महात्मा गांधी

महात्मा गांधीः दक्षिण अफ्रीका से रौलट सत्याग्रह तक

दक्षिण अफ्रीका:


  • गांधीजी 24 वर्ष की उम्र में 1893 में दक्षिण अफ्रीेका गए।
  • एक गुजराती व्यापारी दादा अब्दुल्ला का मुकद्दमा लडनें के लिए वे डरबन पहुंचें।
  • दक्षिण अफ्रीका के गोरे गन्ने की खेती करने के लिए इकरारनामे के तहत भारतीय मजदूरों को अपने यहां ले गए।
  • - डरबन से प्रिटोरिया जा रहे गांधीजी को जोहांसबर्ग में रेलगाडी से उतार दिया गया।
  • ‘नटाल एडवर्टाइजर’ को एक चिट्ठी में गांधीजी ने लिखा ‘‘क्या यही ईसाइयत है, यही मानवता है, यही न्याय हैं, इसी को सभ्यता कहते है?’’
  • - प्रिटोरिया में भारतीयों के अंदर स्वाभिमान की भावना जगाई और रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया।
  • - उन्होंने ‘नटाल भारतीय कांग्रेस’ का गठन किया और ‘इंडियन ओपीनियन’ नामक अखबार निकालना शुरू किया।

सत्याग्रह आन्दोलन 

- 1906 के बाद गांधीजी ने ‘अवज्ञा आन्दोलन’ शुरू किया, जिसे सत्याग्रह का नाम दिया गया।
- सबसे पहले इसका इस्तेमाल उस कानून के खिलाफ किया गया जिसके तहत हर भारतीय को पंजीकरण प्रमाण पत्र लेना जरूरी था।


भारत में चंपारण, अहमदाबाद, और खेडा

- 1917 और 1918 के आरम्भ में गांधीजी ने तीन संघर्षो चंपारण आन्दोलन ‘बिहार’, अहमदाबाद और खेडा, गुजरात में हिस्सा लिया। ये तीनों संघर्ष स्थानीय आर्थिक मांगों से जोड़कर लडें गए।
- चंपारण का मामला बहुत पुराना था। 19वीं सदी के आरंभ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध करा लिया, जिसके तहत किसानों को अपनी जमीन के 3/20 वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे ‘तिनकठिया’ पद्धति कहते थे।
- 19वीं सदी के खत्म होते-होते जर्मनी के रासायनिक रंगों ‘डाई’ ने नील को बाजार से बाहर खदेड दिया।
- किसानों को अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान व अन्य गैरकानूनी अब्वाबों की दर मनमाने ढंग से बढा दी गई।
- 1917 में चंपारण के राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी को चंपारण बुलाने का फैसला किया।
- वह अपने सहयोगी- ब्रजकिशोर, राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई, नरहरि पारेख, जे बी कृपलानी तथा बिहार के अनेक बुद्धिजीवी के साथ गांव में निकल जाते और किसानों के बयान दर्ज करते।
- सरकार ने सरे मामले की जांच के लिए एक आयोग गठित किया और गांधीजी को भी इसका सदस्य बनाया।
- बागान मालिक किसी तरह अवैध वसूली का 25 फीसदी वापस करने पर राजी हुए।

अहमदाबाद 

- अहमदाबाद में मिल- मालिकों और मजदूरों में ‘प्लेग-बोनस’ को लेकर विवाद छिडा था। प्लेग का प्रकोप खत्म होने के बाद मालिक इसे समाप्त करना चाहते थे, जबकि मजदूर इसे बरकरार रखने की मांग कर रहे थे। 
- मजदूीों का तर्क था कि उन्हें बतौर बोनस जो रकम मिल रही हैं, वह प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान बढी हुई महंगाई से काफी कम है, अतः इसे वापस नही लियर जाना चाहिए।
- मिल-मालिकों में से एक बंबालाल साराभाई, गांधीजी के दोस्त थे और उन्होंने साबरमती आश्रम के लिए काफी पैसा दिया था।
- साबरमती के तट पर रोज मजदूरों की सभा को गांधीजी संबोधित करते। उन्होंने एक दैनिक समाचार बुलेटिन भी निकाला।
- अंबालाल साराभाई की बहन अनुसूइया बेन इस संघर्ष में गांधीजी के साथ थी।
- ट्रिब्यूनल ने 35 फीसदी बोनस देने का फैसला सुनाया।

खेडा

- खेडा जिले में किसानों की फसल बरबाद हो गई, फिर भी सरकार उनसे मालगुजारी वसूल रही थी।
- ‘सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसाइटी’ के सदस्यों, विट्ठलभाई पटेल और गांधीजी ने पूरी जांच-पडताल के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि किसानों की मांग जायज है और ‘राजस्व संहिता’ के तहत पूरा लगान माफ किया जाना चाहिए।
- खेडा आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ‘गुजरात सभा’ ने, गांधीजी इसके अध्यक्ष थे।

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