गुप्तवंश


  • गुप्तवंश के इतिहास की जानकारी हमें साहित्य, पुरातात्विक स्रोत एवं विदेशी यात्रियों के विवरण तीनों ही प्रकार के ऐतिहासिक स्रोत से प्राप्त होते हैं। 
  • साहित्यिक स्रोतों में पुराण प्रमुख है जिनसे गुप्त वंश के प्रारम्भिक इतिहास की जानकारी मिलती है।
  • विशाखदत्त की ‘देवीचन्द्रगुप्तम्’ से गुप्त शासक रामगुप्त एवं चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारे में जानकारी मिलती है।
  • कालिदास की रचनाओं जैसे  तथा शूद्रक की ‘मृच्छकटिकम’ और वात्स्यायनकृत ‘कामसूत्र’ से भी गुप्तकाल की जानकारी मिलती है।
  • विदेशी यात्रियों में चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा विवरण से चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल की 
  • ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है कि कुमारगुप्त ने नालंदा महाविहार की स्थापना करवायी थी। पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेखों, सिक्कों तथा स्मारकों से गुप्त राजवंश के इतिहास का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भलेख से उसके बारे में जानकारी मिलती है। प्रयाग प्रशस्ति के लेखक हरिषेण है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि गुहालेख से चन्द्रगुप्त द्वितीय की साम्राज्य-विजय की जानकारी 
  • स्कंदगुप्त के भितरी स्तम्भलेख से हूण आक्रमण के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। 
  • स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ अभिलेख से उसके द्वारा सौराष्ट्र प्रांत की सुदर्शन झील के पुनर्निर्माण की जानकारी मिलती है।
  • गुप्तकालीन राजाओं के सोने, चांदी तथा तांबे के सिक्के प्राप्त होते हैं। 
  • सोने के सिक्कों को दीनार, चांदी के सिक्कों को रूपक और तांबे के सिक्कों को माषक कहा जाता था। 
  • इन सिक्कों से तत्कालीन शासकों तथा उस काल की राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है।

गुप्तवंश के प्रमुख शासक -

  • गुप्त वंश का प्रथम शासक व संस्थापक श्रीगुप्त था।
  • उसके बाद घटोत्कच शासक बना।
  • ये दोनों शासक किसी के अधीन थे इसलिए इन्होंने महाराज की उपाधि धारण की।

चन्द्रगुप्त प्रथम -

  • घटोत्कच के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम राजा बना जो गुप्तवंश का पहला स्वतंत्र शासक था, जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
  • लिच्छवियों के साथ उसके अच्छे सम्बन्ध थे तथा उनका सहयोग प्राप्त करने के लिए उसने लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह किया जिसकी जानकारी स्वर्ण सिक्कों से प्राप्त होती हैं। जिसके मुख भाग पर चन्द्रगुप्त और उसकी रानी कुमारदेवी का चित्र बना हुआ है तथा पृष्ठ भाग पर लिच्छवयः उत्कीर्ण है।
  • समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त को ‘लिच्छवि दौहित्र’ अर्थात् लिच्छवि कन्या से उत्पन्न बताया गया है।
  • चन्द्रगुप्त ने ही ‘गुप्त संवत’ 319-320 चलाया था।

समुद्रगुप्त  350-375 ई.

  • चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद शासक बना। हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था। जिसने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की। इसमें समुद्रगुप्त की विजयों का वर्णन किया गया है।
  • हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति में चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा समुद्रगुप्त को उत्तराधिकारी घोषित करने का वर्णन है।
  • समुद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया। प्रयाग प्रशस्ति 
  • इतिहासकार स्मिथ ने समुद्रगुप्त को ‘भारतीय नेपोलियन’ कहा है। समुद्रगुप्त ने गरुड शैली की मुद्राएं बनवाई।
  • अपनी विजय के बाद समुद्रगुप्त ने 'अश्वमेध' यज्ञ किया। 
  • वह उच्च कोटि का विद्वान और विद्या का उदार संरक्षक था। उसने ‘कविराज’ की उपाधि धारण की थी।
  • समुद्रगुप्त वीणावादक था। 
  • श्रीलंका के राजा मेघवर्ण ने समुद्र गुप्त से गया में बौद्ध मन्दिर बनाने की अनुमति मांगी थी और इसे समुद्रगुप्त ने अनुमति दे दी थी।
  • ताम्रपत्र में समुद्रगुप्त की ‘परमभागवत’ उपाधि मिलती है।

रामगुप्त

  • यह कमजोर शासक, जिसके बारे में विशाखदत्तकृत नाटक देवीचन्द्रगुप्त में मिलती है। रामगुप्त को मारकर चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शासन स्थापित किया।

चन्द्रगुप्त द्वितीय 375-413 ई.

  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारे में जानकारी दिल्ली के ‘महरौली स्तम्भ’ से मिलती है। इसमें चन्द्र नाम का उल्लेख मिलता है।
  • विशाखदत्तकृत नाटक ‘देवीचन्द्रगुप्तम्’ में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने बड़ भाई रामगुप्त की हत्या की।
  • चन्द्रगुप्त ने नागा राजकुमारी कुबेरनागा के साथ विवाह करके नाग वंश के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये और बाद में अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक वंश के राजा रूद्रसेन द्वितीय के के साथ किया।
  • मध्य भारत स्थित वाकाटक राज्य पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव जमाकर चन्दुगुप्त द्वितीय ने पश्चिमी मालवा और गुजरात पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
  • इस विजय से चन्द्रगुप्त को पश्चिमी समुद्रतट मिल गया जो व्यापार-वाणिज्य के लिए मशहूर था।
  • इससे मालवा और उसका मुख्य नगर उज्जैन समृद्ध हुआ। उसने उज्जैन को द्वितीय राजधानी बनाया।
  • उसने पश्चिमी भारत के शकों को पराजित किया। रूद्रसिंह तृतीय चन्द्रगुप्त का प्रतिद्वन्द्वी था। 
  • शकों पर विजय के उपरान्त ही चन्द्रगुप्त ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय विजेता के साथ-साथ एक योग्य एवं कुशल प्रशासक भी था। 
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत यात्रा पर आये चीनी यात्री फाह्यान ने उसके शासन की प्रशंसा की है।
  • चन्द्रगुप्त् द्वितीय स्वयं एक विद्वान तथा विद्वानों का आश्रयदाता था। 
  • पाटलिपुत्र एवं उज्जैन उसके शासनकाल में विद्या के प्रमुख केन्द्र थे। 
  • उसके दरबार में नौ विद्वानों का एक समूह ‘नवरत्न’ निवास करते थे। इनमें कालिदास, धन्वन्तरि, क्षपणक, शंकु, वेतालभट्ट, अमरसिंह, घटकर्पर, वराहमिहिर तथा वररुचि आदि विद्वान थे।

कुमारगुप्त प्रथम ‘महेन्द्रादित्य’

  • कुमारगुप्त के विलसड़ अभिलेख, मन्दसौर अभिलेख, करमदण्डा अभिलेख आदि से इसके शासनकाल की जानकारी प्राप्त होती है।
  • उसने अश्वमेध यज्ञ करवाया।
  • कुमारगुप्त ने नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई।
  • उसके शासन के अंतिम वर्षों में विदेशी आक्रमण हुए थे जिनको उसके पुत्र स्कन्दगुप्त के प्रयत्नों से रोका जा सका।

स्कन्दगुप्त 

  • स्कन्दगुप्त के काल में हूणों का भारत पर आक्रमण हुआ था।
  • गुप्त काल का अंतिम शासक भानुगुप्त था।


  • गुप्तकाल में राजपद वंशानुगत सिद्धांत पर आधारित था।
  • गुप्त सम्राट न्याय, सेना एवं दीवानी विभाग का प्रधान होता था।
  • शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की कल्पना एवं शिव-पार्वती की एक साथ मूर्तियों का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था।
  • त्रिमूर्ति पूजा के अन्तर्गत ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा गुप्तकाल में आरम्भ हुई थी।
  • गुप्तकाल में ही मंदिर निर्माण कला का जन्म हुआ था।
  • भगवान शिव के एकमुखी एवं चतुर्मुखी शिवलिंग का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था।
  • अजन्ता की गुफाओं में चित्रकारी गुप्तकाल की देन है।
  • अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में से वर्तमान में केवल 6 गुफाएं ही शेष है।
  • अजन्ता में निर्मित गुफा संख्या 16 और 17 गुप्तकाल से सम्बन्धित है।
  • विष्णु का वाहन गरूड गुप्तकाल का राजचिह्न था।


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