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कुषाण वंश
- कुषाण ‘यू-ची’ जाति की एक शाखा थी।
- कुजुल कडफिसेस ने भारत में सर्वप्रथम पश्चिमोत्तर प्रदेश पर अधिकार कर लिया।
- यह कडफिसेस प्रथम के नाम से भी प्रसिद्ध था।
- कुजुल कडफिसेस ने केवल तांबे के सिक्के जारी किए। इसके सिक्कों पर ‘धर्मथिदस’ तथा ‘धर्मथित’ (धर्म में स्थित) उत्कीर्ण है।
- यह कडफिसेस द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है।
- उसने स्वर्ण एवं तांबे के सिक्के चलाए थे।
- शिव, त्रिशूल तथा नंदी की आकृति इसके सिक्कों पर मिलती है।
- इससे उसका शैव मतानुयायी होना सूचित होता है। उसने ‘महेश्वर’ की उपाधि धारण की थी।
- लेखों में उसे ‘महाराजराजाधिराजदेवपुत्र’ कहा गया है।
- कुषाण शासकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक कनिष्क था। राज्यारोहण 78 ई. को हुआ।
- सुई, बिहार से कनिष्क के शासनकाल के 11वें वर्ष का अभिलेख प्राप्त हुआ है। जिससे ज्ञात होता है कि उसने अपने शासन काल के 11वें वर्ष में निचली सिंधु घाटी को जीत लिया था।
- ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से ज्ञाता होता है कि उसने कपिशा पर अधिकार कर लिया था।
- कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि कनिष्क ने कनिष्कापुर (कश्मीर) नामक नगर बसाया था।
- कुषाण लेखों में पहली बार ‘दण्डनायक’ तथा ‘महादण्डनायक’ जैसे पदाधिकारियों का उल्लेख मिलता है।
- मथुरा लेख से ज्ञात होता है कि ग्रामों का शासन ‘ग्रामिक’ द्वारा चलाया गया था।
- कनिष्क के पश्चात वासिष्क तथा उसके पश्चात हुविष्क शासक हुआ।
- हुविष्क के सिक्कों पर शिव, स्कंद, कुमार, विशाख, महासेन आदि देवताओं की आकृतियां उत्कीर्ण मिलती है।
- कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था।
- कनिष्क के शासनकाल में कश्मीर के ‘कुण्डलवन’ में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
- वसुमित्र ने इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता की थी, क्योंकि अश्वघोष इसके उपाध्यक्ष थे।
- कनिष्क के शासनकाल में बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों - हीनयान व महायान में विभक्त हो गया। उसने महायान शाखा को राजाश्रय प्रदान किया था।
- कनिष्क के सिक्कों पर बुद्ध का अंकन मिलता है। उसके सारनाथ बौद्ध अभिलेख की तिथि 81 ई. है।
- भारत में राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में शक संवत् (प्रारंभ 78 ई.) को अपनाया गया है।
- कुषाण वंश की सीमाएं भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर तक फैली थी।
- इस वंश के महान शासक कनिष्क की सीमाएं उत्तर में चीन के तुरफान एवं कश्मीर से लेकर दक्षिण में विंध्य पर्वत तथा पश्चिम में उत्तरी अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार तक विस्तृत था।
- कुषाण शासक कनिष्क के काल में कला के क्षेत्र में दो स्वतंत्र शैलियों -मथुरा एवं गांधार शैली का विकास हुआ।
- भारत और यूनानी शैलियों का सम्मिश्रण शैली ‘गांधार शैली’ है। इस कला शैली के प्रमुख संरक्षक शक एवं कुषाण थे।
- इस कला का विषय बौद्ध धर्म होने के कारण इसे ‘यूनानी बौद्ध, इंडो-ग्रीक या ग्रीको-रोमन’ भी कहा जाता है।
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