प्रीतिलता वादेदार महिला क्रांतिकारी Pritilata Vadedar




भारतीय स्वतंत्रता में अपना अमूल्य योगदान देने वाली प्रमुख महिला क्रांतिकारी जिन्होंने अपने देश के लिए सब कुछ लूटा कर देश सेवा की, उनके बारे में पढ़ें रोचक तथ्य-
ननी बाला देवी
हावड़ा में 1888 ई. में जन्मी ननी बाला देवी 1906 मं


प्रीतिलता वादेदार


बंगाल के अग्रणी क्रांतिकारी नेता सूर्यसेन के दल की एक साथी कुमारी प्रीतिलता वादेदार भारत की ‘पहली क्रांतिकारी महिला शहीद’ है। अपनी छोटी सी उम्र में उसने शौर्य और बलिदान का एक अद्भूत मिसाल कायम की थी।
प्रीतिलता का जन्म मई 1911 ई. में चटगांव में हुआ था। पिता जगतबंधु और माता प्रतिभामयी उसे पढ़ा-लिखा कर अध्यापिका बनाना चाहते थे। इसलिए परिवार में गरीबी के बावजूद उसकी पांचवें वर्ष में शुरू करवा दी गई थी। पढ़ने-लिखने में वह तेज भी थी। 1930 ई. में आई.ए. की परीक्षा में प्रथम आई। फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से उसने विशेष योग्यता के अंक प्राप्त कर बी.ए. किया।
उन्हीं दिनों लीला नाग के ‘दीपाली संघ’ और कल्याणी दास के ‘छात्र-संघ’ से प्रशिक्षण लेकर सूर्यसेन के क्रांतिदल में शामिल हो गई। कुमारी प्रीतिलता की आयु उस ‘एक्शन के समय केवल 21 वर्ष की थी।
18 अप्रैल, 1930 को ‘चटगांव शस्त्रागार कांड’ के बाद ब्रिटिश सेना और क्रांतिकारियों में जमक र संघर्ष ठन गया था। जलालबाद में हुई एक सीधी मुठभेड़ में ब्रिटिश सेना के अनके सैनिक मारे गये और कई क्रांतिकारी शहीद हो गये। इसके बाद सूर्यसेन ने अपने दल को छिपकर छापामार लड़ाई लड़ने का आदेश दे दिया। कुमारी प्रीतिलता इसी छापामार दल की एक सदस्या थी।
दल के लोग अपूर्व सेन, निर्मल सेन, सूर्यसेन, प्रीतिलता अपने कुछ साथियों को खोन के बाद पहाड़ी से नीचे ढलुआ जमीन पर अतर कर तितर-बितर हो गये। पुलिस पीछा करने लगी। 12 जून, 1932 की रात को दूसरी सीधी मुठभेड़ मे सूर्यसेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया और ब्रिटिश सेना की गोलियों से अपूर्व सेन व निर्मल सेन शहीद हो गये। प्रीतिलता और सूर्यसेन कुछ दिन तक दल की मददगार एक महिला सावित्री देवी के मकान में छिपे रहे।
सूर्यसेन ने अपने साथियों की मौत का बदला लेने की एक योजना बनाई। येाजना थी, पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक यूरोपीय क्लब पर आक्रमण कर नाच-रंग में मस्त अंग्रेजों को मौत के घाट उतारना।
इस ‘एक्शन’ का नेतृत्व प्रीतिलता को ही सौंपा गया। 24 सितम्बर, 1932 को क्लब में रात के समय अंग्रेज स्त्री-पुरुष शराब पीकर राग-रंग में मस्त थे। क्लब के फाटक पर पहुंचते ही प्रीतिलता ने अपने साथियों को ललकारा, ‘‘प्यारे साथियों बढ़ो।’’ इस के साथ ही क्लब की इमारत बमों के धमाकों और पिस्तौल की गोलियों से हिल उठी। एक यूरोपियन महिला धराशायी हो गई। 13 अंग्रेज बुरी तरह जख्मी हो गये। कुछ संभलकर उधर से गोली वर्षा करने लगे। तभी एक गोली प्रीतिलता के शरीर में भी आ लगी। बचने की आशा न देखकर भी प्रीतिलता लड़ते-लड़ते, पहले की तरह ही भाग निकली और उसने तुरन्त पुड़िया खोली और ‘पोटेशियम साइनाइट’ खाकर सम्मान से शहीद हो गई।
प्रीतिलता की शहादत के बाद ब्रिटिश अधिकारियों को उसकी तलाशी लेने पर जो कुछ हाथ लगा वह था एक छपा पैंफ्लेट, जिस पर लिखा था, ‘‘चटगांव शस्त्रागार कांड और उसके बाद जो कुछ हो रहा है, वह भविष्य में होने वाले एक भीषण युद्ध का ही प्रारम्भिक रूप है। क्रांतिकारियों ने 18 अप्रै, 1930 को यह संघर्ष छेड़ा और यह तब तक चलता रहेगा जब तक कि देश पूर्णतया स्वतंत्र नहीं हो जाता।’’

वीना दास

वीना दास ने 6 फरवरी, 1932 को अपने कॉलेज के दीक्षान्त समारोह में अपनी बी.ए. की डिग्री लेते वक्त गवर्नर स्टैनले जैक्सन पर उनके सामने जाकर गोली चला दी। निशाना चूक जाने से गवर्नर बाल-बाल बच गये। इस के लिए उनको 9 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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