चौहान वंश का मूल स्थान सांभर के पास सपादलक्ष क्षेत्र है।
चौहान वंश के संस्थापक - वासुदेव चौहान 551 ई. था
बिजोलिया शिलालेख के अनुसार उसने सांभर झील का निर्माण करवाया था।
पृथ्वीराज प्रथम
विग्रहराज तृतीय का पुत्र था।
उसने 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' का विरुद धारण किया था।
'प्रबंधकोश' के लेखक राजशेखर के अनुसार पृथ्वीराज प्रथम तुर्क सेना का विजेता था।
अजयराज (1105—1133 ई.)
पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र।
चौहानों की जिस शक्ति का प्रारंभ वासुदेव के काल में हुआ, उसका सुदृढ़ीकरण अजयराज के काल में हुआ, क्योंकि इसके काल में ही चौहान राज्य का सर्वाधिक विस्तार किाय गया।
उसने उज्जैन पर आक्रमण कर मालवा के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया।
उसने 1113 ई. में स्वयं के नाम से अजयमेरु (अजमेर) की स्थापना की और अजयमेरु किले का निर्माण भी इसी वर्ष करवाया।
इस किले का नाम तारागढ़ 15वीं सदी में मेवाड के महराणा रायमल के पुत्र कुंवर पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी के नाम पर रखा।
यह बीठड़ी की पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे गढ़बीठड़ी भी कहते हैं।
उसकी राजनीतिक प्रतिभा का प्रमाण उसके द्वारा चलाए गए चांदी व तांबे के सिक्कों से स्पष्ट होता है। चांदी के सिक्कों पर 'श्री अजयदेव' नाम अंकित था।
उसकी कुछ मुद्राओं पर रानी सोमलवती का नाम अंकित मिलता है।
वह शैव मतानुयायी था। वह धार्मिक सहिष्णु व्यक्ति था। उसने नगर में जैन मंदिरों के निर्माण हेतु सहमति प्रदान की। पार्श्वनाथ के मंदिर हेतु स्वर्ण कलश प्रदान किया।
पृथ्वीराज विजय के अनुसार उसने तुर्कों को पराजित किया था।
अर्णोराज (1133-1150 ई.)
अजयराज का पुत्र।
चालुक्य शासक ने राजनीतिक लाभ की दृष्टि से अपनी बहन कंचन देवी का विवाह अर्णोराज के साथ किया तथा अर्णोराज की सहायता से मालवा के शासक यशोवर्मन को पराजित किया।
उसने 1137 ई. में अजमेर में आनासागर झील का निर्माण कराया।
अर्णोराज आबू के निकट हुए युद्ध में चालुक्य शासक कुमारपाल से पराजित हुआ।
वह अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु था। वह शैव मतानुयायी था।
उसने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
अजमेर में खतरगच्छ के अनुयायियों को भूमि दान में दी।
देव घोष और धर्मघोष विद्वानों का सम्मान किया।
1155 ई. में अर्णोराज की हत्या उसके ज्येष्ठ पुत्र जगदेव ने कर दी। वह 'चौहानों में पितृहन्ता' के नाम से प्रसिद्ध है।
विग्रहराज चतुर्थ (1158-1163 ई.)
बिजोलिया लेख के अनुसार उसने तोमरों को पराजित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और तोमरों को अपना सामंत बना लिया।
विग्रहराज के दिल्ली शिवालिक लेख के अनुसार उसने म्लेच्छों से देश की रक्षा की।
उसका समकालीन लाहौर का तुर्क शासक खुसरूशाह था।
विग्रहराज विद्वानों का आश्रयदाता था। सोमदेव ने 'ललित विग्रहराज' नामक
वह बीसलदेव के नाम से विख्यात था। वह स्वयं संस्कृत का महान विद्वान था उसने संस्कृत में हरिकेली नाटक लिखा।
विग्रहराज चतुर्थ ‘बीसलदेव’ 1150-1163 ई.
बीसलदेव का शासनकाल चौहान वंश का स्वर्णकाल माना जाता है।
विग्रहराज को विद्वानों को आश्रय देने के कारण कवि बान्धव कहलाये।
विग्रहराज ने संस्कृत में हरिकेलिी नामक नाटक लिखा।
विग्रहराज का दरबारी कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज की रचना की।
विग्रहराज ने अजमेर मे एक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया। जिसे बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर अढाई दिन के झोपडे का निर्माण करवाया।
टोंक में बीसलपुर गांव में बीसलसागर तालाब का निर्माण करवाया।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय
अजमेर के अंतिम प्रतापी राजा जिसेन दिल्ली तक साम्राज्य का विस्तार किया।
मात्र 11 वर्ष की आयु 1177 ई. में अजमेर का शासक बना। माता कर्पूरी देवी ने शासन प्रबन्ध संभाला। कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचन्द की पुत्री जिसे पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर से उठा लाये व विवाह किया।
पृथ्वीराज चौहान ने दलपुंगल की उपाधि धारण की।
तराइन का प्रथम युद्ध - 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के मध्य करनाल के पास तराइन के मैदान में हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी पराजित हुआ।
तराइन का द्वितीय युद्ध - 1192 ई. में पृथ्वीराज व मुहम्मद गौरी के मध्य। पृथ्वीराज पराजित।
चन्द्रबदाई, जयानक, आदि विद्वान उसके दरबार में थे।
रणथम्भौर के चौहान
पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद उसके पुत्र गोविन्दराज को अजमेर का राजा बनाया गया, पर शीघ्र ही पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने गोविन्दराज से अजमेर छीन लिया।
गोविन्दराज ने रणथम्भौर में चौहान वंश की नींव डाली।
हम्मीरदेव -1282 ई. में शासक बना।
हम्मीर ने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन के विद्रोही सैनिक नेता मुहम्मद शाह को शरण प्रदान की जिससे नाराज होकर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 ई. में रणथम्भौर पर आक्रमण किया।
जालौर के सोनगरा चौहान
जालौर के चौहान वंश की स्थापना कीर्तिपाल चौहान ने की थी।
कान्हड़दे
1305 ई. में शासक बना।
उसके समय 1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण किया और उसका नाम खैराबाद रखा। कमालुद्दीन गुर्ग को दुर्गरक्षक नियुक्त किया। वीर सातल और सोम वीर गति को प्राप्त हुए।
1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग पर आक्रमण किया जिसमें कान्हड़देव व उसका पुत्र वीरमदेव वीरगति को प्राप्त हुए।
इस युद्ध का वर्णन कवि पद्मनाभ द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कान्हड़देव प्रबंध’ तथा ‘वीरमदेव सोनगरा री बात’ में मिलता है
नाडौल के चौहान
संस्थापक लक्ष्मण ने 960 ई. के लगभग चावड़ा राजपूतों के आधिपत्य से अपने आपको स्वतंत्र कर नाडौल में चौहान वंश की स्थापना की।
सिरोही के चौहान
सिरोही को साहित्य में अर्बूद प्रदेश कहा गया है।
कर्नल टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूल नाम शिवपुरी था।
मध्यकाल में परमारों का राज्य, जिनकी राजधानी चन्द्रावती था।
1311 ई. के लगभग चौहानों की देवड़ा शाखा के आदि पुरुष लुम्बा द्वारा स्थापना। इसकी राजधानी चन्द्रावती थी।
आबू और चन्द्रावती को परमारों से छीनकर वहां अपनी स्वतंत्रता स्थापित की।
उसने 1320 ई. में अचलेश्वर मन्दिर का जीर्णोद्धार कर एक गांव हैठूडी भेंट किया।
सिरोही की स्थापना
चन्द्रावती पर लगातार मुस्लिम आक्रमण के कारण राजधानी सुरक्षित नहीं रही। देवड़ा राजा रायमल के पुत्र शिवभान ने सरणवा पहाड़ों पर एक दुर्ग की स्थापना की और 1405 ई. में शिवपुरी नगर बसाया।
उसके पुत्र सहसामल ने शिवपुरी से दो मील आगे 1425 ई. में नया नगर बसाया जिसे आजकल सिरोही के नाम से जाना जाता है।
सहसामल बड़ा महत्त्वाकांक्षी शासक था।
महाराणा कुंभा ने डोढ़िया नरसिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजी जिसने आबू, बसन्तगढ़ और भूड तथा सिरोही के पूर्वी भाग को अपने राज्य में मिला लिया।
अपनी विजय के उपलक्ष में महाराण कुंभा ने वहां अचलगढ़ दुर्ग, कुम्भास्वामी मंदिर, एक ताल और राजप्रासाद का निर्माण करवाया।
1451 ई. में लाखा सिरोही का शासक बना। कुंभा की मृत्यु के बाद लाखा ने आबू जीत लिया।
उसने पावागढ़ से लाकर कालिका की मूर्ति सिरोही में स्थापित की और अपने नाम से लाखनाव तालाब का निर्माण करवाया।
1823 ई. में शिवसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर राज्य की सुरक्षा का जिम्मा उसे सौंप दिया।
सिरोही राज्य राजस्थान में जनवरी, 1950 में मिलाया गया।
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