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ध्वनि प्रदूषण
- मानव के कानों में ध्वनि को सुगमतापूर्वक ग्रहण करने की एक सीमा होती है। इस निर्धारित सीमा से अधिक की ध्वनि सुनने से जब मानव के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है, तब उसे ध्वनि प्रदूषण या शोर कहा जाता है। इससे सम्बन्धित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
- ध्वनि के स्तर को डेसीबल (db) नामक इकाई में मापा जाता है। डेसीबल की माप शून्य से प्रारंभ होती है।
- 0 डेसीबल वह ध्वनि है जिसे कानों द्वारा सुना या ग्रहण नहीं किया जा सकता।
- सामान्यतया 25 डेसीबल तक की ध्वनि को खामोशी, 26 से 65 तक की ध्वनि को शांत, 66 से ऊपर शोर, 75-80 से ऊपर अत्यधिक शोर कहा जाता है।
- सामान्य रूप से व्यक्तियों की बातचीत में ध्वनि का स्तर 60 डेसीबल के आसपास होता है।
- 80 डेसीबल तक भी मनुष्य का स्वास्थ्य झेल सकता है लेकिन 90 डेसीबल से अधिक की ध्वनि अत्यधिक नुकसानदेह है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 45 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि मानव जीवन के लिए हानिकारक है।
ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव
- किसी व्यक्ति द्वारा 85 डेसीबल से अधिक की ध्वनि यदि लगातार सुनी जाये तो उसके कान व सिर में दर्द होने लगता है तथा संबंधित व्यक्ति को स्थायी या अस्थायी रूप से बहरापन आ सकता है।
- यदि कोई 120 डेसीबल से अधिक ध्वनि वाले क्षेत्र में कुछ दिन के लिए रहे तो इतनी ध्वनि से उसके स्नायु तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है, अंतःस्रावी ग्रंथियां अनियमित हो जाती हैं, जिसके कारण मानसिक तनाव में वृद्धि, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, स्मृति का कमजोर हो जाना तथा बहरेपन की शिकायतें होने लगती हैं, ऐसे व्यक्ति को दिल का दौरा भी पड़ सकता है।
- 120 डेसीबल से अधिक की ध्वनि गर्भवती महिला, उसके गर्भस्थ शिशु, बीमार व्यक्तियों तथा दस साल से छोटी उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य को अधिक हानि पहुंचाती है।
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