B.A History
मौर्यकालीन मूर्तिकला के चार उदाहरण
- पितामह सिद्धांत, रोमक सिद्धांत, पॉलिश सिद्धांत, वसिष्ठ सिद्धांत और सूर्य सिद्धांत।
- भारत के प्रथम बीजगणितज्ञ आर्यभट्ट थे। उनकी प्रमुख रचना ‘आर्यभट्टीय’ है। जिसके गणितपाद भाग में बीजगणित का वर्णन किया गया है। उन्होंने दशमलव पद्धति और पृथ्वी गोल है तथा अपनी धुरी पर घूमती है का सिद्धांत प्रतिपादित किया था।
अशोक द्वारा निर्मित पाषाण स्तम्भों में सबसे अधिक सुन्दर कौनसा स्तम्भ है?
- सारनाथ का स्तम्भ
- सारनाथ के स्तम्भ के ऊप चार शेरों की अत्यन्त सुन्दर मूर्तियां बनी हुईं हैं। शेरों के नीचे के पत्थर पर चार धर्मचक्र तथा चार पशुओं के चित्र अंकित हैं।
- अशोक के स्तम्भों का निर्माण चुनार के बलुआ पत्थर से किया गया था।
अशोक के स्तम्भों की विशेषताएं -
- अशोक के स्तम्भ चुनार के बलुआ पत्थर से बनाये गये हैं। इन पर सुन्दर पॉलिश की गई है और पशुओं की आकृतिओं का चित्रण है।
मौर्यकालीन मूर्तिकला के चार उदाहरण -
- दीदारगंज से प्राप्त यक्षिणी की मूर्ति
- परखम से प्राप्त यक्ष की मूर्ति
- धौली का हाथी
- बेसनगर की स्त्री मूर्ति
अशोक द्वारा बारबरा की पहाड़ियों में बनवाई गई गुफाओं के नाम -
- कर्ण चौपड़ गुफा
- सुदामा गुफा
- लोमस ऋषि की गुफा
- विश्व झोंपड़ी गुफा
किन मौर्य-सम्राटों ने गुफाओं का निर्माण करवाया और कहां करवाया?
- मौर्य सम्राट अशोक तथा उसके पौत्र दशरथ ने बारबरा तथा नागार्जुन की पहाड़ियों में अनेक गुफाओं का निर्माण करवाया।
- इन के निर्माण का उद्देश्य आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओं के रहने के लिए गुफाओं का निर्माण करवाया था।
मथुरा कला की मुख्य विशेषताएं -
- इस शैली में बनी हुईं मूर्तियां लाल पत्थर की बनी हैं।
- इस शैली की मूर्तियां अपनी विशालता तथा भौतिकवादिता के लिए प्रसिद्ध है।
- यह शैली इसलिए प्रसिद्ध है - इसमें बुद्ध, बोधिसत्वों, कनिष्क, ब्रह्मा, विष्णु, यक्ष-यक्षणियों आदि की मूर्तियों का निर्माण किया गया।
- मथुरा शैली के अन्तर्गत बुद्ध तथा बोधिसत्वों, कुषाण शासक, कनिष्क, ब्राह्मण धर्म तथा जैन धर्म से सम्बन्धित मूर्तियों का निर्माण किया गया।
उत्तरवैदिक काल में धर्म की प्रमुख विशेषताएं बताइए?
- उत्तर वैदिककालीन आर्य प्रजापति, विष्णु तथा शिव की उपासना करते थे।
- इस युग में यज्ञों और कार्मकाण्ड़ों पर अधिक बल दिया गया।
- इस युग की उपासना मंत्र प्रधान हो गई थी।
- इस युग में पच महायज्ञों और धार्मिक संस्कारों का पर्याप्त महत्त्व था।
- इस युग में तप मार्ग एवं ज्ञान मार्ग पर भी बल दिया गया।
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