क्यूं लड़े हम


क्यूं लड़े हम,
जात-धर्म के वास्ते?
क्या दिया हमें,
सिर्फ नफरत,
श्रेष्ठता के नाम पर गरीबी,
नारी से, नर से द्वेष।
सिर्फ चंद लोगों ने,
वजूद जिन्दा रखने के वास्ते,
हमें लड़ाकर,
सिर्फ जख्म दिये।
सोचा कभी आपने,
एक ही धर्म का जन,
श्रेष्ठता के दम्भ में,
एक भीख मांगता है उस जन से।
यही हाल जाति का,
एक राजवंशों का सुख भोगे,
दूजा दो जून की रोटी के वास्ते,
बस संघर्ष करता पूर्वजों की परिपाटी में।
ऐसा ही कुछ विचारधाराएं कहती है,
पर महत्त्वाकांक्षी की रोटी पकती है।
हां, हम ही लड़ते हैं,
उनके उकसाने पर।


Post a Comment

0 Comments

Close Menu