History
बंगाल विभाजन और स्वदेशी आन्दोलन
- बंगाल की आबादी 7 करोड़ 85 लाख थी, ब्रिटिश भारत की कुल आबादी का लगभग 1/4 थी। बिहार और उड़ीसा भी इसी राज्य के हिस्से थे।
- असम 1874 ई. में ही अलग हो गया था।
- एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इतने बड़े प्रांत को कुशल प्रशासन दे पाने में असमर्थ था।
- तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन का प्रशासनिक असुविधा को बंगाल विभाजन का कारण बताया, किन्तु वास्तविक कारण प्रशासनिक नहीं, वरन् राजनीतिक था।
- बंगाल उस समय भारतीय राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र बिन्दु था और साथ ही बंगालियों में प्रबल राजनैतिक जागृति थी जिसे कुचलने के लिए कर्जन ने बंगाल को बांटना चाहा।
- उसने बंगाली भाषी हिन्दुओं को दोनों भागों में अल्पसंख्या में करना चाहा।
- दिसम्बर, 1903 में बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की खबर फैलने पर चारों ओर विरोधस्वरूप अनेक बैठकें हुई जिसमें अधिकतर ढाका, मेमनसिंह एवं चटगांव में हुई।
- सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, कृष्ण कुमार मिश्र, पृथ्वीशचन्द्र राय जैसे बंगाल के नेताओं ने ‘बंगाली, हितवादी एवं संजीवनी’ जैसे अखबारों द्वारा विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की।
- विरोध के बावजूद कर्जन ने 19 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की गई।
- दिनाजपुर, पाबना, फरीदपुर, टंगाइल, जैसोर, ढाका, वीरभूमि, वारीसाल व अन्य कस्बों में विरोध सभाएं आयोजित की गई, जहां विदेशी माल के बहिष्कार की प्रतिज्ञा की गई। कलकत्ता में भी छात्रों ने अनेक विरोध बैठके की।
- 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के ‘टाउन हाल’ में एक ऐतिहासिक बैठक में स्वदेशी आन्दोलन की विधिवत घोषणा की गई।
- 7 अगस्त की बैठक में ऐतिहासिक ‘बहिष्कार प्रस्ताव’ पारित हुआ।
- लोगों से मैनचेस्टर के कपड़े और लिवरपूल के नमक के बहिष्कार की अपील करने लगे।
- 1 सितम्बर को सरकार ने घोषणा की कि विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी होगा।
- विभाजन के बाद बंगाल पूर्वी बंगाल एवं पश्चिमी बंगाल में बंट गया।
- पूर्वी बंगाल में असम एवं बंगाल (पूर्वी) के राजशाही ढाका एवं चटगांव जिले मिलाये गये।
- कुल 3 करोड़ 10 लाख (1 करोड़ 80 लाख मुसलमान एवं 1 करोड़ 20 लाख हिन्दू) जनसंख्या वाले पूर्वी बंगाल का कुल क्षेत्रफल 1,06,540 वर्ग मील था।
- इस प्रान्त का मुख्यालय ढाका में था।
- पश्चिमी बंगाल में बिहार एवं उड़ीसा तथा पश्चिमी बंगाल शामिल थे।
- 5 करोड़ 40 लाख जनसंख्या (4 करोड़ 50 लाख हिन्दू, 90 लाख मुसलमान) वाले प्रांत का कुल क्षेत्रफल 1,41, 580 वर्ग मील था।
- विभाजन के दिन 16 अक्टूबर, 1905 को पूरे बंगाल में ‘शोक दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई। घरों में चूल्हा नहीं जला, लोगों ने उपवास रखा और कलकत्ता में हड़ताल घोषित की गई। जनता ने जुलूस निकाला।
- सवेरे जत्थे के जत्थे लोगों ने गंगा स्नान किया और फिर सड़कों पर वंदे मातरम् गीत गाते हुए प्रदर्शन करने लगे।
- लोगों ने एक-दूसरे के हाथ पर राखियां बांधी।
- आनंद मोहन बोस और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी (यह निर्णय हमारे ऊपर एक वज्र की तरह गिरा हैं) ने दो विशाल जनसभाओं को सम्बोधित किया।
- विभाजन पर गोखले ने कहा था कि ‘यह एक निर्मम भूल है।’
- बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन का सूत्रपात किया।
- कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में स्वदेशी और बहिष्कार आन्दोलन का अनुमोदन किया गया।
- बारीसाल सम्मेलन 1906 की अध्यक्षता एस. अब्दुल रसूल ने की।
- लोकमान्य तिलक ने पूरे देश में, विशेषकर बंबई और पुणे में, इस आंदोलन का प्रचार किया।
- अजीत सिंह और लाला लाजपतराय ने पंजाब उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में।
- सैयद हैदर रजा ने दिल्ली में इस आन्दोलन का नेतृत्व किया।
- चिदम्बरम् पिल्लै ने मद्रास प्रेसीडेन्सी में इसका नेतृत्व किया जहां विपिनचन्द्र पाल ने अपने भाषणों से इस आन्दोलन को ओर मजबूत किया।
- 1905 में गोखले की अध्यक्षता में हुए बनारस कांग्रेस अधिवेशन में बंगाल में स्वदेशी आन्दोलन व बहिष्कार आन्दोलन का समर्थन किया।
- उग्रवादी दल के नेता तिलक, विपिनचन्द्र पाल, लाजपत राय एवं अरविन्द घोष ने पूरे देश में इस आन्दोलन को फैलाना चाहा।
- स्वदेशी आन्दोलन के समय लोगों का आन्दोलन के प्रति समर्थन एकत्र करने में ‘स्वदेश बान्धव समिति’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इसकी स्थापना वारीसाल के शिक्षक अश्विनी कुमार दत्त ने की थी।
- शीघ्र ही स्वदेशी आन्दोलन का परिणाम सामने आ गया जिसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1906 को एक राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की गयी।
- आचार्य पी.सी. राय ने बंगाल केमिकल्स एवं फार्मास्युटिकल्स की स्थापना की।
- इस समय चलाये गये बहिष्कार आन्दोलन के अन्तर्गत न केवल विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया बल्कि स्कूलों, अदालतों, उपाधियों, सरकारी नौकरियों का भी बहिष्कार हुआ।
- स्वदेशी आन्दोलन की उपलब्धि थी, ‘आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति।’
- भारत सरकार के तत्कालीन गृह सचिव राइसले था, कर्जन के उत्तराधिकारी मिंटो शुरु से विभाजन के विरोधी थे।
- 1906 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य ब्रिटेन या उसके उपनिवेशों की तरह भारत में अपनी सरकार का गठन करना है अर्थात् स्वराज्य की स्थापना।’
गरमपंथियों की पकड़ मजबूत
- व्यापक जनांदोलन के जरिए राजनीतिक स्वाधीनता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिए ‘बहिष्कार आन्दोलन’ को असहयोग आंदोलन और शांतिपूर्ण प्रतिरोध तक ले जाना था। केवल विदेशी कपड़ों का ही बहिष्कार नहीं बल्कि सरकारी स्कूलों, अदालतों, उपाधियों सरकारी नौकरियों का बहिष्कार इसमें शामिल था।
- उद्देश्य था कि प्रशासन को पंगु बनाना।
स्वावलंबन का नारा
- स्वदेश बांधव समिति की 159 शाखाएं पूरे ज़िले के दूर-दराज इलाकों में फैली थी।
- दत्त ने बहुसंख्यक मुसलमानों किसानों को आंदोलन के लिए प्रेरित किया।
- जनता में राजनीतिक चेतना पैदा करने के लिए समिति ने उत्तेजक भाषणों और स्वदेशी गीतों का सहारा लिया, अपने सदस्यों को शारीरिक और नैतिक प्रशिक्षण दिया, अकाल और महामारी में राहत कार्य किया, स्कूल खोले, स्वदेशी दस्तकारी का प्रशिक्षण दिया और मुकद्दमें निबटाने के लिए पंच अदालतें बनाई।
- स्वदेशी आंदोलन की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता थी इसने ‘आत्मनिर्भरता’, ‘आत्मशक्ति’ का नारा दिया।
- टैगोर के शांति निकेतन की तर्ज पर बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना की गई। इसके प्राचार्य बने अरविन्द घोष।
- अगस्त 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् का गठन हुआ। परिषद् का उद्देश्य था- ‘राष्ट्रीय नियंत्रण के तहत जनता को इस तरह की साहित्यिक, वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा देना, जो राष्ट्रीय जीवनधारा से जुड़ी हो’
- तकनीकी शिक्षा के लिए ‘बंगाल इंस्टिट्यूट’ की स्थापना की गई।
सांस्कृतिक जीवन पर प्रभाव
- स्वदेशी आन्दोलन का सबसे अधिक प्रभाव सांस्कृतिक क्षेत्र में पड़ा।
- बंगला साहित्य विशेषकर काव्य के लिए तो यह स्वर्णकाल था।
- रवीन्द्रनाथ, रजनीकांत सेन, द्विजेंद्रलाल राय, मुकुंद दास, सैयद अबू मुहम्मद इत्यादि के उस समय के लिखे गीत।
- टैगोर ने उस समय ‘बांग्लादेश’ के स्वाधीनता संघर्ष को और तेज करने के लिए प्रेरणास्रोत जो गीत लिखा था ‘आमार सोनार बांगला’ वह 1971 में बांगलादेश का राष्ट्रगान बना।
- दक्षिणारंजन मिश्र मजुमदार की लिखी हुई ‘ठाकुरमार झुली’ (दादी मां की कथाएं) आज भी बंगाली बच्चों को आह्लादित करती है।
- 1906 में स्थापित ‘इंडियान सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्टस’ (भारतीय प्राच्यकला संस्था) की पहली छात्रवृत्ति भारतीय कला के मर्मज्ञ नंदलाल बोस को मिली।
- विज्ञान के क्षेत्र में जगदीश चंद्र बोस, प्रफुल्लचंद्र राय इत्यादि की उल्लेखनीय सफलताएं
- स्वदेशी आन्दोलन ने पहली बार समाज के एक बहुत बड़े तबके को सक्रिय राष्ट्रवादी राजनीति में भागीदार बनाया।
- पहली बार औरतें घर से बाहर निकली, पहली बार मजदूर वर्ग की आर्थिक कठिनाइयों को राजनीतिक स्तर पर उठाया गया था।
- विदेशी कारखानों में हड़ताले - ईस्टर्न रेलवे और क्लाइव जूट मिलों में।
- फिरंगी हुकूमत के इशारों पर ‘इंडियन मुस्लिम लीग’ का गठन हुआ। ढाका के नवाब सलीमुल्लाह का इस्तेमाल स्वदेशी आन्दोलन के विरोधी के रूप में किया गया।
- आंदोलन के खतरे को सरकार भांप गई और उसने इसे निमर्मतापूर्वक दबाना शुरू किया।
- सार्वजनिक सभाओं, प्रदर्शनों और प्रेस पर प्रतिबंध लगाए जाने लगे।
- 1907 के कांग्रेस विभाजन ने स्वदेशी आन्दोलन को बहुत क्षति पहुंचाई।
- 1907 से 1908 के बीच बंगाल के 9 बड़े नेता जिनमें अश्विनी कुमार दत्त और कृष्णकुमार मिश्र भी थे, निर्वासित कर दिए गए।
- तिलक को 6 वर्ष की सजा हुई।
- पंजाब के अजीत सिंह और लाला लाजपतराय को निर्वासित किया गया।
- मद्रास के चिदंबरम पिल्लै और आंध्रप्रदेश के हरि सर्वोत्तम राव को गिरफ्तार कर लिया गया।
- विपिनचन्द्रपाल और अरविन्द घोष ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
- स्वदेशी आन्दोलन के पास कोई प्रभावी संगठन नहीं था। यही संघर्ष भावी राष्ट्रीय आंदोलन की नींव बना।
- स्वदेशी आंदोलन उपनिवेशवाद के खिलाफ पहला सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन था। जो भावी संघर्ष का बीज बोकर ही खत्म हुआ।
- 1911 ई. में बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा।
Post a Comment
0 Comments