उत्तराधिकार का युद्ध


  • जहांआरा ने दाराशिकोह, रोशनआरा ने औरंगजेब और गौहनआरा ने मुराबख्श का पक्ष लिया।
  • सर्वप्रथम शाहशुजा ने बंगाल में तथा मुराद ने गुजरात में अपने को स्वतंत्र बादशाह घोषित किया, किन्तु औरंगजेब ने कूटनीतिक कारणों से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की।
  • सर्वप्रथम शाहशुजा ने जनवरी, 1658 ई. में राजधानी की ओर कूच किया।
  • उत्तराधिकार युद्ध की शुरूआत 14 जनवरी, 1658 को शाहशुजा एवं शाही सेना (सुलेमान शिकोह एवं जयसिंह के नेतृत्व में) के बीच बनारस से पांच किमी. दूर ‘बहादुरपुर’ के युद्ध से हुई। शुजा पराजित होकर पूर्व की ओर भाग गया।
  • उज्जैन से 14 मील दूर धरम्मत नामक स्थान पर औरंगजेब और मुरादबख्श की सम्मिलित सेनाओं का जसवन्तसिंह और कासिम खां के नेतृत्व में शाही सेना से मुकाबला 15 अप्रैल, 1658 ई. में हुआ। जिसमें शाही सेना पराजित हुई।
  • शाही सेना का औरंगजेब और मुराद की सम्मिलित सेना से निर्णायक मुकाबला 29 मई, 1658 ई. को सामूगढ़ नामक स्थान पर हुआ।
  • सामूगढ़ की विजय के बाद औरंगजेब ने कूटनीति से मुराद को बन्दी बना लिया और बाद में हत्या करवा दी।
  • औरंगजेब और शुजा के बीच युद्ध 5 जनवरी, 1659 ई. को इलाहाबाद के निकट खंजवा नामक स्थान पर हुआ जिसमें परास्त होकर शुजा अराकान भाग गया, जहां उसकी मृत्यु हो गयी।
  • औरंगजेब और दारा के बीच अन्तिम लड़ाई अप्रैल, 1659 ई. में अजमेर के निकट देवराई की घाटी में हुआ जिसमें दारा अन्तिम रूप से पराजित हुआ। (बर्नियर ने वर्णन किया)
  • औरंगजेब और मुरादबख्श के बीच जो ‘अहदनामा’ (समझौता) हुआ था उसमें दारा को ‘रईस-अल-मुलाहिदा’ अर्थात् अपधर्मी शहजादा कहा गया था।

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