उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत

उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत
आवश्यकता+चालक+लक्ष्य  = अभिप्रेरणा

  • ‘आवश्यकता से लेकर लक्ष्य प्राप्ति तक के सम्पूर्ण क्रम को अभिप्रेरणा कहते हैं।’

अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है -
सकारात्मक अभिप्रेरणा  - 

  • स्वयं से प्रेरित अभिप्रेरणा को सकारात्मक अभिप्रेरणा कहते हैं। 
  • यह सभी में समान होती है। इसकी पूर्ति आवश्यक हैं जैसे - भूख, प्यास, नींद।

नकारात्मक अभिप्रेरणा -

  • ऐसी अभिप्रेरणा जिसकी पूर्ति अत्यंत आवश्यक नहीं है अर्थात् दूसरों से अर्जित अभिप्रेरणा को नकारात्मक अभिप्रेरणा कहते हैं।
  • यह सभी में अलग-अलग होती है।
  • जैसे - उपलब्धि, सत्ता।
  • अभिप्रेरणा चक्र दो प्रकार का होता है - 

चक्रीय अभिप्रेरणा चक्र -

  • ऐसा अभिप्रेरणात्मक चक्र जो स्वयं सतत रूप से जारी रहता है।
  • सभी में समान होता है।
  • इसके तीन चरण होते हैं: आवश्यकता, चालक और लक्ष्य

संज्ञानात्मक अभिप्रेरणात्मक चक्र -

  • ऐसा अभिप्रेरणात्मक चक्र जो स्वयं नहीं चलता बल्कि संज्ञान के द्वारा चलाया जाता है।
  • यह चक्र सभी में अलग-अलग प्रकार का होता है।
  • इसके चार चरण होते हैं: आवश्यकता, चालक, लक्ष्य और संज्ञान।
  • जैसे - उपलब्धि, सत्ता, सम्बन्धन, आक्रमणशीलता, अनुमोदन।
  • भूख है - चालक।
  • चालक  मनोशारीरिक होता है। 

उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत -

  • एटकिंसन और मैक्लीलैण्ड ने प्रतिपादित किया।

इस सिद्धांत में एटकिंसन ने दो प्रेरक बताये है -

  1. सफलता प्राप्त करने का प्रेरक
  2. असफलता से बचने का प्रेरक

इन दो प्रेरकों के आधार पर हम चार निष्कर्ष पर पहुंचाते हैं -

  1. यदि एक व्यक्ति में सफलता प्राप्त करने का प्रेरक अधिक हो और असफलता से बचने का प्रेरक कम हो तो वह व्यक्ति कार्य निष्पादन सफलता प्राप्त करने के लिए करता हैं ऐसी सोच को सकारात्मक सोच कहते है।
  2. यदि एक व्यक्ति में सफलता प्राप्त करने का प्रेरक कम हो और असफलता से बचने का प्रेरक अधिक हो तो ऐसा व्यक्ति कार्य निष्पादन असफलता से बचने के लिए करता है। ऐसी सोच को नकारात्मक सोच कहते है।
  3. यदि एक व्यक्ति में सफलता प्राप्त करने का प्रेरक कम हो और असफलता से बचने का प्रेरक भी कम हो तो ऐसा व्यक्ति कार्य निष्पादन न तो सफल होने के लिए करता है और न ही असफलता से बचने के लिए करता है। ऐसे व्यक्ति सबसे कम चिंतित होते है।
  4. यदि एक व्यक्ति में सफलता प्राप्त करने का प्रेरक अधिक हो और असफलता से बचने का प्रेरक अधिक हो तो ऐसा व्यक्ति कार्य का निष्पादन निश्चित रूप से सफल होने के लिए करता है। ऐसे व्यक्ति सफलता के लिए सर्वाधिक चिंतित होते हैं। ऐसे व्यक्ति के सामने करो या मरो की स्थिति होती है।


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