History
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
- शचीन्द्रनाथ सान्याल की किताब ‘बंदी जीवन’ क्रांतिकारी आन्दोलन के लिए पाठ्य-पुस्तक बन गई थी। अक्टूबर 1924 में रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चटर्जी और शचींद्रनाथ सान्याल आदि क्रांतिकारी युवकों का कानपुर में एक सम्मेलन हुआ और ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन किया।
- इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड फेंकना और एक संघीय गणतंत्र ‘संयुक्त राज्य भारत’ की स्थापना करना था।
- 9 अगस्त 1925 को दस व्यक्तियों ने लखनउ के पास एक गांव काकोरी में 8 डाउन टृेन को रोक लिया और रेल विभाग का खजाना लूट लिया। यह घटना ‘काकोरी कांड’ के नाम से मशहूर है।
- अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशनसिंह और राजेन्द्र लाहिडी को फांसी दे दी गई। चंद्रशेखर आजाद फरार हो गए।
- उत्तरप्रदेश में विजय कुमार सिन्हा, शिव वर्मा और जयदेव कपूर तथा पंजाब में भगतसिंह, भगवतीचरण बोहरा और सुखदेव ने चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में एच.आर. ए. को फिर से संगठित किया।
- 9 और 10 सितंबर 1928 केा फिरोजशाह कोटला मैदान ‘दिल्ली’ में उत्तर भारत के युवा क्रांतिकारियों की एक बैठक हुई। युवा क्रांतिकारियों ने सामूहिक नेतृत्व को स्वीकारा और समाजवाद की स्थापना करने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित किया। संगठन का नाम बदलकर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ रखा गया।
- 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपतराय पर बर्बर लाठीचार्ज और उसके बाद उनकी मौत ने युवा क्रांतिकारियों को एक बार फिर व्यक्तिगत आतंकवाद और हत्या की राह को मजबूर कर दिया।
- सरकार इस समय जनता, विशेषकर मजदूरों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने के मकसद से दो विधेयक ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूटस बिल’ पास कराने की तैयारी में थी। इसके प्रति विरोध जताने के लिए भगतसिंह और बी.के. दत्त को सेन्टृल लिजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का काम सौंपा गया। बम फेंकने का उद्देश्य किसी की हत्या करना नही, बल्कि सत्ता के बहरे कानों में विरोध की आवाज पहुंचाना था।
- क्रांतिकारी जेल की अमानवीय दशाओं में सुधार के लिए अनशन कर रहे थें। इन लोगों की यह मांग थी कि उन्हें राजनीतिक बंदी माना जाए, अपराधी नहीं अनशन के 64 वें दिन 13 सितंबर को जतिनदास की मृत्यु हो गई।
- भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गई और 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
‘दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उत्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबु-ए-वतन आएगी।’
क्रांतिकारी दर्शन का प्रतिपादन
- भगतसिंह और उनके क्रांतिकारी साथयों ने पहली बार क्रांतिकारियों के समक्ष एक क्रांतिकारी दर्शन रखा। अक्टूबर 1924 में एच आर ए की संस्थापक परिषद ने जनता को सामाजिक क्रांतिकारी और साम्यवादी सिद्धांतों की शिक्षा देना, उनका प्रचार-प्रसार करने का निर्णय किया था।
- जेल की काल कोठरी में रामप्रसाद बिस्मिल ने युवकों के लाम एक संदेश भेजकर उनसे अपील की थी कि वे पिस्तौाल और रिवाल्वर रखने की इच्छा छोड दे।
- क्रांतिकारियों ने जनता को अपनी विचारधारा से अवगत कराने के लिए जो बयान या दस्तावेज ‘द फिलॉसफी ऑफ द बॉम्ब’ शीर्षक से जारी किया गया था, उसे आजाद के अनुरोध पर भगवती चरण बोहरा ने तैयार किया।
- भगतसिंह ने 1926 में पंजाब में क्रांतिकारियों के खुले संगठन ‘भारत नौजवान सभा’ के गठन में काफी मदद की- प्रमुख भूमिका निभाई इस संगठन में वह महामंत्री थे।
- इस संगठन के तत्वाधान में भगतसिंह और सुखदेव ने छात्रों के बीच खले तौर पर काम करने के लिए ‘लाहौर छात्र संघ’ का गठन किया। क्रांति का अर्थ है क्रांतिकारी बुद्धिजीवियों के नेतृत्व में समाज के शोषित, दलित व गरीब तबकों के जनांदोलन का विकास।
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