Psychology
पावलव का अनुबंधन का सिद्धांत
अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत
- अनुबंधित अनुक्रिया का सिद्धांत, क्लासिकल अनुबंधन का सिद्धांत भी कहा जाता है।
- 1904 में इस सिद्धांत को लेकर पावलव को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- अनुबंधन का विचार अत्यन्त प्राचीन है इसकी झलक हमें साहचर्य के नियमों में मिलती है।
- साहचर्य के नियमों का सर्वप्रथम प्रतिपादन अस्टिोटल (अरस्तु) ने किया।
- अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक उद्दीपन के स्थान पर दूसरे उद्दीपक को प्रतिस्थापित किया जाता है। इस प्रकार इस नवीन उद्दीपक और अनुक्रिया के मध्य सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
- पावलव के अनुसार अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक तटस्थ उद्दीपक स्वाभाविक उद्दीपक के साथ बार-बार प्रस्तुत करने के कारण स्वाभाविक उद्दीपक की समस्त विशेषताओं को ग्रहण कर लेता है।
1. अनानुबंधित उद्दीपक/स्वाभाविक उद्दीपक
- यह एक ऐसा उद्दीपक है जो बिना किसी प्रशिक्षण के प्राणी में अनुक्रिया को उत्पन्न करने की क्षमता रखता है।
2. अनानुबंधित अनुक्रिया/ स्वाभाविक अनुक्रिया
- यह अनुक्रिया अनानुबंधित उद्दीपक से उत्तेजित होती है यह प्राणी में सहज क्रिया के रूप में पाया जाता है।
3. अनुबंधित उद्दीपक/ अस्वाभाविक उद्दीपक
- अनुबंधित उद्दीपक वह तटस्थ उद्दीपक है जो अनानुबंधित उद्दीपक के साथ समयानुसार बार-बार जुड़ने के कारण अनानुबंधित अनुक्रिया को उत्पन्न करने की क्रिया को सृजित कर लेता है।
4. अनुबंधित अनुक्रिया/अनुकूलित अनुक्रिया
- अनुबंधित उद्दीपक के प्रस्तुत करने पर जो अनुक्रिया प्रकट होती है। वह अनुकूलित अनुक्रिया कहलाती है।
5. प्रानुकूलित अनुक्रिया
- जब अनुकूलित अनुक्रिया का सम्बन्ध अन्य अस्वाभाविक उद्दीपकों से स्थापित करने से अनुकूलित अनुक्रिया समाप्त हो जाती है तो उसे प्रानुकूलित अनुक्रिया कहते है।
शिक्षा में उपयोग-
- शब्दार्थों का ज्ञान
- आदतों का विकास
- पशुओं को प्रशिक्षण
- भय और तर्कहीन भय से मुक्ति
- रूचि का विकास
- अनुशासन की स्थापना
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1 Comments
Nice post
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