B.A History
अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के कारण
रावल रत्नसिंह (1302-1303 ई.)
अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा -
- रावल समरसिंह (1273-1302 ई.) की मृत्यु के बाद 1302 ई. में मेवाड़ के सिंहासन पर उसका पुत्र रत्नसिंह बैठा।
- रत्नसिंह को केवल एक वर्ष ही शासन करने का अवसर मिला जो दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए प्रसिद्ध है।
अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा -
- अलाउद्दीन खिलजी एक महत्त्वाकांक्षी और साम्राज्यवादी शासक था। वह सिकन्दर के समान विश्व विजेता बनना चाहता था जिसका प्रमाण उसकी उपाधि ‘सिकन्दर सानी’ (द्वितीय सिकन्दर) थी।
- दक्षिण भारत की विजय और उत्तर भारत पर अपने अधिकार को स्थायी बनाये रखने के लिए राजपूत राज्यों को जीतना आवश्यक था। चित्तौड़ पर उसका आक्रमण इसी नीति का हिस्सा था।
- जैत्रसिंह, तेजसिंह और समरसिंह जैसे पराक्रमी शासकों के काल में मेवाड़ की सीमाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही थी। इल्तुतमिश, नासिरुद्दीन महमूद और बलबन जैसे सुल्तानों ने मेवाड़ की इस बढ़ती शक्ति पर लगाम लगाने का प्रयास किया किन्तु वे सफल नहीं हुए।
- 1299 ईमें मेवाड़ के रावल समरसिंह ने गुजरात अभियान के लिए जाती हुई शाही सेना का सहयोग करना तो दूर, उल्टे उससे दण्ड वसूल करके ही आगे जाने दिया। अलाउद्दीन खिलजी उस घटना को भूल नहीं पाया था।
- दिल्ली से मालवा, गुजरात तथा दक्षिण भारत जाने वाला प्रमुख मार्ग चित्तौड़ के पास से ही गुजरता था। इस कारण अलाउद्दीन खिलजी के लिए मालवा, गुजरात और दक्षिण भारत पर राजनीतिक एवं व्यापारिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिए चित्तौड़ पर अधिकार करना आवश्यक था।
- मौर्य राजा चित्रांगद द्वारा निर्मित चित्तौड़ का दुर्ग अभी तक किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा जीता नहीं जा सका था। यह भी अलाउद्दीन खिलजी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी मेवाड़ के शासक रत्नसिंह की सुन्दर पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था। उसने रत्नसिंह को संदेश भिजवाया कि वह सर्वनाश से बचना चाहता है तो अपनी पत्नी पद्मिनी को शाही हरम में भेज दे।
- रत्नसिंह द्वारा इस प्रस्ताव को अस्वीकार किए जाने पर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।
- शेरशाह स के समय 1540 ई. के लगभग लिखी गई मलिक मुहम्मद जायसी की रचना ‘पद्मावत’ के अनुसार इस आक्रमण का कारण पद्मिनी को प्राप्त करना ही था।
- 28 जनवरी 1303 ई. को दिल्ली से रवाना होकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ को घेर लिया। रत्नसिंह ने शाही सेना को मुँह तोड़ जवाब दिया जिसके कारण दो माह की घेरेबंदी के बाद भी शाही सेना कोई सफलता अर्जित नहीं कर पाई। ऐसी स्थिति में सुल्तान को अपनी रणनीति में परिवर्तन करना पड़ा।
- उसने दुर्ग की दीवार के पास ऊँचे-ऊँचे चबूतरों का निर्माण करवाया और उन पर ‘मंजनिक’ तैनात करवाये। किले की दीवारों पर भारी पत्थरों के प्रहार शुरू हुए किन्तु दुर्भेध दीवारें टस से मस नहीं हुई। लम्बे घेरे के कारण दुर्ग में खाद्यान सामग्री नष्ट होने लग गई थी। चारों तरफ सर्वनाश के चिह्न दिखाई देने पर राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल कर मुस्लिम सेना पर टूट पड़े।
- भीषण संघर्ष में रत्नसिंह वीरगति को प्राप्त हुआ और उधर पद्मिनी के नेतृत्व में चित्तौड़ का पहला जौहर हुआ।
- 26 अगस्त 1303 ई. को चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया।
- अगले दिन सुल्तान ने अपने सैनिकों को आम जनता के कत्लेआम का आदेश दिया।
- इस अभियान के दौरान मौजूद अमीर खुसरो ने अपनी रचना ‘खजाईन-उल-फुतूह’ (तारीखे अलाई) में लिखा है कि एक ही दिन में लगभग 30,000 असहाय लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर ‘खिज्राबाद’ कर दिया और अपने बेटे खिज्रखां को वहाँ का प्रशासन सौंप कर दिल्ली लौट आया।
- खिज्रखां ने गंभीरी नदी पर एक पुल का निर्माण करवाया।
- उसने चित्तौड़ की तलहटी में एक मकबरा भी बनवाया जिसमें लगे हुए एक फारसी लेख में अलाउद्दीन खिलजी को ईश्वर की छाया और संसार का रक्षक कहा गया है।
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