Hindi Kavita
प्रथम चुंबन तेरे लवों का हो
बहुत सुना है अलि,
कवियों की कविताओं में,
प्रेम विरह की वेदनाओं में,
तेरा जिक्र किया मधुकर।
एकटक देख तुझे अलि,
मानस पटल पर तेरा ही,
कुसुम संग मधुविलास का,
कितनों के हृदय में कामुकता का।
अटखेलियां दिलों में,
प्रेमी युगल को मनचला बना देती है।
पर आज तुझे वंचित कर दिया मधुविलास से।।
माशूका से कहते हैं -
भोरकाल के अंधेरे में ही,
देखा था माली ने ही,
अलि के आने से पहले ही,
लील गई चंद खनक सिक्कों की।
इस प्रभात की बेला में,
अरुणोदय की लालिमा में,
प्रथम चुंबन तेरे लवों का हो,
यही कली की चाह थी।
पर वो नर तरूणाई हीन हो,
वृद्धावस्था के रंग में रंगा,
बस कली के चुंबन की चाह में,
पैसों के खनखनाहट संग आगे बढ़ा।
कली को अलसना पड़ा,
चंद खनक पैसों की चाह में,
माली ने पनासा था बस स्वार्थ में।
हर दिन कितनी कलियां,
चंद कागजों की खनक पे,
चीयर गर्ल्स बन जाती है,
कितनी जिस्म नुमाईश में,
हीन अबला बन जाती है।
आज अलि बस फैशन से,
लूट रहा हंसते-हंसते।
उजड़ा उपवन है उनका,
हे अलि तेरा भी हाल यही।
उजड़ा उपवन देख अलि,
स्तब्ध था आज,
गुंजन के स्वर बदल गये क्यूं?
रोने का आलप तीव्र हो चला,
कौंसता कभी माली को,
कभी उजड़े उपवन की हरियाली को,
जो विरोध न कर सकी।
बहुत गुंजन करता था,
कोसों दूर शक्ति को शौर्य था,
आज सिमट गया,
मॉलों में।
देखा उसने कली को,
पर नर की बनाई रचना का,
उस संग पलती भौतिकता का,
आभास न था अलि को।
टकरा गया वह पारदर्शी सीसे से,
तेज गति से आघात लगा दिल पे,
कौन संवारता उसको,
क्योंकि मूक-बधिर सा था जीव वह।
टकराकर गिरता था,
फिर उठकर उड़ता था,
फिर टकरा कर शक्ति को नष्ट करता था।
हताश हो वह उस ओर चला,
जिस ओर से एक प्रेमी युगल चल,
उसने सोचा यही एक राह है,
बस मॉल में घुसने की राह है,
प्रवेश करते ही उसे।
घेर लिया कृत्रिम सुगंध ने,
जी मचलने लगा उसका स्प्रे की गंध से।
जब कुसुम कली तक पहुंचा तो,
ठनक गया माथा उसका।
प्लास्टिक के गुलदस्ते में फूलों से,
बहकती गंध से भ्रम हो गया कुसुम कली का,
तभी वह जख्मी हो गया अपनी नियति से।
वह नियति को भी क्या दोष देता,
दोष मानव के भौतिकता को था।
यह हाल प्रेमी युगल का होगा,
अभिशाप उस अलि का।
कवि -
राकेश सिंह राजपूत
9116783731
9116783731
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