राष्ट्रपति की आपात शक्तियां

राष्ट्रपति की आपात शक्तियां
  • राष्ट्रपति को आपातकाल से सम्बन्धित तीन प्रकार की शक्तियां प्राप्त है -
राष्ट्रीय आपात:

  • युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न परिस्थिति में राष्ट्रपति आपात की उद्घोषणा कर सकता है। 
  • 44वें संविधान संशोधन के द्वारा यह प्रावधान कर दिया गया है कि आपातकाल की घोषणा मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श पर ही राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है। साथ ही यह व्यवस्था दी गयी है कि आपात की उद्घोषणा के एक महीने के भीतर ही संसद के दोनों सदनों - लोकसभा तथा राज्यसभा भंग रहती है तो राज्यसभा द्वारा एक महीने के भीतर उसका अनुमोदन हो जाना चाहिए।
  • संसद के दोनों सदनों द्वारा दो तिहाई बहुमत से 6 माह के लिए उक्त आपातकाल को एक बार बढ़ाया जा सकता है। संसद के एक सदन द्वारा पारित होने तथा दूसरे सदन द्वारा अनुमोदित ने होने की स्थिति में उद्घोषणा एक माह के बाद समाप्त हो जायेगी। 
  • राष्ट्रीय आपात के दौरान लोकसभा अपनी कार्यावधि एक-एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती हे, लेकिन उद्घोषणा समाप्त होने पर 6 माह के भीतर लोकसभा के चुनाव करना आवश्यक है।
  • 44वें संविधान संशोघन के तहत संविधान के अनुच्छेद 20 और अनु. 21 को छोड़कर भाग 3 के अन्य मौलिक अधिकार स्थगित रहेंगे।
  • राष्ट्रीय आपात पूरे देश में या देश के किसी भाग में लागू किया जा सकता है। आपातकाल के दौरान राज्य विधानमंडल स्थगित या भंग नहीं होता। 
  • संविधान के अनुच्छेद 352 (ख) के उपबंधों के तहत लोकसभा के न्यूनतम 1/10 सदस्य सत्र न रहने पर लोकसभा अध्यक्ष को अथवा राष्ट्रपति को आपातकाल समाप्त करने के लिए प्रस्ताव लाने की सूचना दे सकते हैं। इस प्रकार की सूचना मिलने पर 14 दिन के भीतर सदन का विशेष अधिवेशन बुलाना आवश्यक होता है। 

राष्ट्रपति शासन:-
अनुच्छेद 356 

  • राष्ट्रपति राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अपने विवेक से किसी भी राज्य के सांविधानिक तंत्र की विफलता की घोषणा कर सकता है। 
  • राष्ट्रपति की इस घोषणा का संसद द्वारा दो माह के भीतर साधारण बहुमत से अनुमोदन होना आवश्यक है।
  • राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद से परामर्श लेना आवश्यक नहीं है। 
  • उद्घोषणा का नवीकरण संसद द्वारा एक बार में 6 माह के लिए साधारण बहुमत से किया जा सकता है। 
  • राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि तीन वर्ष की होती है। 
  • निर्वाचन आयोग द्वारा यह प्रमाणित करने पर कि राज्य में चुनाव के लिए अभी परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं या राष्ट्रीय आपात रहने पर, राष्ट्रपति शासन की अवधि 3 वर्ष से भी आगे बढ़ाई जा सकती है।
  • संविधानिक तंत्र की विफलता के लिए घोषणा प्रत्येक राज्य में अलग-अलग करना आवश्यक है। 
  • राष्ट्रपति शासन के दौराना राष्ट्रपति को उच्च न्यायालयों के अधिकारों को हस्तगत करने अथवा उससे सम्बन्धित सांविधानिक प्रावधानों को स्थगित अथवा परिवर्तित करने का अधिकार नहीं है।

वित्तीय आपात:-
अनुच्छेद 360
  • भारत अथवा उसके क्षेत्र के किसी भाग में वित्तीय स्थायित्व संकट पड़ने पर राष्ट्रपति वित्तीय आपात की उद्घोषणा कर सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपात की उद्घोषणा का दो महीने के भीतर संसद द्वारा साधारण बहुमत से अनुमोदन होना आवश्यक है। 
  • वित्तीय आपात की अधिकतम अवधि निश्चित नहीं है।
  • वित्तीय आपात की स्थिति में संघ तथा राज्य सरकारों के पदाधिकारियों (न्यायाधीश सहित) का वेतन तथा भत्ता घटाया जा सकता है।
  • वित्तीय आपात में राज्य विधान मंडलों द्वारा पारित सभी धन विधेयकों पर राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है।
  • भारतीय संविधान में वित्तीय आपात का उपबंध संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से उद्गृहीत है।
  • भारत में संविधान लागू होने से लेकर आज तक वित्तीय आपात की घोषणा की आवश्यकता नहीं पड़ी है।
राष्ट्रपति से सम्बन्धित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
अब तक 3 बार राष्ट्रीय आपात (अनु.352) की उद्घोषणा हुई है -

  • अक्टूबर, 1962 से 10 जनवरी, 1968 तक - चीनी आक्रमण
  • दिसंबर, 1971 - पाकिस्तानी आक्रमण
  • जून, 1975 से 27 मार्च, 1977 तक - आंतरिक गड़बड़ी 
  • राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के अनुसार कार्य करेगा - 42वां संविधान संशोधन अधिनियम।
भारत के राष्ट्रपति द्वारा वीटो शक्ति का प्रयोग अब तक दो बार किया गया है:-
  • ज्ञानी जैल सिंह द्वारा, पोस्टल बिल को अनुमति न देकर।
  • संसदों को एक वर्ष के कार्यकाल के बाद ही पेंशन योग्य मान लिये जाने सम्बन्धी विधेयक पर हस्ताक्षर न करके, आर. वेंकटरमन द्वारा।
  • चरण सिंह, राजीव गांधी तथा चन्द्रशेखर को राष्ट्रपति ने स्वविवेक के आधार पर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।
  • 1977 में नीलम संजीवा रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बने।
  • 1969 में वी.वी. गिरि दूसरे दौर की मतगणना के बाद राष्ट्रपति बने।

Post a Comment

0 Comments