त्रि-पक्षीय संघर्ष



  • छठी शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद ही राजनीतिक शक्ति के केन्द्र के रूप में ‘पाटलिपुत्र’ का महत्व खत्म हो गया और उसका स्थान उत्तर भारत में स्थित ‘कन्नौज’ ने ले लिया।
  • आज कन्नौज वर्तमान उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में अवस्थित है।
  • आठवीं शताब्दी के मध्य भारत के तीन छोरो पर तीन शक्तिशाली राजवंशों का उदय हुआ- पूर्व में पाल, पश्चिम में गुर्जर-प्रतिहार तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट।
  • कन्नौज पर आधिपत्य के लिए उपरोक्त तीनों शक्तियों के बीच जो संघर्ष हुआ, उसे ‘त्रि-पक्षीय संघर्ष’ के नाम से जाना जाता है।
  • त्रि-पक्षीय संघर्ष की शुरूआत करने वाला प्रतिहार राजा ‘वत्सराज’ माना जाता है।
  • वत्सराज ने कन्नौज के आयुध शासक इन्द्रायुध को युद्ध में पराजित करके उत्तर भारत में अपनी सत्ता का विस्तार प्रारम्भ किया।
  • प्रतिहार गंगा-यमुना के संगम तक पहुँच गये थे, जबकि बंगााल के पालों का प्रभाव प्रयाग तक बढ गया था।
  • पाल नरेश धर्मपाल तथा प्रतिहार नरेश वत्सराज के मध्य उत्तर भारत पर अधिकार के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया। राष्ट्रकूट नरेश ‘ध्रुव’ ने पहली बार त्रि-पक्षीय संघर्ष में हस्तक्षेप किया और वत्सराज को पराजित कर दिया। ध्रुव ने इसके बाद गंगा व यमुना के मध्य पाल शासक धर्मपाल को हराया।
  • त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर उत्तर भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने वाले ‘राष्ट्रकूट’ दक्षिण भारत की प्रथम शक्ति बन गये।
  • ध्रुव के वापस दक्षिण लौटते ही धर्मपाल ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया तथा इन्द्रायुध को हटारकर चक्रायुध को सिंहासन पर बैठा दिया।
  • प्रतिहार शासक वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने चक्रायुध को हराकर कन्नौज पर पुनः अधिकार कर लिया।
  • इसके पश्चात नागभट्ट व धर्मपाल के बीच मुंगेर के पास हुए युद्ध में धर्मपाल पराजित हुआ।
  • 809-810 ई. में नागभट्ट द्वितीय को राष्ट्रकूट राजा गोविन्द तृतीय ने बुरी तरह से पराजित किया।
  • पाल शासक धर्मपाल की मृत्यु के बाद नागभट्ट ने कन्नौज पर पुनः अधिकार कर लिया और उसे प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया।
  • इस प्रकार अंततः उत्तर भारत में गुर्जर प्रतिहार सबसे प्रभावशाली हो गये।
  • तत्कालीन राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष के काल में उसकी शांतिपूर्ण और अहस्तक्षेप की नीतियों के चलते प्रतिहार राजा देवपाल ने अपनी शक्ति का काफी विस्तार किया।
  • प्रतिहार राजा मिहिरभोज के उत्तराधिकारी महेन्द्रपाल के समय तत्कालीन राष्ट्रकूट राजा तृतीय के समय दोनों के बीच पुनः युद्ध छिडा, लेकिन चंदेल सामंत यशोवर्मन की सहायता से राष्ट्रकूट पुनः हरा दिये गये।

पाल राज्य


  • पाल वंश की स्थापना बंगाल में 750 ई. में गोपाल ने की थी। बंगाल में फैली अराजकता को दूर करने के लिए वहां की जनता ने लोकतांत्रिक ढंग से गोपाल को अपना राजा चुना।
  • पाल वंश के शासकों ने बंगाल पर 750-1155 ई. तक तथा बिहार पर मुस्लमानों के आक्रमण तक (1199 ई.) शासन किया।
  • पाल वंश का दूसरा शक्तिशाली व महान राजा धर्मपाल था, जिसने अपना राज्य कन्नौज तक विस्तृत किया और त्रिपक्षीय संघर्ष से अपने राज्य को बचाये रखा।
  • धर्मपाल के पुत्र व उत्तराधिकारी देवपाल ने अनेक युद्ध जीते। वह पालों की राजधानी पाटलिपुत्र से बंगाल ले गया। उसकी सभा में सुमात्रा के राजा बालपुत्रदेव का दूत आया था।
  • नवें पाल राजा महिपाल प्रथम के काल में दक्षिण के चोल राजा राजेन्द्र प्रथम ने 1023 ई. में बंगाल पर आक्रमण किया और गंगा तक के प्रदेशों को जीत लिया।
  • बारहवीं सदी के मध्य तक सेन वंशीय राजाओं ने पालों से बंगाल छिन लिया।
  • 1199 में बख्तियार खिलजी के पुत्र इख्तियारूद्दीन मुहम्मद खिलजी के नेतृत्व में मुसलमानों ने बिहार से भी पाल वंश का अस्तित्व मिटा दिया।
  • पाल वंशीय राजा बौद्ध मतावलम्बी थें फलतः उनके काल में बौद्ध शिक्षा केन्द्रों की काफी उन्नति हुई।
  • धर्मपाल ने विक्रमशिला महाविहार की स्थापना की थी तथा नालन्दा को भी अपना संरक्षण प्रदान किया।


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