varsaay sandhi
- प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति (11 नवंबर 1918 ई.) पर शांति स्थापना के उद्देश्य से पेरिस में शांति सम्मेलन 18 जनवरी, 1919 ई. में आयोति किया गया, जिसमें विभिन्न पराजित राष्ट्रों के साथ सन्धियों और समझौतों के प्रारूप तैयार किये गये। इन संधियो में वर्साय की सन्धि सर्वाधिक महत्त्व की हैं।
- 439 धाराओं वाली यह संधि प्रथम विश्वयुद्ध के समय बने मित्र राष्ट्रो व जर्मनी के लाचार और असम्मानित प्रतिनिधि मण्डल के मध्य 28 जून, 1919 को सम्पन्न हुई।
वर्साय की सन्धि की प्रमुख व्यवस्थाएं varsaay ki sandhi ki pramukh vyavasthaen
क. प्रादेशिक व्यवस्थाएं-
- जर्मनी को अल्सास-लॉरेन के प्रांत फ्रांस को देने पड़ें।
- नवनिर्मित राज्यों- बेल्जियम, पोलैण्ड और चकोस्लोवाकिया की स्वतंत्र और प्रभुसत्ता को जर्मनी ने मान्यता दी।
- जर्मनी को अपने विस्तृत उपनिवेशों पर सारे अधिकार मित्र राष्ट्रों को सौंप देन पर विवश किया गया और उन्हें राष्ट्र की मैंडेट प्रणाली के अधीन मित्र राष्ट्रों में बांट दिया गया। इसके अलावा चीन के शांतुंग क्षेत्र में जर्मनी द्वारा सभी अधिकार जापान को सौंप दिये गये।
- राइन नदी के बांये तट पर तथा 50 किमी. तक दांये तट का पूरी तरह निःशस्त्रीकरण कर दिया गया ताकि इस क्षेत्र मे जर्मनी किसी प्रकार की किल बन्दी न कर सके।
- पोलैण्ड के नवनिर्मित राज्य का समुद्र तट से संबंध स्थापित करने के लिए जर्मनी को डेंजिंग बन्दरगाह राष्ट्र संघ के संरक्षण में छोड़ना पड़ा।
- जर्मनी का मेमल बंदरगाह लिथुआनिया को दे दिया गया।
- राइनलैण्ड प्रदेश में आगामी 15 वर्षों तक मित्र राष्ट्रों की सेनाएं रखने का निश्चय किया गया।
- जर्मनी के सार प्रदेश पर राजनीतिक सत्ता तो जर्मनी की ही मानी गई, परन्तु उसकी शासन व्यवस्था राष्ट्र संघ के एक आयोग को सौंपी गई। अति सम्पन्न सार घाटी दोहन हेतु फ्रांस को दे दी गई।
- उत्तरी श्लेसविंग डेनमार्क को दे दिया गया।
- बेल्जियम को जर्मनी से मालमेड़ी, यूपेन और मार्सनेट मिले।
- ब्रेस्टलिटोवस्क की सन्धि के द्वारा जर्मनी ने एक बड़ा भाग रूस से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया था, किन्तु वर्साय संधि द्वारा इस विस्तृत प्रदेश पर लेटविया, एस्टोविया और लिथुआनिया की स्थापना की गई।
ख. सैनिक व्यवस्थाएं -
- जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा समाप्त कर दी गई
- 12 वर्षों तक जर्मनी की स्थल सेना 1 लाख से अधिक नहीं होगी।
- जर्मनी द्वारा युद्ध सामग्री के निर्माण एवं आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- जर्मन नौसेना में 15 हजार अधिकतम सैनिक रखना निश्चित किया गया।
- जर्मनी के हेलिगोलैण्ड बन्दरगाह की किलेबंदी तोड़ना निश्चित हुआ।
- कील नहर को अन्तर्राष्ट्रीय घोषित किया गया।
- जर्मन वायुसेना को भंग कर दिया गया।
- राइन क्षेत्र का असैनिकीकरण कर दिया गया।
ग. आर्थिक व्यवस्थाएं-
- युद्ध का समस्त उत्तरदायित्व जर्मनी पर थोपा गया। उस पर युद्ध क्षति-पूर्ति के लिए 5 अरब डॉलर मित्र राष्ट्रों को देने का बोझ डाला गया।
- उपनिवेशों मे लगी समस्त जर्मन पूंजी को जब्त कर लिया गया।
- जर्मनी को एक निश्चित मात्रा में फ्रांस, इटली एवं बेल्जियम को कोयले की आपूर्ति करना भी तय हुआ।
- जर्मनी के 1600 अथवा इससे अधिक टनभार क्षमता वाले सभी व्यापारिक जहाज मित्र राष्ट्रों को सौंपे गये।
घ. अन्य व्यवस्थाएं -
- जर्मन सम्राट विलियम द्वितीय को युद्ध के लिए दोषी ठहराया गया और उस पर मुकद्दमा चलाने का निर्णय किया गया। यद्यपि ऐसा संभव न हो सका।
- जर्मनी की प्रमुख नदियां को अन्तर्राष्ट्रीय घोषित किया गया।
संधि की समीक्षा varsaay sandhi ki samiksha
- वर्साय की संधि में जर्मनी को राजनीतिक आर्थिक एवं सैन्य दृष्टि से पंगु राष्ट्र बना दिया। इससे जर्मनी प्रदेश का 8वां भाग और 70 लाख जनसंख्या कम हो गई।
- उसके सारे उपनिवेश, 15 प्रतिशत कृषि भूमि, 12 प्रतिशत मवेशी और 10 प्रतिशत कारखाने छीन लिये गये। उसके व्यापारिक जहाज 57 लाख टन से घटकर 5 लाख टन रह गये। इंग्लैण्ड से टक्कर लेने वाली उसकी नौसेना बिल्कुल नष्ट हो गई और स्थल सेना भी एक लाख सैनिकों तक सीमित कर दी गई।
- उसे अपने कोयले के 2/5वें भाग से, लोहे के 2/3वें भाग से, जस्ते के 7/10वें भाग से तथा सीसे के आधे से अधिक भाग से वंचित कर दिया गया। वर्साय की प्रादेशिक व्यवस्थाओं ने उसके उद्योग धंधों और व्यापार को नष्ट कर दिया। उपनिवेशों के छीन जाने से उसे रबड़ एवं तेल की भारी कमी का सामना करना पड़ा।
- क्षतिपूर्ति के लिए उसने ‘कोरे चैक’ पर हस्ताक्षर कर दिये। इस प्रकार वर्साय संधि से होने वाले महाविनाश को जर्मनी की स्वाभिमानी जनता कैसे भुला सकती थी?
- व्सा्रय संधि एक आरोपित संधि थी, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसलिए ही कुछ समय बाद जर्मन राष्ट्रवादियों ने संधि की शर्तें तोड़ना आरम्भ कर दिया।
- चर्चिल जैसें साम्राज्यवादी ने भी संधि की आर्थिक शर्तों को पागलपन करार दिया था। वर्साय की संधि जिस प्रवृत्ति और प्रतिशोध-भावना के साथ सम्पन्न हुई, उससे उसके स्थायी होने की सम्भावना कतई नहीं थी। वह भावी विनाश के बीज अपने गर्भ में छिपायें हुए थी।
Ok
ReplyDeletenishkarsh sahee hai
ReplyDelete