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Showing posts from July, 2018

स्थानीय स्वशासन निकाय एवं पंचायती राज

भारतीय संविधान में 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा नगरीय स्थानीय शासन को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। राज्य में तीन तरह की शहरी संस्थायें हैं - नगर निगम, नगर परिषद तथा नगर पालिका। वर्तमान में राजस्थान में 6 नगर निगम (अजमेर, जयपुर, कोटा, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर), 13 नगरपरिषद तथा 170 नगरपालिका मिलाकर कुल 188 नगरीय निकाय हैं। पंचायती राज- भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित

समुद्री मार्ग से भारत आने वाली प्रमुख यूरोपीय कंपनियां

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समुद्री मार्ग से भारत आने वाली प्रमुख यूरोपीय कंपनियों का क्रम निम्न प्रकार था - पुर्तगाली, डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी। प्राचीनकाल से ही भारत में विदेशियों के प्रवेश के दो रास्ते थे - उत्तर पश्चिमी सीमा का प्रसिद्ध स्थल मार्ग, और समुद्री मार्ग। सर्वप्रथम 1407 ई. में ‘बार्थोलोम्यू डियाज’, उत्तामशा अंतरीप’ (केप ऑफ गुड होप) पहुंचा और उसे ‘तूफानी अंतरीप’ कहा। यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया।

भारत में शिक्षा का विकास

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सीरामपुर के मिशनरियों ने 1818 में ‘बैपटिस्ट मिशन कॉलेज’ की स्थापना की। प्राचीनकाल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी 1765 ई. से भारत में राज्य कर रही थी परंतु उसने भारतीय शिक्षा का भार निजी हाथों में ही रहने दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी एक विशुद्ध व्यापारिक कंपनी थी। उसका उद्देश्य व्यापार करके केवल अधिक से अधिक लाभ कमाना था तथा देश में शिक्षा को प्रोत्साहित करने में उसकी कोई रुचि नहीं थी। प्रारंभ में शिक्षा के प्रोत्साहन एवं विकास हेतु जो भी प्रयास किये गये, वे व्यक्तिगत स्तर पर ही किये गये थे। भारत में शिक्षा के प्रसार करने का मुख्य कार्य ईसाई मिशनरियों द्वारा शुरू किया गया। मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना था। ईसाई मिशनरियों ने भारत में शिक्षा के प्रचार के लिए सीरामपुर, बंगाल को अपना केन्द्र बनाया। सीरामपुर के मिशनरियों ने 1818 में ‘बैपटिस्ट मिशन कॉलेज’ की स्थापना की। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास 1813 ई. में किया गया। 1813 के चार्टर अधिनियम द्वारा...

छन्द

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परिभाषा - जिस शब्द-योजना में वर्णों या मात्राओं और यति-गति का विशेष नियम हो, उसे छन्द कहते हैं। छन्द को पद्य का पर्याय कहा है। विश्वनाथ के अनुसार ‘छन्छोबद्धं पदं पद्यम्’ अर्थात् विशिष्ट छन्द में बंधी हुई रचना को पद्य कहा जाता है। छन्द ही वह तत्व है, जो पद्य को गद्य से भिन्न करता है।  आधुनिक हिन्दी कविता में परम्परागत छन्द का बंधन मान्य नहीं है। उसमें ‘मुक्त छन्द’ का प्रयोग होता है। बिना छन्द या लय के कविता की रचना नहीं की जा सकती। छन्द का अर्थ -  छन्द शब्द की व्युत्पत्ति छद् धातु से मानी गयी है, जिसके दो अर्थ है -   बांधना या आच्छादन करना।  आह्लादित करना। छन्द-प्रभाकर में छन्द की परिभाषा  ‘मत्तवरण गति यति नियम अन्तहि समता बन्द। जा पद रचना में मिले, भानु भनत सुइच्छन्द।। वर्णों या मात्राओं की संख्या व क्रम तथा गति, यति और चरणान्त के नियमों के अनुसार होने वाली रचना को छन्द कहते हैं। छन्दशास्त्र को ‘पिंगल-शास्त्र’ भी कहते हैं क्योंकि इसके प्रथम प्रधान प्रवर्तक श्री पिंगलाचार्य थे। कविता में छन्दों का उपयोग और महत्त्व - आज...

कीटों द्वारा संचरित रोग

कीट संचरित रोग रोगजनक कीटाणु पोषी मादा ऐनाफिलीज      मलेरिया प्लाज्मोडियम वाइवैक्स मनुष्य मादा क्यूलैक्स फाइलेरिया/ हाथी पांव वुचरेरिया बैंकोफ्टाइ मनुष्य मादा एडीज एजिटाई पीत ज्वर वायरस

सौरमंडल

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सूर्य, चंद्रमा खगोलीय पिंड कहलाते हैं। कुछ खगोलीय पिंड बड़े आकार वाले तथा गर्म होते हैं। ये गैसों से बने होते हैं। इनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जिसे वे उत्सर्जित करते हैं। इन खगोलीय पिंडों को तारा कहते हैं। सूर्य भी एक तारा है। तारों के विभिन्न समूहों द्वारा बनाई गई विभिन्न आकृतियां नक्षत्रमंडल कहलाती हैं। अर्सा मेजर या बिग बीयर इसी प्रकार का एक नक्षत्रमंडल है। आसानी से पहचाने जाने वाला नक्षत्रमंडल है, स्मॉल बीयर या सप्तर्षि। यह सात तारों का समूह है,जो कि एक बड़े नक्षत्रमंडल अर्सा मेजर का भाग है। उत्तरी तारा उत्तर दिशा को बताता है। इसे ध्रुव तारा भी कहा जाता है।। कुछ खगोलीय पिंडों में अपना प्रकाश एवं ऊष्मा नहीं होती है। वे तारों के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। ऐसे पिंड ग्रह कहलाते हैं। ग्रह जिसे अंग्रेजी में प्लेनेट (Planet) कहते हैं ग्रीक भाषा के प्लेनेटाइ (Planetai) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है परिभ्रमक अर्थात् चारों ओर घूमने वाले। रोमन में ‘सोल’ सूर्य देवता को कहा जाता है। ‘सौर’ शब्द का अर्थ है, सूर्य से संबंधित। इसीलिए सूर्य के परिवार को ‘सौरमंडल’ (Sola...

हिमा दास को 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक

6ठीं सीड भारत के लक्ष्य सेन ने एशियाई जूनियर चैम्पियनशिप जीत कर इतिहास रच दिया है। उन्होंने खिताबी मुकाबले में थाइलैंड के कुनलावुत वितिदसरन को सीधे गेम में 21-19 और 21-18 से हरा दिया।

विज्ञान की प्रमुख शाखाएं

शैवाल विज्ञान  (Algology, Phycology) :- शैवालों का अध्ययन। शारीरिकी  (Anatony) :- आंतरिक संरचना का अध्ययन। कोशिका विज्ञान (Cell Biology) :- कोशिका की विस्तृत संरचना का अध्ययन। वृक्ष विज्ञान (Dendrology) :- झाड़ियों व वृक्षों का अध्ययन। भ्रूण विज्ञान (Embryology) :- अंडे के निषेचन आदि का अध्ययन। कीट विज्ञान (Entomology) :- कीटों का अध्ययन।

विलयन

विलयन एक समांगी मिश्रण होता है, जिसमें दो या दो से अधिक पदार्थ होते हैं। साधारणतः मुख्य अवयव (जो भाग अधिक मात्रा में हो) को विलायक एवं कम मात्रा में उपस्थित भाग को विलेय कहते हैं।  जल एक सार्वत्रिक विलायक है। दिये हुए ताप पर किसी विलयन में जब उसकी क्षमता के अनुसार जितना विलेय घुल सकता है, घुल जाता है तब उसे संतृप्त विलयन कहते हैं।

ग्लूकोमा या काला पानी

ग्लूकोमा या काला पानी आंख की ऐसी बीमारी है जिसमें आंख की नस ऑप्टिक नर्व की कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं।  अधिकतर मरीजों में यह बीमारी आंख के अंदर का दबाव इन्ट्रा आकुलर प्रेशर बढ़ने के कारण होती है।

बौद्ध धर्म

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बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ प्रवर्तक - गौत्तम बुद्ध  बचपन का नाम सिद्धार्थ था। जन्म 563 ई.पू. लुम्बिनी में शाक्य कुल के क्षत्रिय वंश राजा शुद्धोधन के यहां हुआ था।  माता का नाम महामाया था। 16 वर्ष की आयु में यशोधरा से उनका विवाह कर दिया गया। 28वें वर्ष उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। सांसारिक दुःखों से द्रवित होकर उन्होंने 29वें वर्ष गृहत्याग दिया, जिसे बौद्ध मतावलम्बी ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहते है। गृहत्याग के पश्चात् उनके प्रथम दो गुरु अलार और उद्रक थे।  35 वर्ष की आयु में गया में उरुवेला नामक स्थान पर वटवृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के किनारे समाधिस्थ अवस्था में 49वें दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और इसके बाद वे ‘महात्मा बुद्ध’ कहलाये। बुद्ध ने वाराणसी के निकट सारनाथ में अपने पांच ब्राह्मण शिष्यों को पालि भाषा में पहली बार उपदेश दिया। यहीं उन्होंने संघ की स्थापना की। उनका प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहलाता है। उन्होंने सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती (कोशल) में दिया था। बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासकों में बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन थे। महात्मा बुद्ध...

राजस्थान में मृगवन

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राजस्थान में वन्य जीवों के संरक्षण में हिरण (मृग) के लिये 'मृगवन' क्षेत्र निर्धारित कर उठाया गया है। वर्तमान में राज्य में निम्नलिखित मृगवन है- अशोक विहार मृगवन जयपुर शहर के अशोक विहार के बीच 12 हैक्टेयर के एक भूखण्ड को अशोक विहार मृगवन के नाम से विकसित किया है।  इसके पास ही 7500 वर्ग मीटर में एक और क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। इसमें 24 हिरण तथा 8 चिंकारा संरक्षण हेतु छोड़े गए हैं। माचिया सफारी पार्क माचिया सफारी पार्क जोधपुर के कायलाना झील के पास यह 1985 में शुरू किया गया था। इसका क्षेत्रफल 600 हैक्टेयर के लगभग है। इसमें भेड़िया, लंगूर, सेही, मरू बिल्ली, नीलगाय, काला हिरण, चिंकारा नामक वन्य जीव तथा अनेक पक्षी देखे जा सकते हैं। चित्तौड़गढ़ मृगवन चित्तौड़गढ़ मृगवन प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दक्षिणी किनारे पर इस मृगवन को 1969 में स्थापित किया गया था, जिसमें नीलगाय, चीतल, चिंकारा एवं काला हिरण आदि वन्य जीव रखे गए है। पुष्कर मृगवन पावन तीर्थस्थल पुष्कर के पास प्राचीन पंचकुण्ड के निकट पहाड़ी क्षेत्र में यह मृगवन विकसित किया गया है। विकास के बाद 1985 में इसम...