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Showing posts from October, 2018

मुंशी प्रेमचंद

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कलम का सिपाही मुंशी प्रेमचंद का जन्म: 31 जुलाई, 1880 को व मृत्यु 8 अक्टूबर, 1936 को। आधुनिक हिन्दी और उर्दू साहित्य के प्रख्यात लेखक थे। उन्हें विशेष तौर पर 20वीं शताब्दी के आरम्भिक हिन्दी-उर्दू साहित्य से संबद्ध किया जाता है। उनका जन्म वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के निकट लमही ग्राम में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता मुंशी अजायब लाल एक पोस्टल क्लर्क थे और माता एक गृहणी थीं।  उनका वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। उन्होंने अपना लेखन काय्र ‘नवाब’ नाम से आरम्भ किया था। जब वह सात वर्ष के थे तब उनकी माता का देहावसान हो गया तथा जब वह 16 वर्ष के हुए तो पिता भी गुजर गये। उनकी आरम्भिक शिक्षा एक मौलवी के अन्तर्गत मदरसा में हुई, जहां उन्होंने उर्दू का अध्ययन किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई बी.ए. तक की। वह 1899-1921 तक वाराणसी के निकट चुनार में एक स्कूल टीचर के रूप में कार्यरत रहे।  जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तो वे गोरखपुर में स्कूल टीचर थे। गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। उनके समय भारत की जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्म...

राजस्थान में संभाग व्यवस्था

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राजस्थान में सर्वप्रथम संभागीय व्यवस्था को 1949 ई. में प्रारंभ किया गया। इस समय राजस्थान में केवल 5 संभाग थे। 1 नवम्बर 1956 ई. को एकीकरण पूरा होने पर 6वां संभाग 'अजमेर' को बनाया गया।  1962 ई. में 'मोहनलाल सुखाडिया' द्वारा संभागीय व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया तथा 1987 ई. में पुनः 'हरिदेव जोशी' सरकार के द्वारा संभागीय व्यवस्था को प्रारंभ किया गया।  4 जून 2005 को भरतपुर को नया संभाग बनाया - जिसमें भरतपुर, धौलपुर, जयपुर संभाग से एवं करौली, सवाई माधोपुर, 'कोटा संभाग' से लिये गये। बीकानेर संभाग- बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू।  जोधपुर संभाग-जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, सिरोही, पाली, जालौर।  अजमेर संभाग-अजमेर, नागौर, टोंक, भीलवाडा।  उदयपुर संभाग-उदयपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ़, चितौडगढ़, डूंगरपुर, राजसमन्द।  कोटा संभाग- कोटा, बूंदी, झालावाड, बारां।  जयपुर संभाग-जयपुर, अलवर, सीकर, झुंझुनूं, दौसा।  भरतपुर संभाग- भरतपुर, करौली, धौलपुर, सवाईमाधोपुर। 

मानवतावादियों का राजकुमार

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मानवतावादियों का सर्वमान्य राजकुमार एनी बेसेंट के होमरूल लीग का संगठन सचिव कौन था? - जॉर्ज अरून्डेल होमरूल लीग आन्दोलन का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहते हुए संवैधानिक तरीके से स्वशासन को प्राप्त करना था। बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 को बेलगांव में ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की थी। इसका प्रभाव कर्नाटक, महाराष्ट्र (बम्बई को छोड़कर), मध्य प्रान्त तथा बरार तक फैला हुआ था। सितम्बर, 1916 ई. में एनी बेसेंट ने मद्रास (अडयार) में ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की तथा जॉर्ज अरून्डेल लीग के सचिव नियुक्त हुए। महात्मा गांधी द्वारा ‘हिन्द स्वराज’ नामक पुस्तक मूलरूप में किस भाषा में लिखी गई थी? - गुजराती में चीन पर शासन करने वाला अंतिम राजवंश कौन-सा था और चीनी गणतंत्र की स्थापना कब हुई थी? - किंग राजवंश, 1911 अजंता की कला को इनमें से किसने प्रश्रय दिया? अ. वाकाटक  ब. पल्लव  स. चालुक्य  द. गंगा - वाकाटक वंश ने अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से सम्बन्धित हैं। अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही शेष हैं, जिनमें गुफा संख्या 16 व 17 ...

जयपुर में स्विट्ज़रलैण्ड के 'लैण्डव्येहर बैण्ड' ने दी मनमोहक प्रस्तुति

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जयपुर में स्विट्ज़रलैण्ड के 'लैण्डव्येहर बैण्ड' ने दी मनमोहक प्रस्तुति  जयपुर के अल्बर्ट हॉल पर स्विट्ज़रलैण्ड के फ्रीबॉर्ग शहर के राजकीय विंड आर्केस्ट्रा बैण्ड “लैण्डव्येहर“ ने  मनमोहक प्रस्तुति दी। बैण्ड के 120 सदस्यों द्वारा वेस्टर्न क्लासिकल, वेस्टर्न पॉपुलर, इण्डियन क्लासिकल तथा फ्यूजन धुनाें के साथ कत्थक नृत्य की प्रस्तुति दी।    परम्परागत  स्विस  धुनों के साथ पुरानी भारतीय लोकप्रिय फिल्मी धुनों की आकर्षक प्रस्तुति की गई। ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त 'स्लमडॉग मिलेनियर' फिल्म के प्रसिद्ध गीत - 'जय हो' की धुन पर दर्शक झूम उठे। विश्व प्रसिद्ध आर्केस्ट्रा बैण्ड के प्रेसिडेंट श्री बेनडिक्ट हायोज  ने बताया कि भारत- स्विट्ज़रलैण्ड मैत्री कार्यक्रम के तहत दोनों देशों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। कार्यक्रम के आरम्भ में पर्यटन विभाग के निदेशक एवं स्विट्ज़रलैण्ड की हैल्थ एण्ड सोशल अफेयर मिनिस्टर श्रीमती डिनेरे ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम शुम्भारम्भ किया।  

जिम्मेदारियों का एहसास गरीबों के बीच रहने से होता है, अलग कॉलोनियों में बसने से नहीं

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ऐसे तो राजतंत्र में भी पद की शपथ राजपूत शायद नहीं लेते थे। पर किसी राजपूत ने शपथ ली है तो समझो अपने प्राणों पर खेल कर भी किसी के साथ अन्याय न होने देने के उदाहरण हमने खूब पढ़े हैं, पर ये आज के अधिकारी है। बड़े जोर-शोर से पूरी पढ़ाई करके आते हैं पूरे संविधान और इतिहास इन्हें अंगुलियों पर रटा रहता है।  जब अधिकारी बन जाते हैं तो बातें जरूर लोकतंत्र की करेंगे। पर उस कुर्सी के मद में इतने अंधे हो जाते हैं कि वे भी किसी सामंतीशाही से क्या कम रहते हैं।  उनकी तरह ही अपने शौकों के लिए एक अलग बस्ती और आधुनिकता में कहें तो अधिकारी कॉलोनी।  वही गलती अब ये कर रहे हैं, जो राजतंत्र ने अपनाई थी सामान्य लोगों से असुरक्षा का भाव इन अधिकारी वर्ग में पैदा हो गया और अपनी अलग ही कॉलोनी बना कर रहते हैं।  हां, दोस्तों कहने को केवल जनता के सेवक है पर सोचों कि जनता से दूर रहकर कोई कैसे सेवक बन सकता है। शहर में जिस और निगाह घूमते हैं उस और कोई न कोई अधिकारियों की कॉलोनियों मिल जाती है। जैसे इनकम टैक्स कॉलोनी, आईएएस कॉलोनी, आरबीआई कॉलोनी, एसबीआई कॉलोनी, नाबार्ड कॉलोनी, रेलवे कॉलोनी ...

राजस्थान में राष्ट्रपति शासन कितनी बार लगा

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चार बार लगा। राजस्थान में पहली बार राष्ट्रपति शासन 13 मार्च 1967 में लागू हुआ था। 1973, 1980 और 1992 में भी राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। राजस्थान में राष्ट्रपति शासन राजस्थान में राष्ट्रपति शासन कितनी बार लगा बहुत सी परीक्षाओं में पूछा गया प्रश्न है। राजस्थान में अब तक चार बार राष्ट्रपति शासन लगा। अब प्रश्न उठता है कि राष्ट्रपति शासन संविधान के किस अनुच्छेद के तहत लगता है? तो इसका सही जवाब है अनुच्छेद 356 के तहत किसी भी राज्य में राष्ट्रपति द्वारा लगाया जाता है।  कारण  क्या कारण है कि किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है तो इसका जवाब है राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हो कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार शासन नहीं चला पा रही है।  राजस्थान में कब—कब राष्ट्रपति शासन लगाया गया। राजस्थान में पहली बार राष्ट्रपति शासन 13 मार्च 1967 में लागू हुआ था। 1973, 1980 और 1992 में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शासन  - राजस्थान में पहला राष्ट्रपति शासन 13 मार्च, 1967 में लागू हुआ था। उस समय म...

1857 की क्रांति परिणाम

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यद्यपि 1857 की क्रांति असफल रही किंतु उसके परिणाम व्यापक सिद्ध हुए। क्रांति के पश्चात् यहाँ के नरेशों को ब्रिटिश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया क्योंकि राजपूताना के शासक उनके लिए उपयोगी साबित हुए थे। अब ब्रिटिश नीति में परिवर्तन किया गया। शासकों को संतुष्ट करने हेतु ‘गोद निषेध’ का सिद्धान्त समाप्त कर दिया गया। राजकुमारों के लिए अंग्रेजी शिक्षा का प्रबन्ध किया जाने लगा। अब राज्य कम्पनी शासन के स्थान पर ब्रिटिश नियंत्रण में सीधे आ गये। साम्राज्ञी विक्टोरिया की ओर से की गई घोषणा (1858) द्वारा देशी राज्यों को यह आश्वासन दिया गया कि देशी राज्यों का अस्तित्व बना रहेगा। क्रांति के पश्चात् नरेशों एवं उच्चाधिकारियों की जीवन शैली में पाश्चात्य प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता हैं। अब राजस्थान के राजे-महाराजे अंग्रेजी साम्राज्य की व्यवस्था में सेवारत होकर आदर प्राप्त करने व उनकी प्रशंसा करने के आदी हो गए थे। जहाँ तक सामन्तों का प्रश्न है, उसने खुले रूप में ब्रिटिश सत्ता का विरोध किया था। अतः क्रांति के पश्चात् अंग्रेजों की नीति सामन्त वर्ग को अस्तित्वहीन बनाने की रही। जागीर क्षेत्...

प्रयास व त्रुटि किस नियम पर आधारित है ?

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1. कौनसा युग्म सीखने में पुनर्बलन को महत्वपूर्ण नहीं मानता ? (1) स्किनर व हल (2) टॉलमेन व गुथरी (3) हल व गुथरी (4) सभी उत्तर - 2 2. प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (T.A.T.) का विकास .........द्वारा किया गया था ? (1) सायमण्ड (2) होल्ट्जमैन (3) मुर्रे (4) बैलक उत्तर - 3 3. बी. एफ. स्किनर के अनुसार बच्चों में भाषा विकास परिणाम होता है ? (1) व्याकरण में प्रशिक्षण का (2) अनुकरण व पुनर्बलन का (3) अन्तर्निहित योग्यताओं का (4) परिपक्वता का उत्तर - 2 4. शब्द समान तत्व निम्न से गहन सम्बन्ध रखता है ? (1) समान परीक्षा प्रश्न (2) सहयोगियों से ईर्ष्या (3) अधिगम स्थानान्तरण (4) समूह निर्देशन उत्तर - 4 5. शिक्षण अधिगम की सूचना प्रक्रिया "Information Process" जिस अधिगम सिद्धान्त से सम्बन्धित है। वह है- (1) व्यवहारवाद के सिद्धान्त से (2) संज्ञानात्मक सिद्धान्त से (3) सहचर्यवाद (4) गेस्टाल्टवाद उत्तर - 2 6. सीखने की प्रक्रिया में विद्यार्थी द्वारा की गई त्रुटियों के सम्बन्ध में आपकी दृष्टि से निम्नलिखित में से कौनसा कथन सर्वोतम है (1) विद्यार्थी को कभी भी त्र...

मी टू कैम्पेन

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नार्वेजियन नोबेल समिति ने युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के हथियार के रूप में यौन हिंसा के उपयोग को समाप्त करने के अपने प्रयासों के लिए डेनिस मुक्वेज और नादिया मुराद को 2018 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार देने का निर्णय लिया है। 2006 में मी टू कैंपेन (मैं भी बोलूंगी) किस सामाजिक कार्यकर्त्ता ने शुरू किया था? - अमेरिका की तराना बर्के को (इस अभियान में यौन शोषण दुर्व्यवहार की की घटनाओं पर महिलाएं खुल कर बोल रही है) स्टीफन हांकिंग की वह पुस्तक जिसमें उसने दावा किया है कि सुपर ह्यूमन की होड़ इंसानियत के लिए खतरा साबित होगी? - ब्रीफ अनिसर्स टू द बिग क्वेश्चंस में नाटो के सदस्य देशों की संख्या है ? - 28 किस बाल्कन देश में नाटो अपना स्टेशन बनाने जा रहा है? - अल्बानिया के कुकोवा एयर बेस पर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार जो सुरबहार (एक प्रकार का सितार) वादक थी, तथा जिनका हाल में निधन हुआ है? - अन्नपूर्णा देवी देश में पहली बार खोपड़ी का सफल प्रत्यारोपण कहां किया गया है? - पुणे में भारत का नया सॉलिशिटर जनरल बनाया गया है? - तुषार मेहता को विजय हजारे ट्रॉफी का संबंध है? - क्रिकेट से ...

तकनीक से हारता मानव श्रम

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है जिद पर अड़ा क्यूं , देख भौतिकता से हारता तू, सभ्यता का वाहक था जो, तेरा श्रम अब लगता महंगा, शायद अपने अस्तित्व के लिए अड़ा रहा तू।  एक दिन हमारे मन में आया कि आज रिक्शा में सवार हो करके जयपुर शहर का भ्रमण कर ऑफिस पहुंचा जाये। पर यह सपना पूरा न हो सका क्योंकि जब मैंने रिक्शा चालक से किराया पूछा तो मैं थोड़ा सा निराशा हो गया क्योंकि उसने 20 रुपये मांगे जो आधुनिक तकनीक के जमाने में मुझे क्या किसी को भी राश नहीं आये?  मेरी निराशा का कारण महंगा किराया नहीं था बल्कि एक हठ और तकनीक से हारते मानव श्रम से थी, जोकि मेरे मन से उठी एक चिन्तनीय सोच मात्र थी। मैं बड़ा कोई पूंजीपति नहीं एक आमजन हूं यदि यही प्रश्न कोई पूंजीपति करता तो शायद मानव श्रम फिर से एक बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गूंज जाता। एक तो मानव श्रम तकनीक के मुकाबले हर प्रकार से पिछड़ रहा है। इसमें समय अधिक लगता है साथ ही यह महंगी है। पर इसका मतलब यह नहीं इसका इस्तेमाल करना बंद कर दें।  हम दो कारणों से इनका उपयोग कर सकते हैं -  पहला, तो मानव को रोज़गार मिल जाएगा। दूसरा, पर्यावरण प्रदूषण में 90 प्रतिशत रा...

सार्क

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दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक व्यापारिक सहयोग के लिए एक क्षेत्रीय संगठन की स्थापना का सुझाव सर्वप्रथम बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर्रहमान ने वर्ष 1977 में दिया। 1980 ई. में दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के बीच इस मुद्दे पर सहमति बनी। अप्रैल, 1981 में कोलंबो में 7 दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका एवं मालदीव) के विदेश सचिवों की बैठक हुई जिसमें क्षेत्रीय सहयोग के 5 व्यापक क्षेत्रों को चिह्नित किया गया। अगस्त, 1983 में दिल्ली में संपन्न विदेश मंत्रियों की बैठक में सार्क घोषणा-पत्र को स्वीकार किया गया और सहयोग के 9 विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित ‘इंटीग्रेटेड प्रोग्राम ऑफ एक्शन’ प्रारंभ किया गया। 8 दिसम्बर, 1985 को सातों दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों की ढाका में संपन्न बैठक में सार्क के घोषणा-पत्र को स्वीकृति प्रदान की गई। इस चार्टर में संगठन के निम्नलिखित उद्देश्य परिभाषित किए गए है - दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण का संवर्द्धन और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना। इस क्षेत्र में आर्थिक संवृद्धि, स...

क्यूं लड़े हम

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क्यूं लड़े हम, जात-धर्म के वास्ते? क्या दिया हमें, सिर्फ नफरत, श्रेष्ठता के नाम पर गरीबी, नारी से, नर से द्वेष। सिर्फ चंद लोगों ने, वजूद जिन्दा रखने के वास्ते, हमें लड़ाकर, सिर्फ जख्म दिये। सोचा कभी आपने, एक ही धर्म का जन, श्रेष्ठता के दम्भ में, एक भीख मांगता है उस जन से। यही हाल जाति का, एक राजवंशों का सुख भोगे, दूजा दो जून की रोटी के वास्ते, बस संघर्ष करता पूर्वजों की परिपाटी में। ऐसा ही कुछ विचारधाराएं कहती है, पर महत्त्वाकांक्षी की रोटी पकती है। हां, हम ही लड़ते हैं, उनके उकसाने पर।

संस्कृत के महत्वपूर्ण श्लोक

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राजस्थान के सुंदर गुर्जर ने पैरा एशियन गेम्स के डिस्कस थ्रो में ब्रॉन्ज मेडल जीता।

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मनुभाकर को शूटिंग में गोल्ड,2018 में छठा गोल्ड जीता शूटर मनु भाकर ने यूथ ओलिंपिक गेम्स में वुमेंस कैटेगरी के 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड मेडल जीता। यह गेम्स के इतिहास में शूटिंग में भारत का पहला गोल्ड मेडल है। मनु ने 2018 गोल्ड काेस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड जीता था। हालांकि वे एशियन गेम्स में मेडल नहीं जीत सकी थीं। वर्ल्ड कप के इंडिविजुअल और टीम इवेंट में भी मनु ने दो गोल्ड जीते थे।  मनु का यह साल का छठा गोल्ड मेडल है। भारत के शूटर मनीष नरवाल ने एशियन पैरा गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। मनीष ने 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच-1 में गेम्स रिकॉर्ड भी बनाया। जूनियर हॉकी टीम - सुलतान जोहोर कप टूर्नामेंट चीन ने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पर्यावरण की जांच के लिए दो रिमोट सेंसिंग उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया।  याओगन-32 समूह के इन उपग्रहों को पर लॉन्ग मार्च-2सी रॉकेट से सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा गया। दोनों अपनी निर्धारित कक्षाओं में पहुंच गए। इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पर्यावरण सर्वेक्षण और अन्य संबंधित तकनीकी परीक्षणों में होगा। पैरा एशियन गेम्स राजस्थान के सुंदर ...

शक्ति और बुद्धि, पूंजी और बुद्धि मानव के शोषण के बड़े कारक है

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शक्ति का शौर्य और पूंजी का पैसा, मानव को दो वर्गों में बांटता है - शोषक और शोषित। फिर चाहे कोई विचारधारा यह दावा क्यूं न करें कि वे बिना वर्ग के समाज चाहती है, ऐसा संभव नहीं है।  लघु संसद का सच एक विश्लेषण पेश करता है आपके सामने। दोस्तों! हमारा मानव होना ही हमारे पतन का बड़ा कारण है। हमने इतिहास पढ़ा है, हां किसी न कक्षा 10वीं तक पढ़ा होगा, तो किसी ने डॉक्टरेट की उपाधि भी धारण की होगी। उसने यह भी पढ़ा होगा कि विजेता अपना इतिहास खुद अपने हिसाब से लिखवाता है। उस इतिहास को हमें शायद इसलिए याद रखना चाहिए कि उस दौरान कई अच्छे शासकों ने अपनी प्रजा का पुत्रवत पाला है और कुछ ने अन्यायी राजा का खिताब भी पाया है। हमें इस संदर्भ में इतिहास को जरूर याद रखना चाहिए कि हम उन गलतियों को पुनः न दोहराएं जो हमारे पूर्वजों ने की थी। इतिहास हमें यह सीखाता हैं कि देख पतन दोनों विरोधियों का ही होता है क्योंकि कोई अपना प्रमुख सेनानायक खो देता है तो कोई अपनी सेना के साथ राज्य। यह नहीं कि विजेता कुछ नहीं खोता, बल्कि वह जीते हुए लोगों पर कभी पूर्ण रूप से अधिकार नहीं जमा सकता है। यह इसलिए होता ...

जयपुर नगर निगम की अनदेखी कहीं राहगीरों को महंगी न पड़ जाए

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यह सत्य है कि जयपुर बहुत सुंदर शहर है और विश्व के सुन्दर शहरों में इसकी गिनती की जाती हैं। जिसे गुलाबी नगरी जैसे अनेक नामों से जाना जाता है। यदि ऐसे शहर में रोड़ पर या फुटपाथ पर यदि गड्ढ़े हो तो उसकी सुन्दरता पर प्रश्न चिह्न उठने लगते हैं। साथ ही सफाई कर्मचारियों पर भी। ऐसा ही नजारा देखने को मिला अंबेडकर सर्किल से रामबाग की ओर आने वाले फुटपाथ पर पिछले डेढ़ साल से भी ज्यादा समय से मैं उस पर पैदल चलता रहा हूं।  माना यहाँ अधिकारी दोषी कम हो सकते हैं पर जो सफाई कर्मी है वह तो सफाई के दौरान इस फुटपाथ पर बने गड्ढे की अनदेखी कर किसी राहगीर के लिए बड़ी दुर्घटना को बुलावा दे रहे हैं। मैं जब भी इस ओर से पैदल गुजरता हूं तो इस गहरे गड्ढे को देख कर प्रशासन के सुस्तपन पर दुःख होता है। किंतु न तो किसी कर्मचारी का ही ध्यान उस पर गया और न ही नगर निगम के कर्मचारियों का। ऐसा नहीं है इस फुटपाथ पर कोई गुजरता नहीं है बल्कि यहाँ पर कई बड़ी सभाओं का आयोजन हो चुका है जिनमें प्रधानमंत्री की लाभार्थियों से जनसंवाद प्रमुख है। यह गड्ढा शाही बाग से थोड़ी दूरी पर है। इस गड्ढे से किसी पैदल चलते राहगीर को चोट ...

परमाणु अप्रसार संधि

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नाभिकीय अप्रसार एवं शस्त्र परिसीमन के लिए उनके अंतर्राष्ट्रीय संधियां सम्पन्न हुईं, जिनमें वर्ष 1968 की ‘परमाणु अप्रसार संधि’ जो कि 5 मार्च, 1970 से अस्तित्व में आई, सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। यह संधि 25 वर्षों के लिए थी जिसे वर्ष 1995 में अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया। परमाणु अप्रसार संधि की धारा - 6 ‘नाभिकीय अप्रसार संधि’ में कुल 11 धाराएं है। धारा - 6 में वर्णित है कि इस संधि के सदस्य राष्ट्रों को परमाणु आयुधों की होड़ समाप्त करने अथवा निरस्त्रीकरण संबंधी प्रभावी कदमों के लिए होने वाली वार्ताओं या सम्मेलनों के प्रति प्रतिबद्ध रहना होगा। अर्थात एनटीपी की धारा - 6 में यह व्यवस्था है कि सदस्य राष्ट्र परमाणु आयुधों की दौड़ रोकने हेतु वार्ताएं करेंगे जिससे कि परमाणु निरस्त्रीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। 3 मई से 28 मई, 2010 को इस संधि की विगत समीक्षा बैठक में न्यूयॉर्क में 28 पेज के फाइनल डॉक्यूमेंट पर सहमति हुई थी जिस पर 189 सदस्य राष्ट्रों ने अपनी सहमति प्रदान की थी। एनपीटी के 189 हस्ताक्षरकर्ता सदस्य राष्ट्रों के समूह में 4 राष्ट्र - भारत, पाकिस्तान, इस्राइल ए...

सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम

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Law of diminishing marginal utility इस नियम का प्रतिपादन 1854 में  गौसेन ने किया इसलिए जेवन्स द्वारा इस नियम को गोसन का प्रथम नियम कहते हैं। इस नियम की विस्तृत व्याख्या मार्शल ने की। नियम का अर्थ एवं परिभाषा सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम एक सार्वभौमिक  (universal)  नियम है। यह नियम उपभोक्ता के उस व्यवहार पर आधारित है जिसमें उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की ज्यादा से ज्यादा इकाई उपभोग करने पर अतिरिक्त उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की इकाइयों की सीमान्त उपयोगिता उत्तरोतर घटती (गिरती) जाती है। मार्शल के अनुसार ‘‘एक वस्तु के स्टॉक में वृद्धि होने से व्यक्ति को जो अतिरिक्त संतुष्टि प्राप्त होती है वह भण्डार में हुई प्रत्येक वृद्धि से कम होती जाती है।’’ उपभोक्ता किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए करता है तो अतिरिक्त इकाइयाँ उसके लिए कम उपयोगी होने लगती है। अगर यह क्रिया कुछ समय तक चलती रहती है, तो एक स्थिति वह आती है जब उपभोक्ता को उस वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने से कुछ भी संतोष नहीं पाता है।  अगर उपभोक्ता इस स्थिति...