History
शिवाजी का प्रशासन
- शिवाजी का प्रशासन व्यवस्था अधिकांशतः दक्कन की सल्तनतों से ली गयी थी, जिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था।
- शिवाजी के मंत्रिमंडल को अष्ट प्रधान कहा जाता था। अष्टप्रधान में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सम्मान का होता था।
अष्टप्रधान के विवरण -
- पेशवा (प्रधानमंत्री) - राज्य का प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की देख-रेख।
- सर-ए-नौबत (सेनापति) - सैन्य प्रधान
- अमात्य (मजमुआदार) - राजस्व मंत्री, आय-व्यय का लेखा-जोखा।
- वाकयानवीस - सूचना, गुप्तचर एवं सन्धि-विग्रह के विभागों का अध्यक्ष।
- चिटनिस (सुरनविस) - राजकीय पत्रों को पढ़कर उसकी भाषा-शैली को देखना।
- सुमन्त (दबीर) -विदेश मंत्री।
- पण्डित राव - धार्मिक व दान के मामलों का प्रधान।
- न्यायाधीश - न्याय विभाग का प्रधान।
- शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया था, जो वायसराय के अधीन होते थे।
- प्रान्तों को परगनो और तालुकों में विभाजित किया गया था।
सैन्य व्यवस्था -
- शिवाजी ने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित किया था -
- बरगीर और सिलेहदार
- बरगीर सेना - वह थी जो छत्रपति द्वारा नियुक्त की जाती थी, जिसे राज्य की ओर से वेतन एवं सुविधाएं प्रदान की जाती थी।
- सिलेहदार - स्वतंत्र सैनिक थे, जो स्वयं अस्त्र-शस्त्र रखते थे।
- उनकी सेना तीन महत्त्वपूर्ण भागों में विभक्त थी - पागा सेना (नियमित घुड़सवार सैनिक), सिलहदार (अस्थायी घुड़सवार सैनिक), पैदल सेना।
- शिवाजी की सैन्य व्यवस्था में सैनिकों को नकद वेतन देेने की प्रथा थी।
- 25 अश्वारोहियों की एक टुकड़ी होती थी।
- 25 घुड़सवार - एक हवलदार के अधीन होते थे।
- 5 हवलदार - एक जुमलादार के अधीन होते थे।
- 10 जुमलादार - एक हज़ारी के अधीन होते थे।
- 5 हज़ारी - एक पंचहज़ारी के अधीन होते थे।
- शिवाजी ने नौसेना की भी स्थापना की थी।
- मावली सैनिक शिवाजी के अंगरक्षक थे। मावली एक पहाड़ी लड़ाकू जाति थी।
- शिवजी की सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। लेकिन उनकी सेना में स्त्रियों के लिए स्थान नहीं था।
- शाही घुड़सवार सैनिकों को ‘पागा’ कहा जाता था।
- सर-ए-नौबत सम्पूर्ण घुड़सवार सेना का प्रधान होता था।
राजस्व व्यवस्था
- शिवाजी की राजस्व व्यवस्ाि मलिक अंबर की भूमि कर व्यवस्था से प्रेरित थी।
- भूमि की पैमाइश के लिए काठी एवं मानक छड़ी का इस्तेमाल किया था।
- शिवाजी के समय में कुल कृषि उपज का 33 प्रतिशत लिया जाता था जो बाद में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया।
- चौथ तथा सरदेशमुख मराठा कराधान प्रणाली के प्रमुख कर थे।
- चौथ -किसी एक क्षेत्र पर आक्रमण न करने के बदले दी जाने वाली रकम को कहा गया।
- सरदेश्मुखी - इसका हक का दावा करके शिवाजी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ देशमुख प्रस्तुत करना चाहते थे। यह आय का 10 प्रतिशत था।
- शिवाजी की भूमि व्यवस्था नोरोजी पंत ने की थी। मराठों का केन्द्रीय कार्यालय हुजूर-दफ्तर कहलाता था।
- 1657 ई. में शाहजहां के शासनकाल में शिवाजी का मुकाबला पहली बार मुगलों से हुआ।
शिवाजी के उत्तराधिकारी
शंभाजी 1680 से 1689
- शिवाजी की मृत्यु के बाद ही मराठा साम्राज्य उत्तराधिकार के संघर्ष में उलझ गया।
- शिवाजी की पत्नियों से उत्पन्न दो पुत्र शंभाजी और राजाराम के बीच उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ।
- राजाराम को हटाकर शंभाजी 20 जुलाई, 1680 को मराठा साम्राज्य की गद्दी पर बैठा।
- उसने उज्जैन के हिन्दी एवं संस्कृत कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया।
- उसने 1681 ई. में औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को शरण दी।
- मार्च 1689 को औरंगजेब के सेनापति मखर्रब खां ने संगमेश्वर मंदिर में छिपे हुए शंभाजी एवं कवि कलश को गिरफ्तार कर लिया और उसकी हत्या कर मराठा राजधानी रायगढ़ पर अधिकार कर लिया। इसी किले में शंभाजी के पुत्र शाहू को बंदी बनाया गया।
राजाराम
- शम्भाजी के बाद 1689 ई. में राजाराम का नए छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया गया। राजाराम मुगलों के आक्रमण के भय से अपनी राजधानी रायगढ़ से जिंजी ले गया।
- 1698 ई. तक जिंजी मुगलों के विरुद्ध मराठा गतिविधियों का केन्द्र रहा।
- 1699 ई. में सतारा को दूसरी राजधानी बनाया। राजाराम मुगलों से संघर्ष करता हुआ 1700 ई. में मारा गया।
- उसकी मृत्यु के बाद विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को मराठा साम्राज्य राजा बनाया और खुद वास्तविक संरक्षिका बन गई।
शाहू 1707 से 1748 ई.
- 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र बहादुरशाह प्रथम ने शाहू कैद से मुक्त कर दिया।
- शाहू एवं ताराबाई बीच 1707 ई. में खेड़ा का युद्ध हुआ, जिसमें साहू बालाजी विश्वनाथ की मदद से विजयी हुआ।
- साहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषेक करवाया तथा एक नया पद सेनाकर्ते (बालाजी विश्वनाथ के अधीन) बनाया।
- शाहू ने 1713 ई. में बालाजी को पेशवा के पद पर नियुक्त किया।
- बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति के साथ ही पेशवा पद शक्तिशाली हो गया। छत्रपति नाममात्र का शासक रह गया।
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