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कैबिनेट मिशन 1946
- फरवरी 1946 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक उच्चस्तरीय शिष्टमण्डल भेजने की घोषणा की।
- कैबिनेट मिशन 29 मार्च, 1946 को भारत आया।
- इसमें पैथिक लॉरेंस (भारत सचिव), स्टैफर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष), तथा ए.वी. एलेक्जेन्डर (नौसेना मंत्री) शामिल थे।
- इस मिशन का उद्देश्य भारत को शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरण के लिए उपायों तथा संभावनाओं को तलाश करना तथा भारत के लिए संविधान तैयार करने के लिए शीघ्र ही एक कार्य प्रणाली तैयार करना और अंतरिम सरकार के लिए आवश्यक प्रबंध करना था।
- कैबिनेट मिशन ने समझौते का प्रयास करने के लिए शिमला में एक त्रिस्तरीय सम्मेलन बुलाया, जिसमें कांग्रेस और मुस्लिम लीग के तीन-तीन सदस्य शामिल हुए। कोइ्र समाधान नहीं निकलने पर मिशन ने 16 मई, 1946 को अपने प्रस्तावों की घोषणा की।
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव
- ब्रिटिश भारत तथा भारतीय राजाओ को मिलाकर एक संघीय सरकार (भारतीय संघ) के निर्माण की सिफारिश की गयी, जिसके पास रक्षा, विदेश तथा संचार विभाग रहेंगे तथा इन विभागों के लए धन एकत्र करने का अधिकार रहेगा।
- शेष विषय तथा शक्तियों राज्यों के पास रहेंगी।
- इसी तरह संघ और राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा अपनी-अपनी कार्यपालिका और विधायिका की रचना की जाएगी।
- संघीय विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषय तथा अवशिष्ट शक्तियां प्रान्तो के पास होगी। प्रान्तो को तीन समूहों में विभाजित किया गया।
- समूह क - बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रान्त, मध्य प्रान्त, बिहार तथा उड़ीसा
- समूह ख - पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त एवं सिंध।
- समूह ग - बंगाल तथा असम
- प्रान्तों को पृथकृ-पृथक् विधायिका और कार्यपालिका के साथ समूह बनाने का अधिका होगा तथा प्रत्येक समूह को अपने अधीन रखे जानेवाले प्रान्तीय विषयों का निर्णय करने का अधिकार होगा।
- संविधान सभा के निर्माण हेतु प्रत्येक प्रान्त को 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि के अनुपात में जनसंख्या के साम्प्रदायिक आधार पर स्थान दिए जाएंगे, सामान्य, मुस्लिम तथा सिख मतदाताओं के तीन वर्ग थे।
- भारतीय राज्यो के प्रतिनिधियो के चुनाव का निर्णय परामर्श से किया जाना था। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होने थे, जिसमे 292 ब्रिटिश भारतीय प्रान्तों से; 4 मुख्य आयुक्त तथा 93 देशी रियासतों से होने थे।
- सत्ता हस्तांतरण के पश्चात देशी रियासतों से संबद्ध सर्वोच्च शक्ति न तो ब्रिटेन के पास रहेगी और न ही भारत के पास।
- मिशन ने पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया। मिशन ने इसे अव्यावहारिक बताया, क्योंकि इससे साम्प्रदायिकता की समस्या हल नहीं हो सकती थी।
- सभी दलों की सहमति से शीघ्र ही एक अंतिरम सरकार की स्थापना की जाएगी।
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