भारत में समाजशास्त्र का विकास

भारत में समाजशास्त्र का विकास

  • भारत विद्या अध्ययन परिप्रेक्ष्य (इंडोलॉजी) की स्थापना हुई।
  • जिसकी मान्यता थी कि वर्तमान भारतीय समाज एवं संस्कृति का अध्ययन परंपरागत भारतीय दर्शन एवं शास्त्रीय ग्रंथों, महाकाव्यों के अध्ययन के आधार पर संभव है।
  • इसका सर्वप्रथम प्रयास जी.एस. घुर्ये द्वारा किया गया। यही कारण है कि घुर्ये को ‘भारत में समाजशास्त्र का जनक’ कहा जाता है।
  • ये बंबई विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के पहले भारतीय अध्यापक थे।
  • भारत में समाजशास्त्र की शुरूआत 20वीं शताब्दी से प्रारम्भ मानी जा सकती है।
  • जब 1914 में बंबई विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पपर ऐच्छिक विषय के रूप में अर्थशास्त्र के साथ अध्ययन प्रारंभ हुआ।
  • किन्तु  इसकी औपचारिक शुरूआत 1919 में हुई और बंबई विश्वविद्यालय में नागरिकशास्त्र के साथ संयुक्त विभाग (समाजशास्त्र का) स्थापित किया गया।
  • पाश्चात्य समाजशास्त्री ‘सर पैट्रिक गेडिस’ (नगरीय समाजशास्त्री) को इसका प्रथम विभागाध्यक्ष बनाया गया और इस विषय की स्नातकोत्तर स्तर पर अध्ययन प्रारंभ हुआ बाद में जी.एस. घुर्ये यहां के विभागाध्यक्ष बने।
  • बंबई के बाद 1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की पढ़ाई प्रारंभ हुई तथा राधाकमल मुखर्जी इसके प्रथम विभागाध्यक्ष थे। इसकी स्थापना में बी.एन. सील के प्रयास महत्त्वपूर्ण थे।
  • पुणे विश्वविद्यालय में 1938 में मानवशास्त्र के साथ इस विषय की स्थापना हुई तथा इरावती कर्वे (मानवशास्त्री) इसकी प्रथम विभागाध्यक्षा थी।
  • 1917 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय में बृजेन्द्रनाथ सील के प्रयासों से।
  • 1952 में घुर्ये के प्रयासों से समाजशास्त्र के प्रथम संगठन ‘इंडियन सोशियोलॉजी सोसायटी’ की स्थापना हुई।
  • इस संस्था ने घुर्ये के प्रधान संपादन में सोशियोलॉजिकल बुलेटिन नामक शोध-पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।
  • सन् 1843 ई. में जॉन स्टुअर्ट मिल ने इंग्लैण्ड को समाजशास्त्र शब्द से अवगत कराया।
  • समाजशास्त्र के विकास की प्रथम अवस्था यूरोप में प्रारंभ हुई।
  • येल विश्वविद्यालय अमेरिका में स्थित है, यहां सर्वप्रथम समाजशास्त्र के अध्ययन का कार्य प्रारम्भ हुआ।

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