Indian Constitution
मौलिक अधिकारों व राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में सम्बन्ध
- मौलिक अधिकार व राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत परस्पर विरोधी नहीं बल्कि दोनों का उद्देश्य समान है अर्थात् आर्थिक-सामाजिक न्याय पर आधारित समाज की स्थापना करना, इसलिये दोनों एक-दूसरे के पूरक है।
- मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि नीति निर्देशक सिद्धांत वाद योग्य नहीं है।
- मौलिक अधिकार व्यक्तिनिष्ठ हैं, जबकि नीति निर्देशक सिद्धांत को केवल राज्य लागू करता है।
- मौलिक अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं, जबकि नीति निर्देशक सिद्धांत इन प्रतिबंधों से मुक्त हैं।
- मौलिक अधिकार राज्य की शक्ति को सीमाओं में बांधते है, जबकि नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य को कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।
- नीति निर्देशक सिद्धांत न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है और ये किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई ऐसे अधिकारों का सृजन नहीं करते हैं जिनका न्यायालय द्वारा निर्णय हो सके, जबकि मौलिक अधिकारों के आधार पर न्यायालय निर्णय दे सकता है।
- मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक सिद्धांत में कौन सर्वोच्च है? इस पर काफी वाद-विवाद हुए हैं। चम्पक दोराइन बनाम मद्रास राज्य विवाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मूल अधिकारों को प्राथमिकता दी गई।
- ‘गोलक नाथ विवाद’ 1967 में भी सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता दी। परन्तु, इन्दिरा सरकार ने संविधान के 24वें एवं 25वें संशोधनों द्वारा नीति निर्देशक तत्वों को मौलिक अधिकारों पर वरीयता दी।
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