History
कांग्रेसी मंत्रिमंडलों का त्यागपत्र तथा मुस्लिम लीग का ‘मुक्ति दिवस’
- 1 सितम्बर, 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया। तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो ने प्रान्तीय मंत्रिमंडलो या किसी भारतीय नेता की सलाह लिये बिना भारत को ब्रिटेन के साथ युद्ध में झोंक दिया एवं देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। कांग्रेस औपनिवेशिक स्वराज्य (युद्धोपरान्त) की ब्रिटिश घोषणा से संतुष्ट नहीं हो सकी।
- अतः कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने 22 दिसम्बर, 1939 को सामूहिक रूप से त्यागपत्र दे दिया। मुस्लिम लीग ने इस दिन को ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया।
अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त, 1940)
- अगस्त 1940 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने युद्धकालीन गतिरोध को दूर करने के लिए अगस्त प्रस्तावों की घोषणा की। इस प्रस्ताव की प्रमुख घोषणाएं निम्नलिखित थी तथा विशेष बात यह थी कि सारे प्रावधान युद्ध के बाद के थे-
- अल्पसंख्यकों को विश्वास में लिये बिना किसी भी संवैधानिक परिवर्तन को लागू नहीं किया जायेगा।
- युद्ध समाप्त होने पर विभिन्न भारतीय दलों के प्रतिनिधियों की एक सभा बुलाकर उनके साथ संवैधानिक विकास पर विचार-विमर्श किया जायेगा।
- युद्ध सम्बन्धी बातों पर विचार करने के लिए ‘युद्ध परामर्श समिति’ का गठन किया जायेगा।
- युद्ध समाप्त होने के बाद भारत को डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा प्रदान किया जायेगा।
- कंग्रेस ने अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकृत कर महात्मा गांधी को ‘व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ आरम्भ करने के लिए अधिकृत किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन
- 1940 ई. में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया गया कि गांधीजी के नेतृत्व में व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया जाये।
- इस आन्दोलन का उद्देश्य था- युद्ध में हिस्सा लेने के विरुद्ध प्रचार के लिए सत्याग्रहियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिले।
- प्रथम सत्याग्रही के रूप में विनोबा भावे तथा दूसरे सत्याग्रही के रूप में जवाहरलाल नेहरू को चुना गया। इस आन्दोलन के नेता गांव-गांव जाकर लोगों को दिल्ली जाने को कहते थे, अतः इस आन्दोलन को ‘दिल्ली चलो आन्दोलन’ भी कहा जाता है।
क्रिप्स मिशन (22 मार्च, 1942 ई.)
- अमेरिका, रूस और फ्रांस के द्वारा संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए दबाव देने पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने स्टैफोर्ड क्रिप्स की अध्यक्षता में एक मिशन 22 मार्च, 1942 को भारत भेजा, जिसे ‘क्रिप्स मिशन’ कहा जाता है। इसके अन्य सदस्य थे- ए.पी. अलेक्जेण्डर तथा पैंथिक लारेंस।
- कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि यह भारतीय एकता एवं अखण्डता के लिए घातक था। गांधीजी ने इस प्रस्ताव को ‘दिवालिया बैंक के नाम भविष्य की तिथि में भुनाने वाला चेक’ कहा तथा नेहरू ने कहा कि ‘क्रिप्स प्रस्ताव एक ऐसे बैंक के नाम चेक है जो टूट रहा है।’
- मुस्लिम लीग ने भी इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि इसमें पाक का उल्लेख नहीं था।
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