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Showing posts from February, 2018

2017 में हुए युद्ध सैन्य अभ्यास

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अल-निगाह भारतीय और ओमान की फौजों के बीच दूसरा ‘अल-निगाह’ संयुक्त सैन्य अभ्यास 6 से 19 मार्च, 2017 तक हिमाचल प्रदेश के बकलोह में हुआ। वरुण-17 पश्चिमी जहाजी बेड़े ने अप्रैल-2017 में फ्रांस की नौसेना के साथ तौलोन, फ्रांस के निकट वरुण-17 द्विपक्षीय अभ्यास में भाग लिया। आईएनएस त्रिशूल, मुम्बई तथा आदित्य ने एकीकृत हेलिकॉप्टरों के साथ इस अभ्यास में भाग लिया। कोंकण -17 आईएनएस तरकश मई 2017 के दौरान इंगलैण्ड में रॉयल नेवी के साथ द्विपक्षीय अभ्यास कोंकण-17 में भागीदारी की। अभ्यास के दौरान जहाज प्लाइमाउथ लंदन गया और एचएवएस त्रिकोमाली द्विशताब्दी वर्ष समारोहों तथा लंदन में ‘भारत-इंगलैण्ड संस्कृति वर्ष’ समारोह में भाग लिया। भारत-श्रीलंका संयुक्त सैन्य अभ्यास मित्र शक्ति - 2017 5वां भारत-श्रीलंका संयुक्त सैन्य अभ्यास मित्र शक्ति 2017 का आयोजन 13 से 26 अक्टूबर तक पुणे की औंध छावनी में हुआ। इसके तहत अर्द्धशहरी क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी अभियान का अभ्यास किया गया। भारत-नेपाल संयुक्त सैन्य अभ्यास सूर्य किरण - XI सूर्य किरण - XI 7 से 20 मार्च, 2017 तक पिथौरागढ़ में आयोजित हुआ। इस संयुक्त सैन...

राजस्थान का प्रमुख नदी तंत्र

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अपवाह तन्त्र से तात्पर्य नदियां एवं उनकी सहायक नदियों से है जो एक तन्त्र अथवा प्रारूप का निर्माण करती हैं। राजस्थान में वर्ष भर बहने वाली नदी केवल चम्बल है।  राजस्थान के अपवाह तन्त्र को अरावली पर्वत श्रेणियां निर्धारित करती है। अरावली पर्वत श्रेणियां राजस्थान में एक जल विभाजक है और राज्य मे बहने वाली नदियों को दो भागों में विभक्त करती है। इसके अतिरिक्त राज्य में अन्तः प्रवाहित नदियां भी हैं।  बहाव की दृष्टि से राजस्थान की नदियों को निम्नलिखित तीन समूहों मंे विभक्त किया जाता हैः- बंगाल की खाडी में गिरने वाली नदियां अरब सागर में गिरने वाली नदियां अन्तः प्रवाहित नदियां 1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां- इसके अन्तर्गत चम्बल, बनास, बाणगंगा और इनकी सहायक नदियां सम्मलित हैं।  चम्बल नदी -   प्राचीन नाम चर्मण्वती, इसे राजस्थान की कामधेनु भी कहते हैं। इसका उद्भव मध्यप्रदेश में महू के पास स्थित जानापाव की पहाड़ी से हुअर है।  यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई राजस्थान में चौरासीगढ़ (चितौड़गढ़ जिला) नामक स्थान पर प्रवेश करती है और कोटा व बू...

धन का बहिर्गमन

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भारत में औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था एवं प्रभाव महादेव गोविन्द रानाडे के अनुसार ‘‘राष्ट्रीय पूंजी का एक-तिहाई हिस्सा किसी-न-किसी रूप में ब्रिटिश शासन द्वारा भारत के बाहर ले जाया जाता है।’ भारत पर ब्रिटेन के आर्थिक नियन्त्रण का सबसे पहला परिणाम यह हुआ कि परम्परागत भारतीय हस्तशिल्प उद्योग समाप्त होते चले गये। भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में इस प्रक्रिया को ‘अनौद्योगीकरण’ के रूप में जाना जाता है। 1800-1850 फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार ‘यह भारत एक अथाह गड्ढ़ा है, जिसमें संसार का अधिकांश सोना और चांदी चारों तरफ से अनेक रास्तों से आकर जमा होता है... यह मिस्र से भी अधिक धनी देश हैं।’ धन का बहिर्गमन/सम्पत्ति का अपवाह Drain Of Wealth ब्रिटेन द्वारा भारत के कच्चे माल, संसाधनों और धन की निरन्तर लूट को दादाभाई नौरोजी, एम.जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से ‘धन के बहिर्गमन’ के सिद्धांत को प्रतिपादित किया। बहिर्गमन की राष्ट्रवादी परिभाषा का तात्पर्य भारत से धन-सम्पत्ति एवं माल का इंग्लैण्ड में हस्तान्तरण था, जिसके बदले में भारत को इसके समतुल्य कोई भी आर्थिक, वाणिज्यिक या भौ...

बूंदी की सुंदरता में चार चाँद लगाता है तारागढ़ दुर्ग और झीलें

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राजस्थान के अरावली पर्वतमाला में बसे बूंदी ज़िले की सुरक्षा प्रहरी की तरह है बूंदी का तारागढ़ दुर्ग। हाड़ा राजपूतों के अप्रतिम शौर्य और वीरता का प्रतीक बूंदी का तारागढ़ पर्वतशिखरों से सुरक्षित होने के साथ-साथ नैसर्गिक सौन्दर्य से भी ओतप्रोत है। यह गिरि दुर्ग का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका निर्माण 14वीं सदी में 1354 ई. में बूंदी के संस्थापक राव देव हाड़ा ने करवाया। राजस्थान के अन्य किलों की तुलना में इस दुर्ग पर मुगल स्थापत्य कला का कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं देता। यह दुर्ग ठेठ राजपूती स्थापत्य व भवन निर्माण कला से बना हुआ है।  सुदृढ़ और उन्नत प्राचीर, विशाल प्रवेशद्वार और अतुल जलराशि से परिपूर्ण तालाब ऐसा नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करते हैं कि तारागढ़ का सौन्दर्य देखते ही बनता है। बूंदी और उसका निकटवर्ती प्रदेश (कोटा सहित) तक हाड़ा राजवंश द्वारा शासित होने के कारण हाड़ौती के नाम से जाना जाता है। कविराजा श्यामलदास द्वारा लिखित ग्रंथ ‘वीर विनोद’ में उल्लेख - ‘कुल मीनों का सरदार जैता बूंदी में रहता था जिसको दगा से देवसिंह ने मार डाला। उसके खानदान के लोगों को भी जो शराब के नशे में गा...

मारवाड़ का राठौड़ वंश

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राजस्थान के उत्तरी और पश्चिमी भागों में राठौड़ राज्य स्थापित थे। इनमें जोधपुर और बीकानेर के राठौड़ राजपूत प्रसिद्ध रहे हैं। जोधपुर राज्य का मूल पुरुष राव सीहा था, जिसने मारवाड़ के एक छोटे भाग पर शासन किया। परन्तु लम्बे समय तक गुहिलों, परमारों, चौहानों आदि राजपूत राजवंशों की तुलना में राठौड़ों की शक्ति प्रभावशाली न हो पाई थी। बीठू आहड पाली के देवल अभिलेख के अनुसार राव सीहा कुवंर सेतराम का पुत्र था। राव चूंडाः-  राठौडों का प्रथम बडा शासक वीरमदेव का पुत्र  मण्डौर किला जीता, नागौर आदि राज्यों को जीतकर मारवाड की  बेटी हंसाबाई का विवाह राणा लाखा से किया। राठौड़ शासक राव जोधा ने नयी राजधानी जोधपुर में 1459 में स्थापित की तथा इस सुरक्षित रखने के लिए चिड़िया टूंक पहाडी पर नया दुर्ग मेहरानगढ़ बनवाया। राव गांगा (1515-1532) ने खानवा के युद्ध में 4000 सैनिक भेजकर सांगा की मदद की थी। इस प्रकार सांगा जैसे शक्ति सम्पन्न शासक के साथ रहकर राव गांगा ने अपने राज्य का राजनीतिक स्तर ऊपर उठा दिया।  जोधपुर में गांगालाव तालाब और गांगा की बावडी बनवायी। राव मालदेव ‘हशमतवाला ...

महाराणा प्रताप : राष्ट्रप्रेम और स्वाभिमान का प्रतीक

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महाराणा प्रताप (1572-97 ई.) इनका जन्म विक्रम संवत 1597 (9 मई 1540 ई.) को कुम्भलगढ़ दुर्ग (कटारगढ़) के बादल महल में हुआ। महाराणा प्रताप का जन्म वीर विनोद के अनुसार 15 मई 1539 ई. (मुहणोत नैनसी के अनुसार 4 मई 1540 ई.) को कुंभलगढ़ में हुआ था। पिताः उदयसिंह माताः जैवन्ता बाई (पाली नरेश अखैराज सोनगरा चौहान की पुत्री) प्रताप का बचपन का नामः कीका विवाह: 1557 ई. में अजब दे पंवार के साथ हुआ जिससे 16 मार्च 1559 ई. में अमरसिंह का जन्म हुआ। उदयसिंह की होली के दिन 28 फरवरी 1572 ई. को गोगुन्दा में मृत्यु हो गई। यहां स्थित महादेव बावड़ी पर 28 फरवरी 1572 ई. को मेवाड़ के सामंतों एवं प्रजा ने प्रतापसिंह का महाराणा के रूप में राज तिलक किया। उदयसिंह द्वारा नामित उत्तराधिकारी जगमाल को मेवाड़ के वरिष्ठ सामंतों ने अपदस्थ कर दिया। उदयसिंह ने अपनी रानी भटयाणी के प्रभाव में आकर प्रताप की जगह जगमाल को उत्तराधिकारी बना गया। सोनगरा अखैराज ने जगमाल को गद्दी से हटाकर प्रताप को गद्दी पर बैठाया, कृष्णदास ने प्रताप की कमर में राजकीय तलवार बांधी।  1570 ई. में अकबर का नागौर में दरबार लगा जिसमें मेवाड़ के अला...

कार्बन के अपररूप

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आवर्त सारणी के उपवर्ग में 4 ए का सदस्य है। कार्बन का संकेत - सी परमाणु संख्या - 6 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास - 1s 2 2s 2 2p 2 संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या - 4 किसी तत्त्व के दो या दो से अधिक रूप जो गुणधर्मों में एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं, अपररूप कहलाते हैं तथा इस गुण को अपररूपता कहते हैं। कार्बन प्रकृति में विभिन्न अपरुपों में पाया जाता है। इनके भौतिक गुणधर्म व व्यवहार भिन्न होते हैं।  कार्बन मुक्त अवस्था में हीरा, ग्रेफाइट तथा कोयले के रूप में पाया जाता है। कार्बन वर्ग के तत्वों में लेड को छोड़कर सभी अपरूपता का गुण प्रदर्शित करते हैं। क्रिस्टलीय अपररूप - वह अपररूप जिसमें कार्बन परमाणु एक निश्चित व्यवस्था में व्यवस्थित रहते हुए एक निश्चित ज्यामिति से निश्चित बन्धकोण का निर्माण करते हैं, क्रिस्टलीय अपररूप कहलाते हैं। हीरा  हीरे में कार्बन का प्रत्येक कार्बन परमाणु के चार अन्य परमाणुओं के साथ आबंधित होकर एक दृढ़ त्रिआयामी चतुष्फलकीय संरचना का निर्माण करता है। यह कार्बन का अतिशुद्ध रूप है। इसमें कार्बन-कार्बन के मध्य बन्ध दूरी 1.54  A 0 ...

विटामिन की कमी से होने वाले रोग

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विटामिन पोषण के लिए महत्त्वपूर्ण तत्व हैं। शरीर को इनकी बहुत ही कम आवश्यकता होती है , फिर भी इनका शरीर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इनका ऊर्जा स्रोत के रूप में कोई महत्त्व नहीं है किंतु शरीर के विभिन्न उपापचयी प्रक्रमों पर नियंत्रण करते हैं और शरीर की बीमारियों से रक्षा करते हैं। विटामिन की कमी से भी रोग होते हैं जिन्हें अपूर्णता रोग कहते हैं। विटामिन केवल भोजन से प्राप्त होते हैं , क्योंकि इनका संश्लेषण केवल पादप ही कर सकते हैं। हमारे शरीर की कोशिकाओं द्वारा इनका संश्लेषण नहीं हो सकता। इसकी पूर्ति के लिए विटामिनयुक्त भोजन से होती है। विटामिन D एवं विटामिन K का संश्लेषण मानव शरीर में होता है। विटामिन शब्द का प्रयोग सी फंक ने सन् 1911 ई. में किया। विलेयता के आधार पर विटामिनों को दो वर्गों में बांटा गया है- जल में घुलनशील विटामिन - B तथा C वसा में घुलनशील विटामिन – A, D, E, K विटामिन कार्य मुख्य स्रोत कमी के प्रभाव विटामिन A (रेटिनॉल) वृद्धि , आंखों की निरोगता , त्वचा , श्लेष्मा झिल्ली की कोशिकाओं की क्रिया करता है। म...