History
शेरशाह सूरी
शेरशाह सूरी 1540-45 ई.
2. दीवाने आरिज - सेना का संगठन, भर्ती, रसद
3. दीवाने रसालत - विदेशमंत्री, पत्र व्यवहार
4. दीवाने इंशा - सुल्तान के आदेश को लिखना, सूचना
दीवाने काजी - न्याय करता था
दीवाने बरीद - इसका मुखिया बरीद-ए-मुमालिक कहलाता था। राज्य के गुप्तचर विभाग और डाक व्यवस्था
प्रान्तीय प्रशासन
सरकारों (जिलों) का शासन -
परगने का शासन-
- जन्मः 1472 ई. (कानूनगो 1486 ई.) में बैजवाड़ा(होशियारपुर) में, बचपन का नाम फरीद।
- दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खां लोहानी ने उसे शेर मारने के उपलक्ष्य में ‘शेरखां’ की उपाधि दी तथा अपने पुत्र जलाल खां का संरक्षक नियुक्त किया।
- मुहम्मदशाह (बहार खां लोहानी) की मृत्यु के बाद शेरखां ने उसकी विधवा ‘दूदू बेगम’ से विवाह कर लिया।
- 1529 ई. में बंगाल के शासक नुसरतशाह को पराजित करने के उपरान्त शेरखां ने ‘हजरते-आला’ की उपाधि ग्रहण की।
- 1530 ई. में उसने चुनार के किलेदार ताजखां की विधवा ‘लाडमलिका’ से विवाह करके न केवल चुनार के शक्तिशाली किले पर अधिकार किया वरन् बहुत सम्पत्ति प्राप्त की।
- शेरखां ने दोहरिया के युद्ध (1532) में महमूद लोदी का साथ दिया था।
- 1534 में शेरखां ने सूरजगढ़ के युद्ध में बंगाल के महमूद शाह को पराजित किया।
- 29 जून 1539 में बक्सर के निकट चौसा का युद्ध हुआ, जिसमें शेरशाह विजयी हुआ।
- इस विजय के फलस्वरूप शेरखां ने ‘शेरशाह’ की उपाधि धारण की तथा अपने नाम का खुतबा पढ़वाने तथा सिक्का ढ़लवाने का आदेश दिया।
- 17 मई 1540 ई. में कन्नौज (बिलग्राम) के युद्ध में हुमायूं पुनः परास्त हो गया।
- सबसे पहले पश्च मोत्तर सीमा पर स्थित मुगलों के वफादार गक्खरों पर आक्रमण किया।
- शेरशाह ने अपनी उत्तरी-पष्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए वहां ‘रोहतासगढ़’ नामक एक सुदृढ़ किला बनवाया और हैबत खां तथा खवास खां के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना को नियत किया।
- 1542 ई. में मालवा विजय
- 1543 ई. में रायसीन के राजपूत शासक पूरनमल को विश्वासघात से मार डाला। इस घटना से कुतुबखां ने आत्महत्या कर ली।
- 1544 ई. में मारवाड़ के मालदेव
- जयता और कुप्पा पर विश्वासघात का आरोप
- 1545 ई. में शेरशाह ने कलिन्जर पर अपना अन्तिम आक्रमण किया जिसका शासक कीरतसिंह था।
- रीवां के राजा वीरभान बघेला को शरण देने पर युद्ध ?
- शेरशाह ने बंगाल जैसे दूरस्थ एवं धनी सूबे में विद्रोह की आशंका को समाप्त करने के लिए सम्पूर्ण बंगाल को सरकारों में बांटकर प्रत्येक को एक शिकदार के नियन्त्रण में दे दिया।
- शिकदारों की देखभाल के लिए एक असैनिक अधिकारी ‘अमीन-ए-बंगला’ अथवा ‘अमीर-ए-बंगाल’ को नियुक्त किया और सबसे पहले यह पद ‘काजी फजीलात’ नामक व्यक्ति को दिया गया।
मन्त्री-
1. दीवाने वजारत - यह लगान और अर्थव्यवस्था का प्रधान, राज्य की आय-व्यय की देखभाल करता था।2. दीवाने आरिज - सेना का संगठन, भर्ती, रसद
3. दीवाने रसालत - विदेशमंत्री, पत्र व्यवहार
4. दीवाने इंशा - सुल्तान के आदेश को लिखना, सूचना
दीवाने काजी - न्याय करता था
दीवाने बरीद - इसका मुखिया बरीद-ए-मुमालिक कहलाता था। राज्य के गुप्तचर विभाग और डाक व्यवस्था
प्रान्तीय प्रशासन
1. सूबा या इक्ता
- सम्पूर्ण साम्राज्य 47 सरकारों में विभाजित की।
- बंगाल 19 सूबों में बांट दिया गया। सैनिक अधिकारी शिकदार और असैनिक अधिकारी ‘अमीर-ए-बंगाल’ नियुक्त किया।
सरकारों (जिलों) का शासन -
- दो अधिकारी - 1. शिकदार-ए-शिकदारान:- सैनिक अधिकारी
- कार्य:- शांति-व्यवस्था स्थापित करना तथा अधीनस्थ शिकदारों के कार्यों की देखभाल करना था।
2. मुंसिफ-ए-मुंसिफानः-
- न्यायिक अधिकारी था।
- दीवानी के मुकद्दमों का फैसला करता था तािा अधीनस्थ मुंसिफों की देखभाल करना।
परगने का शासन-
- सबसे छोटी इकाई
- शिकदार- परगने में शांति स्थापित करता था।
- मुंसिफ - दीवानी मुकद्दमों का निर्णय करता
- फातेदार- खजांची
- दो कारकून - हिसाब-किताब रखना
- शेरशाह ने ‘सुल्तान-उल-अदल’ की उपाधि धारण कर रखी थी।
- शेरशाह के काल में लगाल सम्बंधी मुकदमों का निर्णय ‘मुंसिफ’ (परगनों में) तथा ‘मुंसिफ-ए-मुंसिफान’ (सरकारों में) करते थे, जबकि फौजदारी मुकदमों का निर्णय क्रमशः ‘शिकदार’ और ‘शिकदार-ए-शिकदारान’ करते थे।
- काजी असैनिक मुकदमों का निर्णय करते थे। गांव के मुकद्दमें ग्राम पंचायतों द्वारा निर्णीत होते थे।
- गांवों में कानून-व्यवस्था स्थापित करने का काम चौधरी और मुकद्दम नामक स्थानीय मुखिया करते थे।
भू-राजस्व व्यवस्था
- शेरशाह के प्रशासन की सबसे बड़ी विशेषता उसकी भू-राजस्व व्यवस्था थी। उसने लगान व्यवस्था मुख्य रूप से ‘रैय्यतवाड़ी’ थी।
- शेरशाह ने लगान निर्धारण के लिए मुख्यतः तीन प्रकार की प्रणालियां 1. गलाबख्शी अथवा बंटाई, 2. नश्क या मुक्ताई अथवा कनकूत 3. नकदी अथवा जब्ती दौलते-शेरशाही से पता चलता है कि शेरशाह ने समस्त भूमि की माप करवाई, भूमि के माप के लि 32 अंकों वाले सिकन्दरी गज (39 अंगुल या 32 इंच)का प्रयोग किया गया। माप का आधार बीघा माना गया।
- राई- शेरशाह ने भूमि कर निर्धारण के लिए ‘राई’ को लागू करवाया। यह फसल दरों की एक सूची थी। पैदावार की किस्म के आधार पर दोनों मौसमों की सभी प्रकार की फसलों की प्रति बीघा औसत पैदावार की गणना करके उसका 1/3 भाग वसूला जाता था।
- शेरशाह द्वारा प्रचलित रैय्यतवाड़ी लगान व्यवस्था मुल्तान को छोड़कर राज्य के सभी भागों में लागू थी। यहां बंटाई (हिस्सेदारी) प्रथा को लागू किया। मुल्तान से पैदावार का 1/4 भाग भू-राजस्व के रूप में लिया गया।
- शेरशाह ने कृषि योग्य भूमि और परती भूमि दोनों की नाप करवाया। इस कार्य के लिए उसने अहमद खां की सहायता ली थी।
- भूमि को तीन भागों में बांटा गया, अच्छी, औसत एवं खराब तीनों प्रकार की भूमियों की खरीफ एवं रबी की फसलों का औसत अनुमान लगाया गया फिर उसका 1/3 भाग भू-राजस्व के रूप में वसूला गया।
- किसान ‘कबूलियत-पत्र’ द्वारा पट्टे स्वीकार करते थे।
- जरीबाना- यह सर्वेक्षण शुल्क था जो भू-राजस्व का 2.5 प्रतिशत था।
- मुहासिलाना- यह कर संग्रह शुल्क था जो भू-राजस्व का 5 प्रतिशत था।
- शेरशाह ने सोने, चांदी एवं तांबे के सिक्के जारी किये। इस पर अरबी लेखों के साथ सुल्तान का नाम देवनागरी लिपि में लिखा जाता था। शेरशाह ने ही सर्वप्रथम शुद्ध चांदी का रुपया जारी किया जो 180 ग्रेन का होता था।
- उसका तांबे का दाम 380 ग्रेन का होता था। शेरशाह के समय रुपये और दाम के बीच अनुपात 1ः64 था। अकबर के समय यह 1ः40 हो गया।
- शेरशाह के समय में 23 टकसाले थी।
- वी.ए. स्मिथ के अनुसार, ‘शेरशाह की मुद्रा प्रणाली ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली की आधारशिला थी।’
- शेरशाह के काल में ही जायसी ने अपने ‘पद्मावत’ की रचना की।
- शेरशाह ने सैनिकों को नकद वेतन दिया यद्यपि सरकारों को जागीरें दी जाती थी। बेइमानी रोकने के लिए उसने घोड़े को दागने की प्रथा तथा सैनिकों का हुलिया लिखे जाने की प्रथाओं को अपनाया था।
सार्वजनिक निर्माण
- शेरशाह को 1700 सड़कों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। उसी ने डाक व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया था।
- शेरशाह ने चार सड़कों का निर्माण करवाया - ग्रांड ट्रंक रोड - शेरशाह के समय में इसका नाम शेरशाह सूरी मार्ग अथवा सड़क-ए-आजम था। यह बंगाल के सोनार गांव से शुरू होकर दिल्ली, लाहौर होती हुई पंजाब में अटक तक जाती थी।
- आगरा से बुरहानपुर तक
- आगरा से जोधपुर होते हुए चित्तौड़ तक
- लाहौर से मुल्तान तक
स्थापत्य कला -
- शेरशाह का लघुकाल का शासन मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में ‘संक्रमणकाल’ माना जाता है।
- उसने दिल्ली पर कब्जा कर ‘शेरगढ’ या दिल्ली शेरशाही की नींव डाली, आज इस नगर के अवशेषों में ‘लाल दरवाजा’ एवं खूनी दरवाजा देखने को मिलते है।
- पुराना किला - हुमायूं द्वारा निर्मित दीन-पनाह को तुडवाकर उसके ध्वसांवशेषों पर दिल्ली में पुराना किले का निर्माण करवाया।
- 1542 ई. में शेरशाह ने इस किले के अन्दर ‘किला-ए-कुहना’ नाम की मस्जिद का निर्माण करवाया और उसी परिसर में शेरमण्डल नामक एक अष्टभुजाकार तीन मंजिला मण्डप का निर्माण करवाया।
- शेरशाह ने कन्नौज नगर के पास ‘शेरसूर’ नामक नगर बसाया।
- झेलम के तट पर रोहतासगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
- शेरशाह ने ही पाटिलपुत्र को पटना नाम दिया।
- बिहार के रोहतास नामक स्थान पर उसने एक किले का निर्माण करवाया।
- अकबर के राज्यकाल के पूर्व हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का सम्भवतः सबसे सुन्दर नमूना शेरशाह का मकबरा है। इसे स्वयं शेरशाह ने सहसराम ‘बिहार’ में झील के बीच उंची कुर्सी पर बनवाया था।
- इसकी डिजायन मुस्लिम है, लेकिन इसके भीतरी भाग में हिन्दू तीसरा ब्रेकेट और पटाई के तीरों के ऊपरी भागों का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
- आलोचकों का मत हैं कि यह मकबरा ‘तुगलक काल की इमारतों के गाम्भीर्य और शाहजहां की महान कृति ताजमहल के स्त्रियोंचित सौन्दर्य के बीच जैसे सम्पर्क स्थापित करता है।’
- मुख्य कक्ष अष्टकोणीय है, चारों तरफ छतरियों का निर्माण किया गया है।
- किला-ए-कुन्हां मस्जिद में ‘ऐसी कलात्मक विशेषताएं है कि उनके कारण इस उत्तरी भारत की इमारतों में उच्च स्थान दिया जा सकता है।’
- पर्सी ब्राउन ने शेरशाह के मकबरे को सम्पूर्ण उत्तर भारत की सर्वोत्तम कृति कहा है।
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