स्वदेशी आंदोलन की उत्पत्ति की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए। जनसमूह इससे कैसे सम्बद्ध हुआ?

स्वदेशी आंदोलन की उत्पत्ति की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए। जनसमूह इससे कैसे सम्बद्ध हुआ?

  • 1905 ई. में बंग-भंग विरोध के लिए स्वदेशी और बहिष्कार का विचार कोई नया नहीं था। अमेरिका, आयरलैण्ड और चीन की जनता ने उसे पहले ही अपना लिया था। भारतीय उद्योग के विकास के लिए शुद्ध आर्थिक साधन के रूप में स्वदेशी का आह्वान महाराष्ट्र में रानाडे तथा बंगाल में नवगोपाल मित्र तथा टैगोर परिवार के लोग पहले ही कर चुके थे। तिलक ने 1896 में सम्पूर्ण बहिष्कार आंदोलन का नेतृत्व किया। विभाजन विरोधी आंदोलन से इन पुरानी अवधारणाओं को नयी शक्ति मिली।
  • 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के ‘टाउन हाल’ में एक ऐतिहासिक बैठक में स्वदेशी आन्दोलन की विधिवत घोषणा की गई।
  • 7 अगस्त की बैठक में ऐतिहासिक ‘बहिष्कार प्रस्ताव’ पारित हुआ। इस सभा के बाद प्रतिनिधि आंदोलन के विस्तार के लिए पूरे बंगाल में फैल गये।
  • लोगों से मैनचेस्टर के कपड़े और लिवरपूल के नमक के बहिष्कार की अपील करने लगे। 
  • 16 अगस्त, 1905 को, जब विभाजन लागू हुआ पूरे बंगाल में ‘शोक दिवस’ मनाया गया। लोगों ने उपवास रखे तथा एकता प्रदर्शन के लिए रक्षा बंधन के अवसर पर हिन्दू-मुसलमानों ने एक-दूसरे को राखी बांधी और गंगा में जाकर स्नान किया।
यह भी पढ़े - बंगाल विभाजन और स्वदेशी आंदोलन
  • टैगोर का ‘आमार सोनार बंग्ला’ तथा ‘वन्दे मातरम्’ तो आंदोलन के प्रतीक बन गये थे। नरपंथियों के विरोध के बावजूद स्वदेशी आंदोलन बंगाल के बाहर विस्तृत हुआ। बंगाल के बाहर मुंबई, मद्रास तथा आधुनिक उत्तर प्रदेश में इसका विस्तार हुआ। इसके तहत स्वदेशी शिक्षा एवं स्वदेशी उद्योग का व्यापक विकास हुआ। पी.सी. राय का बंगाल कैमीकल्स स्टोर्स तथा अरविन्द घोष की राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके प्रमुख उदाहरण है।
  • जहां तक जनसमूह की स्वदेशी आंदोलन से सम्बन्धता के कारणों का प्रश्न है, इसका सर्वप्रमुख कारा है बंग-भंग से बंगाल की जन-भावना को काफी ठेस पहुंचना। दूसरा पहलू यह हे कि भारत में राष्ट्रवाद का विकास धीरे-धीरे मजबूत हो रहा था। 
  • फलतः आंदोलन में छात्रों, स्त्रियों, मुसलमानों तथा आम जनता ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। लोग अब यह समझने लगे थे कि साम्राज्यवादी नीतियां किस प्रकार से देश की आम जनता को प्रभावित कर रही है। ऐसी परिस्थितियों में साम्राज्यवाद के विरोध करने का उत्तरदायित्व केवल राजनैतिक नेताओं का ही नहीं हो सकता थां परिणामस्वरूप जब बंभ-भंग एवं स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ हुआ तो जनता ने खुलकर इसमें अपनी भागीदारी निभायी।


Post a Comment

0 Comments