B.A History
हम्मीर चौहान
- हम्मीर अपने पिता जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था। सभी पुत्रों में योग्य होने के कारण उसका राज्यारोहण उत्सव जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में ही 1282 ई. में सम्पन्न करवा दिया था। शासन का भार संभालने के बाद 1288 ई. तक हम्मीर ने दिग्विजय की नीति का अवलम्बन कर अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
- दिग्विजय के बाद हम्मीर ने कोटि यज्ञों का आयोजन किया जिससे उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
- मेवाड़ के शासक समरसिंह को पराजित कर हम्मीर ने अपनी धाक सम्पूर्ण राजस्थान में जमा दी।
हम्मीर और जलालुद्दीन खिलजी-
- हम्मीर को अपनी शक्ति बढ़ाने का मौका इसलिए मिल गया कि इस दौरान दिल्ली में कमजोर सुल्तानों के कारण अव्यवस्था का दौर चल रहा था। 1290 ई. में दिल्ली का सुल्तान बनने के बाद जलालुद्दीन खिलजी ने हम्मीर की बढ़ती हुई शक्ति को समाप्त करने का निर्णय लिया। सुल्तान ने झाँई पर अधिकार कर रणथम्भौर को घेर लिया किन्तु सभी प्रयत्नों की असफलता के बाद शाही सेना को दिल्ली लौट जाना पड़ा।
- सुल्तान ने 1292 ई. में एक बार फिर रणथम्भौर विजय का प्रयास किया। हम्मीर के सफल प्रतिरोध के कारण इस बार भी उसे निराशा ही हाथ लगी।
- इस अभियान के समय जब मुगल सेना को अत्यधिक क्षति उठानी पड़ रही थी, तब जलालुद्दीन ने यह कहते हुए दुर्ग का घेरा हटा लिया कि ‘‘मैं ऐसे सैंकड़ों किलों को भी मुसलमान के एक बाल के बराबर महत्त्व नहीं देता।’’
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के इन अभियानों का आँखों देखा वर्णन अमीर खुसरो ने ‘मिफ्ता-उल-फुतूह’ नामक ग्रंथ में किया है।
हम्मीर और अलाउद्दीन खिलजी -
- 1296 ई. में अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर दिल्ली का सुल्तान बन गया।
अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण करने प्रारम्भ कर दिये जिनके निम्नलिखित कारण थे -
- रणथम्भौर सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। अलाउद्दीन खिलजी इस अभेद दुर्ग पर अधिकार कर राजपूत नरेशों पर अपनी धाक जमाना चाहता था।
- रणथम्भौर दिल्ली के काफी निकट था। इस कारण यहाँ के चौहानों की बढ़ती हुई शक्ति को अलाउद्दीन खिलजी किसी भी स्थिति में सहन नहीं कर सकता था।
- अलाउद्दीन खिलजी से पहले उसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर अधिकार करने के लिए दो बार प्रयास किए थे किन्तु वह असफल रहा। अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा की पराजय का बदला लेना चाहता था।
- अलाउद्दीन खिलजी एक महत्त्वाकांक्षी और साम्राज्यवादी शासक था। रणथम्भौर पर आक्रमण इसी नीति का परिणाम था।
हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोहियों को शरण देना -
- नयनचन्द्र सूरी की रचना ‘हम्मीर महाकाव्य’ के अनुसार रणथम्भौर पर आक्रमण का कारण यहाँ के शासक हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मीर मुहम्मद शाह को शरण देना था।
- मुस्लिम इतिहासकार इसामी ने भी अपने विवरण में इस कारण की पुष्टि की है। उसने लिखा है कि 1299 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने दो सेनापतियों उलूग खां व नूसरत खां को गुजरात पर आक्रमण करने के लिए भेजा था।
- गुजरात विजय के बाद जब यह सेना वापिस लौट रही थी तो जालौर के पास लूट के माल के बंटवारे के प्रश्न पर ‘नव-मुसलमानों’ (जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के समय भारत में बस चुके वे मंगोल, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था) ने विद्रोह कर दिया। यद्यपि विद्रोहियों का बर्बरता के साथ दमन कर दिया गया किन्तु उनमें से मुहम्मदशाह व उसका भाई कैहब्रु भाग कर रणथम्भौर के शासक हम्मीर के पास पहुँचने में सफल हो गए।
- हम्मीर ने न केवल उन्हें शरण दी अपितु मुहम्मदशाह को ‘जगाना’ की जागीर भी दी। चन्द्रशेखर की रचना ‘हम्मीर हठ’ के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की एक मराठा बेगम से मीर मुहम्मदशाह को प्रेम हो गया था और उन दोनों ने मिलकर अलाउद्दीन खिलजी को समाप्त करने का एक षड़यंत्र रचा।
- अलाउद्दीन खिलजी को समय रहते इस षड़यंत्र की जानकारी मिल जाने के कारण मीर मुहम्मदशाह को बंदी बनाने का प्रयास किया गया किन्तु वह भागकर हम्मीर की शरण में पहुँच गया। अलाउद्दीन खिलजी की तरफ से इन विद्रोहियों को सौंप देने की माँग की गई। इस माँग को जब हम्मीर द्वारा ठुकरा दिया गया तो अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने रणथम्भौर पर आक्रमण कर दिया।
- 1299 ई. के अंत में अलाउद्दीन खिलजी ने उलूग खां, अलप खां और नुसरत खां के नेतृत्व में एक सेना रणथम्भौर पर अधिकार करने के लिए भेजी। इस सेना ने ‘रणथम्भौर की कुँजी’ झाँई पर अधिकार कर लिया। इसामी के अनुसार विजय के बाद उलूग खां ने झाँई का नाम बदलकर ‘नौ शहर’ कर दिया।
- ‘हम्मीर महाकाव्य’ में लिखा है कि हम्मीर इस समय कोटियज्ञ समाप्त कर ‘मुनिव्रत’ में व्यस्त था। इस कारण स्वयं न जाकर अपने दो सेनापतियों - भीमसिंह व धर्मसिंह को सामना करने के लिए भेजा। इन दोनों सेनापतियों ने सेना को पीछे की तरफ खदेड़ दिया तथा उनसे लूट का माल छिन लिया। राजपूत सेना ने शत्रु सेना पर भयंकर हमला किया जिसमें अलाउद्दीन खिलजी की सेना को पराजय का सामना करना पड़ा। शाही सेना से लूटी गई सामग्री लेकर धर्मसिंह के नेतृत्व में सेना का एक दल तो रणथम्भौर लौट गया किन्तु भीमसिंह पीछे रह गया। इस अवसर का लाभ उठाकर बिखरी हुई शाही सेना ने अलपखां के नेतृत्व में उस पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में भीमसिंह अपने सैंकड़ों सैनिकों सहित मारा गया। भीमसिंह की मृत्यु के लिए हम्मीर ने धर्मसिंह को उत्तरदायी मानते हुए उसे अंधा कर दिया और उसके स्थान पर भोजराज को नया मंत्री बनाया।
- भोजराज रणथम्भौर की बिगड़ी हुई स्थिति को संभाल नहीं पाया और शीघ्र ही अलोकप्रिय हो गया। ऐसी स्थिति में धर्मसिंह ने हम्मीर को राज्य की आय बाँइ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
- झाँई विजय के बाद उलूग खां ने मेहलनसी नामक दूत के साथ हम्मीर के पास अलाउद्दीन खिलजी का संदेश पुनः भिजवाया। इस संदेश में दोनों विद्रोहियों - मुहम्मदशाह व उसके भाई कैहब्रु को सौंपने के साथ हम्मीर की बेटी देवलदी का विवाह सुल्तान के साथ करने की माँग की गई थी। यद्यपि देवलदी ने राज्य की रक्षा के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेने की सुझाव दिया किन्तु हम्मीर ने संघर्ष का रास्ता चुना।
- उलूग खां ने रणथम्भौर दुर्ग पर घेरा डालकर उसके चारों तरफ पाशिब व गरगच बनवाये और मगरबों द्वारा दुर्ग रक्षकों पर पत्थरों की बौछार की। दुर्ग में भी भैरव यंत्र, ठिकुलिया व मर्कटी यंत्र नामक पत्थर बरसाने वाले यंत्र लगे थे जिनके द्वारा फैंका गया एक पत्थर संयोग से नुसरत खां को लगा।
- नुसरतखां इसमें घायल हुआ और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। इससे शाही सेना में निराशा की स्थिति पैदा हो गई।
- हम्मीर ने इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए दुर्ग से बाहर निकलकर शाही सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर उलूग खां को झाँई की तरफ पीछे हटना पड़ा। उलूग खां की असफलता के बाद अलाउद्दीन खिलजी स्वयं रणथम्भौर पहुँचा।
- अमीर खुसरो ने अपनी रचना ‘खजाईन-उल-फुतूह’ में इस अभियान का आंखों देखा वर्णन करते हुए लिखा है कि सुल्तान ने इस आक्रमण में पाशेब, मगरबी व अर्रादा की सहायता ली। काफी प्रयासों के बाद भी जब अलाउद्दीन खिलजी दुर्ग को जीतने में असफल रहा तो उसने छल और कूटनीति का आश्रय लेते हुए हम्मीर के पास संधि का प्रस्ताव भेजा।
- हम्मीर द्वारा संधि के लिए अपने सेनापति रतिपाल को भेजा गया। अलाउद्दीन खिलजी ने रतिपाल व उसकी सहायता से हम्मीर के एक अन्य सेनापति रणमल को रणथम्भौर दुर्ग का प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया।
- चौहान रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया गया है कि अलाउद्दीन ने हम्मीर के एक अधिकारी को अपनी तरफ मिलाकर दुर्ग में स्थित खाद्य सामग्री को दूषित करवा दिया। इससे दुर्ग में खाद्यान सामग्री का भयंकर संकट पैदा हो गया।
- अमीर खुसरो ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि ‘‘सोने के दो दानों के बदले में चावल का एक दाना भी नसीब नहीं हो पा रहा था।’’
- खाद्यान्न के अभाव में हम्मीर को दुर्ग के बाहर निकलना पड़ा किन्तु रणमल और रतिपाल के विश्वासघात के कारण उसे पराजय का मुंँह देखना पड़ा।
- युद्ध के दौरान हम्मीर लड़ता हुआ मारा गया और उसकी रानी रंगदेवी के नेतृत्व में राजपूत वीरांगनाओं द्वारा जौहर किया गया।
- यह रणथम्भौर का प्रथम साका कहा जाता है।
- जोधराज की रचना ‘हम्मीर रासो’ के अनुसार इस जौहर में मुहम्मदशाह की स्त्रियाँ भी रंगदेवी के साथ चिता में भस्म हो गई।
- कुछ स्थानों पर उल्लेख है कि रंगदेवी ने किले में स्थित ‘पदमला तालाब’ में जल जौहर किया था।
- 11 जुलाई, 1301 ई. को अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया। युद्ध में मीर मुहम्मदशाह भी हम्मीर की तरफ से संघर्ष करते हुए घायल हुआ।
- घायल मुहम्मदशाह पर नजर पड़ने पर अलाउद्दीन खिलजी ने उससे पूछा कि ‘अगर तुझे ठीक करवा दिया जाए तो तुम क्या करोगे?’ इस पर बड़ी बहादूरी के साथ मुहम्मदशाह ने जवाब दिया कि ‘‘अगर मुझे ठीक करवाया गया तो मैं दो काम करूँगा - पहला तुम्हें मार दूंँगा और दूसरा हम्मीर के किसी वंशज को रणथम्भौर के सिंहासन पर बैठा दूंँगा।’’
- ऐसा जवाब सुनकर अलाउद्दीन खिलजी काफी क्रोधित हुआ और उसने हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा कर मुहम्मदशाह की हत्या करवा दी।
हम्मीर का मूल्यांकन -
- हम्मीर ने अपने जीवन में कुल 17 युद्ध लड़े जिनमें से 16 में वह विजयी रहा। बार-बार के प्रयासों के बाद भी जलालुद्दीन खिलजी का रणथम्भौर पर अधिकार नहीं कर पाना हम्मीर की शूरवीरता व सैनिक योग्यता का स्पष्ट प्रमाण है।
- वह वीर योद्धा ही नहीं अपितु एक उदार शासक भी था।
- विद्वानों के प्रति हम्मीर की बड़ी श्रद्धा थी। विजयादित्य उसका सम्मानित दरबारी कवि तथा राघवदेव उसका गुरु था।
- कोटियज्ञ के सम्पादन के द्वारा उसने अपनी धर्मनिष्ठा का परिचय दिया।
- हम्मीर अपने वचन व शरणागत की रक्षा के लिए इतिहास में प्रसिद्ध है। उसने अपनी शरण में आए अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोहियों को न लौटाने का हठ कर लिया।
- इसी हठ के कारण हम्मीर ने अपना परिवार व राज्य खो दिया:-
सिंघ सवन, सत्पुरूष वचन, कदली फलै इक बार।भावार्थ:- शेरनी जंगल का राजा बनने वाले एक ही शिशु को जन्म देती है, सत्पुरुष द्वारा दिया गया वचन भी बदला नहीं जा सकता, कैले का पौधा भी एक ही बार फलता है, स्त्री के सिर पर (लग्नार्थ) दूसरी बार तेल सिंचित नहीं किया जाता, उसी प्रकार हम्मीर द्वारा दिया हुआ वचन कभी नहीं बदलता।
तिरिया तेल, हम्मीर हठ, चढ़ै न दूजी बार।।
- उसके इन गुणों की प्रशंसा के बावजूद उसकी भूलों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उसने अपने पड़ौसी राज्यों को छेड़कर और उनसे धन की वसूली कर अपने शत्रुओं की संख्या बढ़ा ली। अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध संगठन के प्रयास न करना भी उसकी रणनीतिक भूल थी।
- अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से पहले अपनी जनता पर करवृद्धि के कारण उसकी लोकप्रियता में कमी आई। इन कमियों के बावजूद हम्मीर को इतिहास में श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है।
- डॉ. दशरथ शर्मा ने लिखा है कि ‘‘यदि उसमें कोई दोष भी थे तो वे उसके वीरोचित युद्ध, वंश प्रतिष्ठा की रक्षा तथा मंगोल शरणागतों की रक्षा के सामने नगण्य हो जाते हैं।’’
- नयनचन्द्र सूरी की रचना हम्मीर महाकाव्य, व्यास भाण्ड रचित हम्मीरायण, जोधराज रचित हम्मीर रासो, अमृत कैलाश रचित ‘हम्मीर बन्धन’ और चन्द्रशेखर द्वारा रचित ‘हम्मीर हठ’ नामक ग्रंथों की रचना इसी हम्मीर को नायक बनाकर की गई है।
Post a Comment
0 Comments