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मैंग्रोव वनस्पति
मैंग्रोव वनस्पतियों से आप क्या समझते है? इनका क्या महत्त्व है? ये भारत के किन स्थानों पर पायी जाती हैं?
- मैंग्रोव एक प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियों का संग्रह है, जो खारे पानी को सहन कर सकती है और समुद्री पानी में आंशिक रूप में जलप्लावित होने पर भी फलने-फूलने की क्षमता रखती है। मैंग्रोव जंगल, समुद्र तटों पर नदियों के मुहानों एवं उनके ज्वार से प्रभावित अंतरस्थलीय (इनलैंड) क्षेत्रों में पाये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, विश्व में 60 से 70 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय समुद्रतटीय रेखा मैंग्रोव से आच्छादित है।
- मैंग्रोव समुद्र में जमीन को प्राप्त (रिक्लेम) करते हैं। ये काफी शीघ्रता से मलबे में जड़ पकड़ने एवं विकास करने में सक्षम होते हैं और उनकी यह गति उतनी ही तेज होती है, जितनी गति एवं तीव्रता से नदियां उनके विकास के लिए मलबा नदी मुख क्षेत्रों में लाती हैं।
- मैंग्रोव कम ऊंचाई (9 मीटर तक) के घने जंगलों के रूप में पाये जाते हैं। अपनी तीव्र वृद्धि और समुद्र तट के खारे में अनुकूलन के कारण ये आसानी से जीवित रहते हैं और शीघ्र ही घने जंगल बना लेते हैं। ये समुद्री लहरों के लिए एक अवरोधक के रूप में भी कार्य करते हैं और उनकी गति को नियंत्रित करते हैं, जिससे समुद्र तट का मृदा अपरदन कम होता है। साथ ही, ये नदियों द्वारा लायी गयी उपजाऊ मिट्टी को भी रोकने का काम करते हैं।
- ऊर्जा के लिए लकड़ी उपलब्ध कराने के अतिरिक्त ये औषधियां, टैनिन, चारा, फल-फूल, शहद तथा शाकाहारी जीवों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं। मैंग्रोव के जंगल कई वन्य जंतुओं को शरण देते हैं और मछलियों के अंडाजनन क्षेत्र के रूप में कार्य करते हैं। जैविक विविधता पाये जाने के कारण मैंग्रोव जीन-निकायों (जीन-पूल्स) के संरक्षण की क्षमता रखते हैं, जिसके सहारे ये भविष्य में अपनी जाति की रक्षा और अनेकरूपता बनाये रखने में समर्थ हैं।
- भारत तीन दिशाओं से समुद्र से घिरा हुआ है। इस प्रकार लंबी समुद्रतटीय रेखा के अंतर्गत लगभग 400 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में मैंग्रोव -पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात एवं अंडमान-निकोबार द्वीप समूहों में अलग-अलग स्थानों में देखने को मिलते हैं।
- भारत में इनका कुल क्षेत्रफल चार लाख हेक्टयेर के लगभग है।
- भारत में 85 प्रतिशत मैंग्रोव पश्चिम बंगाल (2 लाख हेक्टयेर) और अंडमान-निकोबार (1 लाख हेक्टयेर) में अवस्थित है।
- पश्चिमी तट की अपेक्षा पूर्वी तट पर ज्यादा मैंग्रोव पाये जाते हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के मुहाना में विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव ‘सुंदर वन’ है, जो 5180 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
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