laghu_sansad_ka_sach
अगर आप... है तो। बहुत लिखा है आपने किसी के दिल को ठेस पहुंचाने के लिए, अब लिखेंगे ....
- दिवांशु: सभ्यता निर्माता
- उद्देश्य: एक समाज सेवी संस्था जिसका उद्देश्य प्रकृति को सर्वोपरि मानकर समाज को सही दिशा की ओर अग्रसर करना व मानव कल्याण है। दिवांशु का अर्थ सूर्य की किरणें होता है। जिसके तेजोमय प्रकाश से समस्त मानव सभ्यता गतिशील रहती है। इस संस्था का उद्देश्य मानव को एक-दूजे के लिए जागरूक बनाना है। हमें धर्म, जाति व किसी एक विचारधारा के अधीन नहीं बनाना है। हमें ‘जियो और जीने दो’ पर कार्य करना है।
- संकल्पः किसी से आर्थिक सहायता लिए बिना समाज सेवा करना, इस संस्था का लक्ष्य है। क्योंकि जो भी संस्था दान लेकर कार्य करती है उसमें आड़म्बर आ जाते हैं या फिर लोगों के मन में उस संस्था के प्रति गलत विचार जन्म लेते हैं। साथ ही उसका दायरा सीमित क्षेत्र तक होता है।
- हम सिर्फ सकारात्मक महत्त्वाकांक्षा को स्वीकार करते हैं जो सब का विकास समान रूप से कर सके। यही संस्थान का मूल मंत्र है।
- हम धर्म को केवल नैतिक उत्थान मात्र मानते हैं और ईश्वर को समस्त प्राणियों में समान रूप से देखते हैं। हमारा मकसद किसी व्यक्ति को नीचा दिखना नहीं बल्कि उसे अपने समान मानना है।
- हम मानव है और मानव पशुवृत्तियों का त्यागकर एक स्वच्छ और स्वस्थ, सुविचार और सहयोग पूर्ण समाज बनाये हम यही कामना करते हैं।
- यदि आप साफ रहोगे तो लोग आपको सम्मान देंगे, यदि गंदे रहोगे तो आपको धिक्कारेंगे क्योंकि हम मानव है और गंदा रहना मानव का स्वभाव नहीं है।
- हम किसी से यह नहीं कहेंगे कि आप हमारी संस्था को दान दें। हम उन कर्मयोगियों और समाज चिंतकों से यही कहेंगे कि वे अपने क्षेत्र में किसी भी कमजोर आर्थिक परिवार को अपना ही परिवार का हिस्सा समझ कर उनको आर्थिक मदद दे। ताकि वे लोग आपके प्रति वफादार व समाज में एक सकारात्मक सोच को जन्म दे सके।
- हमें किसी से कोई ईर्ष्या द्वेष नहीं है क्योंकि जब मानव शरीर का अस्तित्व (कुछ वर्षों तक ही जीवन) ही नहीं तो फिर हम धर्म, जाति, विचार धारा या किसी संस्था से हमें प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकते हैं।
- जब कोई धर्म मानव शरीर के अस्तित्व को नहीं जिन्दा रख सकता तो हमें आपस कोई बैर नहीं पालना चाहिए। अगर हम सोचते हैं कि हमारे धर्म से हम अमर बन सकते हैं तो आज तक मानव जनसंख्या पृथ्वी पर समाती नहीं।
- मैंने कई बार सोचा कि मैं भी ऐसी एक चैरिटी बनाऊं जो अमीरों से दान लेकर समाज सेवा कर सके किन्तु मैंने ये विचार त्याग दिया और यही सोचा कि कोई संस्था को स्वार्थी और अपनी अय्याशी का ठिकाना कहे इससे अच्छा है अपने इस ज्ञान को ईश्वर का आदेश मानकर लोगों तक पहुंचाए।
- उन्हें इस विचारधारा को अपने दैनिक जीवन में स्वैच्छिक रूप से अपनाने के लिए कहूं ताकि इस संस्था से उन्हें यही संदेश मिल सके कि आप अपने क्षेत्र में जितने लोग सम्पन्न व अच्छे स्वभाव वाले हैं, वे मिलकर एक छोटी संस्था बनाएं जो अपनी ही गली या मौहल्ला से किसी गरीब लड़का या लड़की जो आपकी निगाहों में पढ़ने वाला है या बेकार घुमता है उन पर कुछ राशि जो आपके द्वारा बनाये गये दल के सदस्य वहन कर सकते हैं या वे अपनी तनख्वाह से एक छोटा सा अंश बचा कर संस्था में दान दिया है उससे समाज के ऐसे गरीब बच्चों को पढ़-लिखा सकते हैं।
- यह ज़्यादा अच्छा है कि आप अपनी कमाई का बड़ा भाग किसी जगह गुप्त दान या दान करे। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपके पैसे आपकी निगाहों में एक कमजोर को उठाने में काम आते हैं।
- दान तो बड़ी कम्पनियां भी करती है पर उनका दान आपकी गली के गरीब तक नहीं पहुंच पाता है।
- आज तक विश्व का कोई संगठन हो उसने सिर्फ लोगों के कल्याण की बातें तो कि किन्तु वे मानव महत्त्वाकांक्षा के चलते उस पर चल नहीं सके।
- इसलिए मैंने यह फैसला लिया कि हमें ऐसी संस्था का विकास करना चाहिए जो एक ही व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित न हो और मानव के बीच अपनी ही एक संस्था के रूप में स्वरूप पा सके।
- दोस्तों। मैंने ईश्वर को बहुत पूजा और जब ज्ञान हुआ तो मुझे न तो किसी से ईर्ष्या रही न द्वेष। मैंने तो धर्म को मात्र नैतिक उत्थान और हमारे शरीर से पशुवृत्तियों को त्याग का साधन मात्र माना है।
- अगर आप ईश्वर के नाम से लड़ते हैं तो यह कतई गलत है क्योंकि ईश्वर ने हमें समान रूप से बनाया है। अगर अलग-अलग ईश्वर न हमारी रचना की होती तो हम प्रकृति के सानिध्य में नहीं रहते, हम एक जैसा भोजन, श्वांस, पीने के लिए पानी आदि में नहीं कर पाते।
- मैं यह नहीं कहता कि कोई धर्म बुरा है बल्कि सभी धर्म अपनी-अपनी जगह सही है क्योंकि सभी लोककल्याण की बातें करते हैं।
- मैंने कई बार गांव के दो धर्मों के लोगों का आपस में बात करते सुना है जब वे धर्म की बात करते हैं तो उनका एक ही जबाव सुनने में आया है कि ईश्वर एक है। बस शब्दों का फेर है।
- अगर धर्म ईश्वर ने बनाया होता तो हमें इस पृथ्वी पर एक ही धर्म मिलता किन्तु ये धर्म मानव द्वारा बनाये गये जो व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा पूर्ति का साधन मात्र रह गये हैं।
- यदि धर्म ईश्वर द्वारा बनाया गया है तो फिर एक मां की चार संतानें अलग घर क्यूं बना लेती है? एक धर्म का व्यक्ति अपने ही धर्म के दूसरे व्यक्ति की हत्या क्यूं कर देता है? यहां तक कि एक भाई दूसरे भाई की हत्या तक कर देता है।
- जब एक धर्म का व्यक्ति भीख मांगता है और उस धार्मिक स्थल के समान जहां से धर्म का संचालन होता है और उस स्थल की भव्यता रत्नजड़ित होती है। उस धार्मिक संस्था का संचालक व उसका परिवार सम्पूर्ण सुखों का आनन्द लेते हैं, किन्तु एक छोटी सी राशि उन भिखारियों के लिए नहीं।
- अरबों रुपये का चढ़ावा आता है पर वह सब अपनी ही महत्त्वाकांक्षा के लिए अपने ही पास रखते है और कुछ छोटे से ट्रस्ट बनाकर थोड़ा बहुत गरीबों के नाम पर कर देते हैं जो उस संस्था का संचालन करता है वह हजम कर जाता है।
- ये लोग चैरिटी बनाते हैं पता है क्यूं ताकि लोगों में धर्म के प्रति आस्था बनी रहे और इनकी आजीविका पर कोई आंच नहीं आये।
- ऐसे ही जातियां हैं जो संकट में एक-दूजे का साथ देने की बात तो करते हैं किन्तु ये सब आर्थिक रूप से बंट जाते हैं। ऐसा क्यूं एक ही जाति में एक अरबपति और दूसरा कर्ज़ में जीवन यापन करता है। तब जाति वाले को ये क्यूं नहीं दिखता है कि यह मेरा जाति वाला गरीब क्यूं है?
- जाति और संस्था दोनों ही महत्त्वाकांक्षी लोग के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए हैं। एक जाति वाला कभी दूसरे जाति वाले की कामयाबी को नहीं पचा पाता है। यही जातियों के पतन का कारण है क्योंकि कहीं न कहीं उस गरीब के हृदय में यह बात घर कर जाती है कि जब इन पर संकट आता है तो हमें जाति का वास्ता देते हैं और हमारी गरीबी का ये मजाक उड़ाते हैं।
- जाति या संस्था बुराई नहीं है जब तक कि वे निःस्वार्थ एवं किसी एक व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा एवं हित साधने वाली न बने।
- बहुत दुःख होता है जब लोगों को आपस में लड़ते हुए देखता हूं। हम किसी धर्म, जाति में एक गरीब की गरीबी दूर करने के लिए कभी एकजुट नहीं हो सकते बल्कि धर्म पर संकट या कोई जातिगत मामले में तुरंत बिना कुछ सही-गलत का निर्णय किये किसी का घर जला देते हैं या उसका चिराग बुझा देते हैं।
- हम ये भी नहीं सोचते कि उन दो व्यक्तियों में आपसी रंजिश है जिसे वह साम्प्रदायिक रूप दे रहा है।
- दोस्तों। मैंने उन लोगों के घर उजड़ते देखा है जिनका कोई कसूर नहीं होता है।
- यदि वे सच्चे अर्थों में धर्म या जाति या कोई अन्य विचारधारा के समर्थक है तो फिर अपने ही समुदाय के गरीबों के लिए धनी लोग या धार्मिक संस्था दान क्यूं नहीं देती है क्यूं उसमें गरीब व विवश लोग होते हैं।
- मैं बड़ा विद्वान तो नहीं हूं किन्तु एक समाज सेवी बनना चाहता हूं क्योंकि मैंने जीवन में अभाव देखें हैं और उन लोगों को देखा है जो गरीबी में कैसे दिन गुजारते हैं। लोग बातें बड़ी करते हैं किन्तु कार्य रूप में नहीं ला पाते हैं।
- वर्तमान में हम देखते हैं कि कई समाज सेवी ट्रस्ट सिर्फ अपना सीमित स्तर तक ही अपना कार्य क्षेत्र बनाते हैं जबकि कुछ बड़े शहरों तक अपने आपको सीमित रखते है।
- कई अमीरों को किसी ट्रस्ट बनाते हुए या दान करते हुए देखा होगा ये लोग सरकार की निगाहों में अच्छा और उदार बनते हैं जबकि इसके पीछे बड़ा टैक्स बचाना होता है।
- जब आपका मकसद सिर्फ मुनाफ़ा कमाना ही है तो फिर आप दान क्यूं देते हैं। उसके लिए जिससे आप पहले तो महंगी वस्तुएं बेचकर अपने उत्पाद के अच्छे दाम लेते हैं और उच्च वर्ग को अपना स्टेट्स बनाये रखने के लिए झूठे विज्ञापन देते हैं। इन विज्ञापनों का खर्च उसमें जोड़कर फिर वस्तु बेचतें है। बाद में अपने आपको उदार व दयालु बनाने के लिए दान या ट्रस्ट खोलते हैं।
- जब आपका मकसद साफ है कि हमें मुनाफा चाहिए तो समाज में कौन गरीब है या किसी को दो वक्त की रोटी मिल रही है या नहीं, इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए।
- और यदि आप लोगों की मदद करना चाहते हैं तो फिर आप अपने उत्पादों के दाम ऐसे रखो कि आपकों भी घाटा न लगे और समाज के हर तबके को आसानी से उपलब्ध हो सके। तब ही हम एक अच्छे समाज की कल्पना कर सकते हैं क्योंकि बदलाव अमीरों से आते हैं।
- यदि अमीर वर्ग त्याग नहीं करेगा तब तक मध्यम वर्ग भी ऐसा नहीं कर सकता है।
- दोस्तों। हम आज संकल्प लें कि या तो हम किसी के अच्छे-बुरे के बारे में बातें नहीं करें या फिर इन सबसे ऊपर उठकर एक-दूजे को अपना मान कर मानव सेवा करें।
- आज इस संस्था के पास एक रुपया नहीं है और मैं कामना भी नहीं करता कि कोई इस संस्था को दान दें। बल्कि मैं तो उन दानदाताओं से निवेदन करना चाहता हूं कि वे अपने नजदीक ही अपने लोगों को दान या किसी को आवश्यकतानुसार सहयोग दें।
- यह एक खुला मंच है यदि आपके कोई सुझाव है तो हमें अवश्य बताएं।
- दोस्तों दिवांशु: सभ्यता निर्माता एक ब्लॉग है जिसकी आय का स्रोत सिर्फ गूगल एडसेन्स है जो कि आपको पता है इससे कैसे कमाई होती है।
- अगर आप कोई सहयोग करना चाहते हैं तो सिर्फ लोगों तक यह संदेश अवश्य पहुंचाये क्योंकि शायद हम आपकी आर्थिक सहायता नहीं कर सकते परन्तु एक अच्छी सीख आप दूसरों तक पहुंचा सकते हैं।
- मेरा मकसद किसी के धर्म, जाति या विचारधारा या संस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि उनके कार्यों में कमियों को नजर में लाना और उन्हें अधिक उपयोगी तरीके से कार्य के लिए प्रेरित करना है।
- धन्यवाद
- राकेश सिंह राजपूत
- मोबाइल - 9116783731
Post a Comment
0 Comments