Economy
मुद्रा
मुद्रा का विकास
कृषि युग में मुद्रा-
अ. प्रमुख कार्य अथवा प्राथमिक कार्य-
सामाजिक क्षेत्र में
आखेट युग में मुद्रा-
- मनुष्य की आवश्यकता भोजन तक सीमित
- अतः मनुष्य जंगली पशुओं का शिकार कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति किया करते थे।
- खाले, चमड़ा ही मुद्रा के रूप में प्रयोग।
पशुपालन के युग में मुद्रा-
- पशु विनिमय का माध्यम बना।
कृषि युग में मुद्रा-
- वस्तुएं विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग।
- यूरोप में बादाम, स्विटजरलैण्ड में अण्ड़े, मैक्सिको में नमक, मेरीलैण्ड में मक्का, सुमात्रा में नमक आदि वस्तुएं विनिमय का माध्यम रही।
औद्योगिक युग में मुद्रा-
- धातुओं का मुद्रा के रूप में चलन
- जपान में लौहे की, रोम में तांबे की , यूनान में सीसे की मुद्रा, मैक्सिको में रांगा की मुद्राएं प्रयोग।
- विश्व के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में सोने, चांदी की मुद्राओं का वर्णन मिलता है, जिनमें निष्क, शतमान, हिरण्यपिण्ड प्रमुख थी।
आधुनिक युग में पत्र एवं साख मुद्रा-
- वर्तमान युग में मुद्रा तथा साख मुद्रा का प्रचलन।
आरम्भिक अवस्था में पत्र मुद्रा प्रतिनिधि पत्र
- मुद्रा के रूप में चलन में रही, जिसका निर्गमन विभिन्न बैंकों के माध्यम से होता था।
- परन्तु मुद्रा की असीमित पूर्ति के भय से अब यह कार्य केन्द्रीय बैंक सरकार के माध्यम से करती है।
- विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में पत्र मुद्रा का स्थान अब साख मुद्रा (चैक, हुण्डी, ड्राफ्ट) ने ले लिया है।
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National Income/ GDP
मुद्रा की परिभाषा
- अंग्रेजी भाषा का शब्द Money लैटिन भाषा के शब्द मोनेटा Moneta से बना।
- पहली टकसाल रोम में देवी जूनो के मन्दिर में खुली थी। इसे मोनेटा नाम से पुकारते।
- रोमन सिक्के मोनेटा देवी का शीश, दूसरी ओर मोनेटा नाम अंकित होता था।
- लैटिन भाषा में मुद्रा शब्द के लिए पेक्यूनिया शब्द, जो पैकस शब्द से बना जिसका अर्थ पशुधन होता है।
- राबर्टसन - ऐसी वस्तु जो वस्तुओं के लिए भुगतान में स्वीकार की जाए व अन्य प्रकार के व्यावसायिक लेन-देनों के निपटारे में प्रयुक्त हो।
- मुद्रा वह हैं जो मुद्रा का कार्य करें।
- प्रो. जे.बी. से ‘मुद्रा सर्वमान्य पदार्थ होती है।’
- प्रो. एली ‘कोई भी वह वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कहलाती है।’
- सर्वमान्य- मुद्रा वह पदार्थ है जिसे जनसामान्य द्वारा लेन-देन के रूप में स्वीकार किया जाता है तथा जिसे सरकारी मान्यता प्राप्त होती है।
- मुद्रा की प्रकृति के अनुसार मुद्रा के चार कार्य निर्धारित किये जा सकते हैं।
- जिसमें विनिमय का माध्यम, मूल्य का मापन, संचय का साधन तथा स्थगित भुगतानों का आधार प्रमुख है।
अ. प्रमुख कार्य अथवा प्राथमिक कार्य-
विनिमय का साधन
- वस्तु विनिमय प्रणाली के दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई को दूर करके विनिमय प्रणाली को सरल तथा सुगम बनाया है।
मूल्य का मापन
ब. सहायक अथवा गौण कार्य-
- भावी भुगतान का आधार
- स्ंचय का साधन
- क्रय शक्ति का हस्तान्तरण
आकस्मिक कार्य-
- साख मुद्रा का आधार - चैक, हुण्डी
सामाजिक आय का वितरण-
- उत्पादन में उत्पत्ति के साधनों श्रम, पूंजी, भूमि, साहस आदि को उसकी सीमान्त उत्पादकता के अनुसार प्रतिफल मिलना चाहिए।
सम्पत्ति की तरलता-
द. अन्य कार्य-
- निर्णय का वाहक -
- मुद्रा में संग्रह शक्ति एवं सर्वग्राह्यता गुण है।
- इस कारण मनुष्य इसको संचित कर अपनी आवश्यकतानुसार एवं इच्छानुसार व्यय करके न केवल वस्तुओं को खरीद सकता है बल्कि लाभ का स्तर बढ़ा सकता है।
मुद्रा का महत्व-
दो दृष्टिकोणपरम्परावादी दृष्टिकोण
- अर्थशास्त्री: एड़म स्मिथ, जॉन स्टुअर्ट मिल
- ये मानते हैं कि मुद्रा महत्त्वहीन है, अनुत्पादक है। यह विनिमय की एक नई पद्धति मात्र है।
आधुनिक दृष्टिकोण
- मुद्रा अर्थव्यवस्था की समस्त सामाजिक, आर्थिक क्रियाओं का नियमन करती है।
- मार्शल -‘मुद्रा वह धुरी है, जिस पर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है।’
- प्रो. रॉबर्टसन -‘मुद्रा एक सामाजिक बुराई है यह समस्त बुराइयों की जड़ है।
- मुद्रा मानव के लिए वरदानों का स्रोत है परन्तु अनियंत्रण की स्थिति में यह अभिशाप है।
मुद्रा के गुण/महत्व-
आर्थिक क्षेत्र में
- उपभोग के क्षेत्र में
- उत्पादन के
- विनिमय
- श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण
- मुद्रा पूंजी की गतिशीलता में वृद्धि करती है।
- अर्थशास्त्र की धुरी
- राजस्व
सामाजिक क्षेत्र में
- सामाजिक स्वतंत्रता में वृद्धि
- सामाजिक प्रतिष्ठादायक
- सामाजिक कल्याण का मापक
- राष्ट्रीय एकता
- राजनैतिक एकता
- अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में
- रॉबर्टसन - ‘मुद्रा एक अच्छा सेवक है किन्तु बुरा स्वामी है।’
- आर्थिक जीवन में अनिश्चितता
- साधनों का केन्द्रीयकरण, असमानता
- ऋणी अर्थव्यवस्था
- शोषण में वृद्धि
- धन संग्रह का उचित माध्यम नहीं
सामाजिक दोष
- सामाजिक वर्ग भेद
- चारित्रिक एवं नैतिक पतन
- भौतिकवाद तथा द्वेषी प्रवृत्ति
- प्रतिष्ठा का आधार मुद्रा न कि ज्ञान
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