Geography
वायुमण्डल की परतें
- पृथ्वी के चारों ओर सैकडों किलोमीटर की मोटाई में आवृत्त करने वाला गैसीय आवरण ‘वायुमण्डल’ है।
- वायुमण्डल पृथ्वी पर 35 डिग्री से.ग्रे. का औसत तापमान बनाये रखता हैं।
- वायुमंडल में मिलने वाली गैसों एवं उसके आयतन
- नाइट्रोजन - 78.03
- ऑक्सीजन - 20.99
- ऑर्गन - 0.93
- कार्बन डाइ ऑक्साइड - 0.03
- हाइड्रोजन - 0.01
- नियॉन - 0.0018
- हीलियम - 0.0005
- क्रिप्टॉन - 0.0001
- जिनॉन
- ओजोन
- स्ट्राहलर के अनुसार यद्यपि वायुमण्डल का 97 प्रतिशत भाग 29 किमी की ऊंचाई तक सीमित है, परन्तु इसकी अधिकतम ऊपरी सीमा 10,000 किमी तक है।
- ऑक्सीजन गैस प्रज्वलन के लिए अनिवार्य है।
- नाइट्रोजन गैस ऑक्सीजन को तनु करके प्रज्वलन को नियंत्रित करने का कार्य करती है।
- कार्बन पृथ्वी से होने वाले दीर्घ तरंग विकिरण को आंशिक रूप से सोखकर उसे गर्म रखती है।
- ओजोन गैस पराबैंगनी किरणों से जीवों की रक्षा करती है।
- वायुमण्डल का 50 प्रतिशत भाग 5.6 किमी की ऊंचाई तक सीमित है।
- वायुमण्डल के निचले स्तर में भारी गैस (जैसे- कार्बन डाई ऑक्साइड 20 किमी तक, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन 100 किमी तक) पाई जाती है, जबकि अधिक ऊंचाई पर हीलियम, नियॉन, क्रिप्टन एवं जेनेन जैसी हल्की गैसें पाई जाती हैं।
- गैसों के अलावा वायुमण्डल में जलवाष्प, धुंआ के कण, नमक के कण, धूल-कण भी विभिन्न अनुपात में पाये जाते हैं।
- जलवाष्प की मात्रा तापमान पर निर्भर करती है।
- वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा इसके कुल आयतन का 4 से 5 प्रतिशत हैं।
- उष्ण कटिबंधीय, उष्ण एवं आर्द्र क्षेत्रों के ऊपर इसका आयतन विद्यमान हवा का 4 प्रतिशत तक पाया जाता हैं जबकि मरुस्थलीय एवं ध्रुवीय क्षेत्रों में इसकी मात्रा 1 प्रतिशत से भी कम होती है।
- इस प्रकार विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है, साथ ही साथ ऊंचाई बढ़ने के साथ भी इसकी मात्रा घटती जाती हैं। यथा-
- भूतल से 2 किमी तक 50 प्रतिशत
- भूतल से 5 किमी तक 90 प्रतिशत व 29 किमी तक 97 प्रतिशत जलवाष्प की अधिकतम सीमा 10,000 किमी।
- वायुमण्डलीय जलवाष्प से ही विभिन्न प्रकार के तूफानो एवं तड़ित झंझाओं को शक्ति प्राप्त होती है।
- जलवाष्प सूर्य से आनेवाली सूर्यातप के कुछ अंश को अवशोषित कर लेता है। यह पृथ्वी द्वारा विकसित ऊष्मा को भी संजोये रखता हैं। इस प्रकार यह एक कम्बल की तरह कार्य करता है।
- धूल के कण मुख्यतः वायुमण्डल के निचले भाग में पाये जाते हैं।
- ध्रुवीय तथा विषुवतीय प्रदेशों की अपेक्षा उपोष्ण एवं शीतोष्ण क्षेत्रों में धूल के कणों की मात्रा अधिक होती है।
- धूल, धुंआ एवं नमक के कण जलवाष्प् को आकृष्ट करने के कारण आर्द्रताग्राही नाभिक का कार्य करते हैं, जिनके चारों तरफ संघनन के कारण जल बूंदों का निर्माण होता है।
- धूल के कण सूर्य से आने वाली किरणों के प्रकीर्णन का भी कार्य करते हैं। जिसके कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
- रासायनिक संघटन के आधार पर वायुमण्डल दो विस्तृत परतों में वर्गीकृत हैं- 1. सममण्डल और 2. विषममण्डल
- तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण के आधार पर वायुमण्डल को पांच भागों में विभाजित किया जाता है-
क्षोभमण्डल TropoSphere
- यह वायुमण्डल की सबसे निचली एवं सघन परत हैं जिसमें वायु के सम्पूर्ण भार का 75 प्रतिशत भाग पाया जाता है।
- इसकी ऊंचाई विषुवत रेखा पर अधिक और ध्रुवों पर कम रहती हैं। यह परत भूमध्य रेखा से ध्रवों की ओर पतली होती जाती है। भूमध्य रेखा पर अधिक तापमान के कारण संवहन धारा के कारण इसकी ऊंचाई 16-18 किमी एवं ध्रुवों पर 8-10 किमी होती है।
- जलवाष्प एवं धूल-कणों के क्षोभमण्डल में ही संकेन्द्रित होने के कारण बादलों का निर्माण, तूफान, चक्रवात आदि मौसम सम्बन्धी घटनाएं इसी में होती है।
- क्षोभमण्डल को संवहल मण्डल भी कहा जाता है, क्योंकि संवहन धाराएं इस मण्डल को बाह्य सीमा तक ही सीमित होती है।
- ग्रीष्म ऋतु में इस स्तर की ऊंचाई में वृद्धि एवं शीत ऋतु में कमी पाई जाती है।
- क्षोभमण्डल में ऊंचाई के साथ तापमान में कमी आती हैं, तापमान में गिरावट की यह दर 1 डिग्री सेल्सियस प्रति 165 मीटर (3.6 डिग्री फॉरेनहाइट) तक होती है, इसे सामान्य ह्रास दर कहा जाता है।
- क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा पर विषुवत रेखा पर तापमान -80 डिग्री सेल्सियस हो जाता है, जबकि ध्रुवों के ऊपर यह 45 डिग्री से. ही रहता है।
- प्रति किमी 6.5 डिग्री से ताप में कमी।
- इस मण्डल में एक मीटर की ऊंचाई पर ‘मौसम विज्ञानी पर्दा स्तर’ है। इस स्तर को स्टीवेन्सन पर्दा भी कहते हैं। इस स्तर पर तापमान, वायुदाब तथा आर्द्रता का मापन होता है।
- इस मण्डल में 10 मीटर की ऊंचाई पर ब्यूफोर्ट पर्दा स्तर है जिस पर पवन की गति एवं दिशा मापी जाती है।
क्षोभ सीमा Tropopasuse
- क्षोभमण्डल तथा समताप मण्डल के बीच स्थित (1 से 1.5 मीटर) संक्रमण स्तर को क्षोभसीमा कहा जाता हैं इसमें मौसम सदैव स्थिर रहता है।
समताप मण्डल StratoSphere
- क्षोभ सीमा के ऊपर लगभग 50 किमी. की ऊंचाई तक समताप मण्डल का विस्तार पाया जाता हैं।
- इसकी निचली सीमा अर्थात् 20 किमी की ऊंचाई पर तापमान अपरिवर्तित रहता हैं, किन्तु ऊपर की ओर जाने पर ताप में वृद्धि होती जाती हैं। इस वृद्धि का कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करने वाली ओजोन गैस की उपस्थिति हैं।
- इस मण्डल में बादलों का अभाव पाया जाता है तथा धूलकण एवं जलवाष्प भी नाममात्र में ही मिलते हैं।
- इस मण्डल में वायु में क्षैतिज गति पायी जाती है।
- खोज 1902 ई. में टीजरेंस डिबोर्ट द्वारा की गई।
- 20-35 किमी के बीच ओजोन परत की सघनता काफी अधिक है, इसलिए इस क्षेत्र को ओजोन मण्डल भी कहा जाता है।
ओजोन मण्डल OsonoSphere
- 15-35 किमी
- 25-35 किमी सघन
- इसकी ऊपरी सीमा पर तापमान 0 डिग्री सेल्सियस होता हैं।
- समतापमण्डल की ऊपरी सीमा पर समताप मण्डल सीमा की संक्रमण पेटी स्थित हैं। जहां पर समताप मण्डल में ऊंचाई के साथ तापमान के बढ़ने की स्थिति नगण्य हो जाती है।
मध्यमण्डल MesoSphere
- यह समताप मण्डल के ऊपर स्थित हैं एवं 50 किमी से 80 किमी की ऊंचाई के बीच फैला हुआ है।
- इसमें ऊंचाई के साथ तापमान में ह्रास होता है। जो -100 डिग्री सेल्सियस हो जाता है।
- मध्यमण्डल की ऊपरी सीमा को मध्य सीमा कहा जाता है।
आयन मण्डल IonoSphere
- इसे तापमण्डल भी कहते हैं। 80 किमी - 400 किमी तक , T= 1700 डिग्री सेल्सियस
- इसमें तापमान तेजी से बढ़ता हैं तथा यह बढ़कर 1000 डिग्री सेल्सियस हो जाता है।
- पृथ्वी से प्रेषित रेडियों तरंगें आयनमण्डल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौट आती है।
- आयन मण्डल की हवा विद्युत आवेशित होती हैं, अतः इस मण्डल में वायु के कण विद्युत विसर्जन के कारण चमकने लगते हैं, जिसे उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर ध्रुवीय प्रकाश Aurora Borealis या सुमेरु प्रकाश तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण ध्रुवीय प्रकाश Aurora Australis या कुमेरु प्रकाश कहा जाता है।
- उल्काओं की चमक भी इस मण्डल की एक प्रमुख घटना है
- इस मण्डल को पुनः D,E,F परतों में विभाजित-
- F लघु तरंगें एफ से परावर्तित होती है- एसडब्ल्यू SW
- E मध्यम तरंगे ई से परावर्तित होती है - एमडब्ल्यू MW
- D दीर्घ तरंगे डी से परावर्तित होती है- वायरलैस
बाह्यमण्डल या आयतन मण्डल ExoSphere
- यह मण्डल वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है इस परत की वायु काफी विरल होती है एवं धीरे-धीरे बाह्य अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है।
- क्षोभमण्डल, समताप मण्डल, मध्य मण्डल को सम्मिलित रूप से सममण्डल कहते हैं, जबकि आयनमण्डल (तापमण्डल) और बाह्यमण्डल को विषममण्डल Hetero Sphere कहते हैं।
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