (बृहदेश्वर) का शिव मंदिर बनाया।
  • उसने एक विष्णु मंदिर के निर्माण के साथ ही बौद्ध विहार को ग्राम दान में दिया तथा जैनधर्म को भी प्रोत्साहन प्रदान किया। इस प्रकार वह धर्म सहिष्णु शासक था।
  • अपने तीस वर्षो के शासनकाल में राजराज प्रथम ने चोल साम्राज्य को एक सुदृढ संगठन, कुशल प्रशासन एवं शक्तिशाली नौसेना दी।


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