राजनीति तथा लोक प्रशासन द्विविभाजन की विचारधारा को स्पष्ट कीजिए? Public Administration

राजनीति तथा लोक प्रशासन द्विविभाजन की विचारधारा को स्पष्ट कीजिए?

वुडरों विल्सन ने 1887 में राजनीति-प्रशासन द्विविभाजन की विचारधारा का प्रतिपादन किया। उन्होंने अपनी पुस्तक The Study of Administration में बताया कि राजनीति का कार्य नीति निर्माण से है तथा प्रशासन का कार्य नीति क्रियान्वयन से है। अतः स्पष्ट है कि दोनों के कार्यों की प्रकृति में अंतर है। इसी कारण राजनीति का अध्ययन ‘राजनीति विज्ञान’ के तहत होना चाहिए। पुनः प्रशासन में कार्यकुशलता तथा मितव्ययिता को प्राप्त करने के लिए इसे राजनीति के मूल्यों से अलग रखने का प्रयास किया गया। परन्तु इसके साथ ही विल्सन द्वारा यह भी प्रस्तावित किया गया कि प्रशासनिक कार्यों का संचालन राजनीति के मूल्यों के अंतर्गत देखा जा सकता है।

वस्तुतः दोनों में एक महत्त्वपूण्र अंतर यह है कि राजनीतिज्ञ का मुख्य संबंध से शक्ति कैसे प्राप्त की जाये, संभाला जाये तथा अपने विरोधियों को कैसे शक्ति से अलग किया जाये से है, जबकि प्रशासक को यह सत्ता उसके पद अथवा स्थिति के कारण दी गई है और उसका कार्य यह है कि वह इसका उपयोग जनता के लिए विशेष सामग्री या सेवाओं के उत्पादन हेतु करे।
1990 में फ्रेंक गुडनाउ ने राजनीति-प्रशासन द्विविभाजन की विचारधारा का समर्थन किया। उन्होंने दोनों के कार्यों से संबंधित संस्थागत अथवा संरचनात्मक अंतर को स्पष्ट करते हुए अपने विचार रखे। उन्होंने राजनीति के कार्यों के संचालन हेतु सरकार की विधायिका अंग तथा प्रशासनिक कार्यों हेतु सरकार, सरकार के कार्यकारी अंग को उत्तरदायी माना। इसके अलावा विलोबी ने न केवल प्रशासन को राजनीति से अलग किया बल्कि विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के साथ इसको सरकार की चौथी शाखा के रूप में खड़ा करने का प्रयास किया।

ल्ेकिन लोक प्रशासन के विकास के पांचवें चरण (1971-1990) में प्रशासन को नीति-निर्माण का एक अभिन्न अंग माना गया। इसके निम्नांकित कारण हैं-
1. राजनीतिज्ञ अब नीति-निर्माण करते हैं, तो लोक प्रशासक उन्हें तकनीकी परामर्श तथा प्रशासनिक सहयोग प्रदान करते है।
2. किसी भी प्रशासनिक संगठन के उच्चतम स्तर पर नीति-निर्माण तथा नीति-क्रियान्वयन के बीच अंतर का स्पष्टीकरण नहीं किया जा सकता है। नीति क्रियान्वयन के समय प्राप्त अनुभवों को वास्तविक नीति-निर्माण में शामिल करना अनिवार्य है।
3. पुनः वर्तमान समय में प्रत्यायोजन विधान की विचारधारा ने दोनों के बीच के अंतर को काफी कम कर दिया है। प्रत्यायोजन विधान के कारण संसद के द्वारा नीति-निर्माण के कार्य को कार्यपालिका या प्रशासन को हस्तांनरित किये जा रहे हैं। इसके कारण नीति-निर्माण की प्रक्रिया में लोक प्रशासन की भूमिका अधिक सक्रिय होती जा रही है।
4. लोक प्रशासक अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं एवं आंकड़े एकत्रित करते हैं, जो नीति-निर्माण की प्रक्रिया में एक आगत या निवेश का कार्य करते है।
राजनीति-प्रशासन द्विविभाजन के आलोचकों का कहना है किक प्रशासन के अराजनीतिक दृष्टिकोण पर इतना बल दिया गया है कि उसने प्रशासन को अपरिवर्तनीय परिमाण बना दिया है जो अपने सिद्धांतों का अनुसरण करता है चाहे सरकार का स्वरूप कैसा भी हो तथा जिन राजनीतिक मूल्यों के अधीन इसे काम करना है। यह दृष्टिकोण गलत है क्योंकि किसी देश की राजनीतिक व्यवस्था उसकी प्रशासनिक व्यवस्था से न तो बाहर है और न ही असंबंधित द्वितीय, उनका कहना है कि प्रशासन का अराजनीतिक दृष्टिकोण विकृत होकर राजनीतिक विरोधी हो गया है और दलीय तथा प्रतिनिधि सरकार की पद्धतियों को नष्ट करनेवाला प्रभाव मानकर इनसे छुटकारा प्राप्त करना चाहता है। प्रशासक का इस प्रकार का व्यवहार लोकतंत्र के लिए खतरा है तथा इससे नौकरशाही के निरंकुशतंत्र की स्थापना हो सकती है।

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