History
साम्प्रदायिक पंचाट और पूना समझौता
साम्प्रदायिक पंचाट और पूना समझौता
- 1932 ई. में ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को दबाने के लिए कठोर दमनकारी नीति अपनायी।
- कंग्रेस को अवैध घोषित कर दिया और उनके नेताओं को बन्दी बना लिया गया।
- इसी बीच ब्रिटेन के पीएम मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 ई. को एक घोषणा की, जिसे मैकडोनाल्ड निर्णय या साम्प्रदायिक पंचाट Communal Award भी कहते है।
- इसके अनुसार दलितों को हिन्दुओं से अलग मानकर उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने को कहा गया और दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन मण्डल का प्रावधान किया गया।
- इसमें ईसाइयों, सिक्खों, आंग्ल-भारतीयों तथा महिलाओं के लिए भी पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था की गई।
- श्रम, वाणिज्य, उद्योगों, जमींदारों तथा विश्वविद्यालयों के लिए भी अलग निर्वाचन क्षेत्र घोषित किये गये।
- कुल मिलाकर निर्वाचकों को 17 भागों में बांट दिया गया।
- इस निर्णय के समय गांधीजी पूना का प्रबल विरोध किया और अपनी मांग मनवाने के लिए 20 सितम्बर 1932 ई. में जेल में आमरण अनशन पर बैठ गए।
- मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, घनश्याम दास बिड़ला, पुरुषोत्तम दास और राजगोपालाचारी के प्रयासों से गांधीजी और अम्बेड़कर के मध्य 26 सितम्बर 1932 ई. को एक समझौता हुआ जिसे ‘पूना समझौता’ के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते के अनुसार विभिन्न प्रान्तीय विधानमण्डलों में दलित वर्गों के लिए 71 के स्थान पर 148 सींटे आरक्षित कर दी गई।
- केन्द्रीय विधानमण्डल में 18 प्रतिशत स्थान दलित वर्ग के लिए रखे गये।
- ब्रिटिश सरकार और हिन्दू महासभा ने इसे मान लिया।
- इसी समय टैगोर ने गांधीजी के बारे में कहा कि ‘भारत की एकता और उसकी सामाजिक अखण्डता के लिए यह एक उत्कृष्ट बलिदान है। हमारे व्यथित हृदय आपकी महान तपस्या का आदर और प्रेम के साथ अनुसरण करेंगे।’
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