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Showing posts from January, 2019

चोलकालीन प्रशासन, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था

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केन्द्रीय प्रशासन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राजा होता था। शासन का स्वरूप राजतंत्रात्मक था। सार्वजनिक प्रशासन में राजा जो मौखिक आदेश देता था वो ‘तिरूवाय केल्बि’ कहलाते थे। राजा की उपाधियां - चक्रवर्तिगुल और त्रिलोक सम्राट उत्तराधिकार का नियम - ज्येष्ठता के आधार पर चुना जाता था। चोल प्रशासन में उपराजा के पद पर हमेशा राजकुमारी को नियुक्त किया जाता था। सरकारी अधिकारी दो वर्गों में विभक्त थे - पेरून्दनम् - उच्च (ऊपरी) श्रेणी  शिरूंदनम् - निम्नस्थ श्रेणी सरकारी पद वंशानुगत होते थे। राजा के व्यक्तिगत अंगरक्षकों को वेडैक्कार कहलाते थे। सेना के बड़े अधिकारियों को तीन भागों में बांटा गया था - नायक, सेनापति और महादण्डनायक अधिकारियों को उनको वेतन के रूप में जमीन दी जाती थी। उडनकूट्टम - राज्य के उच्च अधिकारियों या मंत्रियों को मुख्य अधिकारी - औलेनायकम् - प्रधान सचिव तिरून्दनम् - एक प्रधान कर्मचारी विडैयाधिकारिन - कार्य प्रेषक किरानी प्रशासनिक विभाग - प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में विभक्त था। जिन्हें मण्डलम् कहते थे।   इस विभाजन...

कोणार्क का सूर्य मंदिर

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उड़ीसा  उड़ीसा के मंदिर, शुद्ध नागर शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं।  इस काल में भुवनेश्वर में 100 मंदिर बनाये गये हैं। इसमें लिंगराज मंदिर, पूर्ण तथा विकसित नागर शैली का उदाहरण है। लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर):- इसके मुख्य भाग में गर्भगृह तथा उससे जुड़ा हुआ भाग ‘जगमोहन’ है जो एक प्रकार का मंडप है, जहां भक्त लोग एकत्रित होते हैं। जगमोहन के सामने नृत्य मंडप और भोग मंडप है। लिंगराज मंदिर में ये सभी भाग एक ही धुरी पर पूर्व से पश्चिम की ओर फैले हुए हैं।  मंदिर के शिखर की ऊंचाई 160 फुट है।  शिखर पर ‘आमलक’ तथा ‘कलश’ है।  सभा मंडप अथवा जगमोहन की छत पिरामिड के आकार की है। मंदिर के मुख्य शिखर की खड़ी धारियां प्रभावशाली हैं। अपने प्रचुर अलंकरण तथा उत्तम शिल्प विधि के कारण यह मंदिर निर्माण कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना माना जाता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर:- यह मंदिर लिंगराज मंदिर की तरह का बना हुआ है। इसके भी चार भाग हैं।  यह आकार में काफी विशाल है किंतु इसका वास्तु विन्यास सजीव तथा प्रभावशाली नहीं है। इसमें लिंगराज जैसा संतुलन नहीं है। कोणार्क मंदिर:- ...

गोविन्दगिरि का भगत आन्दोलन

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गोविन्दगिरि का भगत आन्दोलन जन्म: 1858 ई. में डूंगरपुर जिले के बांसिया आहड़ में  गुरु: साधु राजगिरि गोविन्दगिरि ने 1883 ई. में ‘सम्पसभा’ की स्थापना की। उन्होंने मेवाड़, डूंगरपुर, गुजरात, मालवा आदि क्षेत्रों के भील एवं गरासियो का संगठित किया। सम्पसभा का अर्थ आपसी एकता, भाईचारा और प्रेमभाव रखने वाला संगठन था। ‘सम्पसभा’ के प्रमुख नियम:- मांस खाने की मनाही शराब पीने का निषेध चोरी एवं डकैती करने का निषेध स्वदेशी का प्रयोग तथा अन्याय का प्रतिकार आदि सम्मिलित थे। आपसी झगड़ों को पंचायत में सुलझाने लगे, बच्चे को शिक्षा दिलाने लगे। उन्होंने लाग-बाग न देने, बेगार न करने तथा व्यर्थ के कर न देने की शपथ ली।  1881 ई. में जब दयानंद सरस्वती उदयपुर गये तो गुरु गोविन्द उनसे मिले तथा उनसे प्रेरणा पाकर गुरु ने आदिवासी सुधार एवं स्वदेशी आंदोलन शुरू किया।  कुरीतियों को दूर करने के लिए भगत आंदोलन एवं स्वदेशी आन्दोलन चलाया। 1903 ई. में गुजरात स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर आदिवासियों का पहला सम्मेलन ‘सम्पसभा’ के अधिवेशन के रूप में आयोजित किया गया। उन्होंने डूंगरपुर के बेडसा आहड़ में ध...

जापान सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट

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सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया भारत सरकार ने 10 जनवरी 2019 को ‘ राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम ’ (NCAP) की शुरुआत की। कार्यक्रम का उद्देश्य 2024 तक 102 शहरों में कणिकीय ( PM) प्रदूषण को 20-30% तक कम करना है। यह वायु प्रदूषण से निपटने के लिए राज्यों और केंद्र को एक ढांचा प्रदान करेगा। NCAP पहले वर्ष के रूप में 2019 के साथ एक मध्यावधि , पांच वर्षीय कार्य योजना होगी। जापान सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट  हेनले पासपोर्ट इंडेक्स के अनुसार, 190 देशों में इस दस्तावेज़ की पहुंच के कारण जापान ने दुनिया के सबसे अधिक यात्रा के अनुकूल पासपोर्ट के रूप में अपना शीर्ष स्थान बनाए रखा। भारत ने 2018 में 81 वे स्थान से 2019 में दो स्थान की छलांग लगाई। हेनले पासपोर्ट इंडेक्स इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (IATA) द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा पर आधारित है और इसमें 199 पासपोर्ट और 227 यात्रा स्थल शामिल हैं। भारत और स्वाज़ीलैंड के बीच TOR को मंजूरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 10 जनवरी , 2019 को भारत और स्वाज़ीलैंड (इस्वातिनी) के बीच संदर्भ की शर्तों ( T...

प्राकृतिक ईंधन तथा नोदक

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ईंधन तथा नोदक ऐसे पदार्थ जो जलने पर ऊष्मा व प्रकाश उत्पन्न करते हैं, ईंधन कहलाते हैं। गैस ईंधन के प्रकार:- प्राकृतिक ईंधन - तेलकूपों से पेट्रोलियम के साथ स्वतः निकलने वाली प्राकृतिक गैस विभिन्न हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होती है। प्राकृतिक गैस में मिथेन, एथेन, प्रोपेन और ब्यूटेन जैसे हाइड्रोकार्बन तथा नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं। इसमें मिथेन की प्रतिशतता सबसे अधिक (45.85) होती है। प्राकृतिक गैस का उपयोग ईंधन के रूप में तथा गैसोलीन, हाइड्रोजन आदि के निर्माण में होता है। पेट्रोलियम अर्थात् चट्टानों का तेल पृथ्वी की गहराई में चट्टानों के नीचे लवण जल की सतह के ऊपर प्लवित होता रहता है और उसके ऊपर प्राकृतिक गैस की परत रहती है। प्राकृतिक गैस में सर्वाधिक 80 प्रतिशत मिथेन गैस, 10 प्रतिशत एथेन और 10 प्रतिशत उच्चतर गैसीय हाइड्रोकार्बन के मिश्रण होते हैं। कच्चे तेल के हाइड्रोकार्बन में पैराफीन, नैफ्थलीन, ओलिफिन और ऐरोमैटिक यौगिक भी अलग-अलग अनुपात में होते हैं। कच्चा तेल उपस्थित मुख्य अवयव की प्रकृति के आधार पर निम्न तीन वर्गों में विभा...

राजस्थान के प्रसिद्ध व्यक्तियों के उपनाम

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राजस्थान का गांधी - हरिभाऊ उपाध्याय वांगड़ का गांधी - भोगीलाल पांड्या आदिवासियों का मसीहा - भोगीलाल पांड्या गांधीजी के पांचवें पुत्र - जमनालाल बजाज राजस्थान का भामाशाह - जमनालाल बजाज आधुनिक भारत का भागीरथ - महाराजा गंगासिंह (बीकानेर का शासक) राजस्थान का लोह पुरुष - दामोदर लाल व्यास किसान आंदोलन का जनक - विजयसिंह पथिक पत्रकारिता के जनक - पं. झाबरमल शर्मा राजस्थान का लोकनायक - जयनारायण व्यास (इन्हें शेर-ए-राजस्थान भी कहते हैं) राजस्थान का जतिनदास - बालमुकुंद बिस्सा भीलों के चित्तेरे - गोवर्धन लाल बाबा राजस्थान की मरू कोकिला - गवरी देवी वांगड़ की मीरा - गसवरी बाई आदिवासियों की बाई जी - मंजू राजपाल  राजस्थान की राधा - मीरा बाई राजपूताने का अबुल फलज - मुहणोत नैणसी डिंगल भाषा का हेरोंस - पृथ्वीराज राठौड़ चार्ल्स मार्टन - बापारावल (डॉ. वेद ने कहा) हल्दीघाटी का शेर - महाराणा प्रताप राजस्थान का भूला बिसरा शासक - राव चंन्द्र सेन (इसे मारवाड़ का प्रताप भी कहते हैं) मेवाड़ का भीष्म पितामह - कुंवर चूड़ा कलियुग का कर्ण - राव लूणकरण गरीब नवाज - ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती घ...

पादप हार्मोन

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पौधों में विभिन्न प्रकार की क्रियाओं को नियंत्रित एवं समन्वित करने वाले रासायनिक पदार्थ को हार्मोन कहते हैं। जिन मुख्य हार्मोनों की पहचान की गई है वे निम्नलिखित है - ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, एब्सिसिक अम्ल तथा एथिलीन हार्मोन के कार्य:- ऑक्सिन -  इसकी खोज डार्विन ने 1880 ई. में की। इसका प्रमुख कार्य - कोशिका विवर्धन, जड़ निर्माण, विलगन पर रोक, खरपतवार नाशक आदि। जिबरेलिन - इसकी खोज कुरोसावा ने 1926 ई. में की। इसका प्रमुख कार्य -  बौनी जातियों के तने को लम्बा करना, बीजों की प्रसुप्ति समाप्त कर अंकुरण में सहायक, पुष्पन तथा फल निर्माण पर नियंत्रण आदि। साइटोकाइनिन - साइटोकाइनिन की खोज मिलर ने की। इसका प्रमुख कार्य -  कोशिका विभान को प्रेरित करना, जीर्णता का विलम्बन, प्रसुप्त ऊतकों का जागरण आदि। एब्सिसिक अम्ल - इसकी खोज कार्न्स तथा एडिकोट ने की। इसका प्रमुख कार्य -  बीजों को सुप्तावस्था में रखना, पौधों की वृद्धि रोकना, पत्तियों का विलगन तथा पुष्पन में बाधक आदि एथिलीन - इसकी खोज बर्ग ने 1962 ई. में की।  इसका प्रमुख कार...

आजाद हिन्द फौज में शामिल महिलाएं

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रानी झांसी रेजिमेंट की स्थापना:-   9 जुलाई, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने एक विशाल जनसभा में महिलाओं को संगठित किया और ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ खड़ी हो गयी। 23 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में महिला कैंप लगा। फिर मलाया व बर्मा के अनेक भागों में भी कैंप लगे। इन कैंपों में महिलाओं को चिकित्सा, नर्सिंग, ड्रिल, नक्शे देखना, सामान्य युद्ध तकनीक, शस्त्र चालन आदि सेना के सभी क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें राइफल से लेकर मशीनगन तक का इस्तेमाल सिखाया गया। बाकायदा सैनिक वेश में सज-धज कर ये महिलाएं 6 से 40 मील तक मार्च करती थी। दैनिक परेड़ में भारत की आजादी के लिए शपथ ली जाती थी। प्रमुख महिलाएं कमांडर लक्ष्मी स्वामीनाथन (सहगल) :-  24.10.1914 - 23.07.2012 सिंगापुर में जब नेताजी ने वालंटियर महिलाओं को सीधे सेना में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, तो डॉ. लक्ष्मी आगे आयीं और उन्होंने यह उत्तरदायित्व अपने सिर ले लिया। वह आजाद हिंद सरकार में नारी कल्याण और मेडिकल सोशल वेलफेयर की मिनिस्टर भी थी। उनका ओहदा लेफ्टिनेंट कर्नल का था। जब आजाद हिंद फौज हार गयी, तो वह नेताजी के साथ न ल...

नए साहूकार

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नए साहूकार बैंक से कर्ज लेते हैं, और दुगुने ब्याज पर किसानों को कर्ज देते हैं। हां तभी तो किसान सिर्फ पेट पलते हैं, वर्तमान साहूकारों के कर्ज में, पीढ़ियों से यही देखा है, यही पढ़ा है, देख रहा हूं वही फिर से। क्योंकि अब सेठ साहूकार, नई पीढ़ी है जो पढ़कर, अमल नहीं करती, पूर्व के साहूकार से क्या कम है। सबका ध्यान लगा हुआ है, धन संचय का प्रश्न बड़ा है। हां आज के साहूकार, बैंक से कर्ज लेकर, उसी किसान-मजदूर को, दुगुने ब्याज पर कर्ज देते हैं। और बैंक मैनेजर हंस कर, गारन्टी लेते हैं, और अपनी जात- रिश्तेदार को, नए साहूकार बनने में मदद देते हैं। यह नया खेल है, कुछ पूर्व साहूकारों से प्रतिशोध लेते हैं। दोष सरकार का नहीं, कर्ज माफी का लाभ, नए साहूकार ही ले ते हैं। लेखक -  राकेश सिंह राजपूत

चट्टानें

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धरातल के ऊपर स्थित संगठित पदार्थ जिसका निर्माण भौतिक तथा रासायनिक तत्त्वों के संयोग से होता है। चट्टानें तीन प्रकार की होती है:- आग्नेय अवसादी या परतदार चट्टानें कायान्तरित/ रूपान्तरित चट्टानें आग्नेय चट्टानें:- इसका निर्माण ज्वालामुखी लावा के ठण्डे होकर जमने से होता है। चूंकि सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण होता है। इस कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें कहा जाता है। यह रवेदार तथा दानेदार होती है। इनमें परतों का अभाव पाया जाता है। इनमें जीवाश्मों का अभाव पाया जाता है। रूपान्तरित तथा अवसादी चट्टानें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इनसे ही निर्मित होती हैं। उदाहरण - ग्रेनाइट, बेसाल्ट, ग्रेबों, पेग्माटाइट, डायोराइट, पिचस्टोन आदि अवसादी चट्टानें:- इन चट्टानों का निर्माण अवसादों के जमाव से होता है।  इन चट्टानों में अवसादों की कई परतें पाई जाती है। जिस कारण इन्हें परतदार चट्टानें कहा जाता है। इनमें रवे नहीं पाये जाते हैं। इनमें जीवाश्म एवं खनिज तेल इसी में पाये जाते हैं। धरातल पर अवासादी चट्टानों का विस्तार सर्वाधिक क्षेत्र पर पाया जाता है। लगभग 75 प्रतिशत...

राजस्थान के प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र

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रवीन्द्र मंच, जयपुर 15 अगस्त, 1963 को तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री श्री हुमायूं कबीर ने किया। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र - उदयपुर 1986 ई. में राजस्थान ललित अकादमी, जयपुर - 1957 ई. में जवाहर कला केन्द्र, जयपुर पारम्परिक एवं विलुप्त होती जा रही कलाओं को खोज, उनका संरक्षण एवं संवर्द्धन करने तथा कलाओं को जनाश्रयी बनाकर उनका समन्वित विकास करने के लिए इस केन्द्र की स्थापना की गई। चित्रकला के विकास हेतु कार्यरत कुछ संस्थाएं जोधपुर में चितेरा व धोरां उदयपुर में तूलिका कलाकार परिषद, टखमण कलावृत्त आयाम, क्रिएटिव आर्टिस्ट ग्रुप - जयपुर रूपायन संस्थान, बोरूंदा  - जोधपुर 1960 ई. में अरबी फारसी शोध संस्थान, टोंक 1978 ई. राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर राज्य में संगीत शिक्षा की समृद्धि के लिए सन् 1950 ई. में इसकी स्थापना की गई। प्रथम प्राचार्य श्री ब्रह्मानन्द गोस्वामी थे।  इस संस्थान में शास्त्रीय गायन, सितार, वायलिन, तबला, गिटार एवं कत्थक नृत्य के शिक्षण की व्यवस्था है। जयपुर कत्थक केन्द्र, जयपुर कत्थक नृत्य के जयपुर घराने...

सत्यरूप ने बनाया सबसे कम उम्र में पर्वत फतह करने का विश्व रिकॉर्ड, जानिए?

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सात पर्वत शिखरों और सात ज्वालामुखी पर्वतों पर लहराया तिरंगा। भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के निवासी व पर्वतारोही सत्यरूप सिद्धांत ने विश्व के सातों महाद्वीपों के सात पर्वत शिखरों और सात ज्वालामुखी पर्वतों को फतह करने वाले विश्व के सबसे युवा पर्वतारोही बन गए हैं, साथ ही वे भारत की ओर से ऐसा करने वाले पहले पर्वतारोही है।  उन्होंने यह उपलब्धि 16 जनवरी, 2019 को भारतीय मानक समयानुसार सुबह 6 बजकर 28 मिनट पर सातवें ज्वालामुखी पर्वत माउंट सिडले को फतह कर प्राप्त की। यह पर्वत अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे पॉइंट पर है जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस है।  माउंट सिडले की चोटी पर पहुंचकर सत्यरूप ने तिरंगा फहराकर राष्ट्रगीत गाया और केक काटकर अपनी शानदार उपलब्धि का जश्न मनाया। इसकी जानकारी उन्होंने अपने ट्वीटर अकाउंट के जरिये ट्वीट करके दी - ‘ माउंट सिडले पर भारतीय ध्वज फहरा दिया है। ये बेहद गर्व वाला पल है।’ उन्होंने ये मिशन 35 साल 262 (35 वर्ष 9 माह) दिन की उम्र में पूरा किया है। सत्यरूप से पहले यह रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के पर्वतारोही डेनियल बुल के नाम था, जिन्होंने 36 साल 157 दिन...

समुद्री जल की लवणता

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समुद्र का जल खारा होता है। 1,000 ग्राम (1 किलोग्राम) समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम में) की मात्रा के द्वारा किया जाता है। इसे प्रति 1,000 भाग ( 0 / 00 )  या PPT के रूप में व्यक्त किया जाता है। लवणता समुद्री जल का महत्त्वपूर्ण गुण है। 24.7   0/ 00  की लवणता को खारे जल को सीमांकित करने की उच्च सीमा माना गया है। समुद्री जल की लवणता लगभग 35 प्रति हजार है। अर्थात् समुद्र के एक हजार ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम लवण होता है। डिटमार महोदय के अनुसार समुद्र के जल में 47 विभिन्न प्रकार के लवण हैं।  क्लोरीन 18.97 सोडियम 10.47 सल्फेट 2.65 मैग्नेशियम 1.28 कैल्शियम 0.41 पोटैशियम 0.38 बाइकार्बोनेट 0.14 ब्रोमीन 0.06 बोरेट 0.02 स्ट्रॉन्शिम 0.01 लवणता को प्रभवित करने वाले कारक विभिन्न स्थानों पर विभिन्न मात्रा में लवणता पाई जाती है।  इसको प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं: स्वच्छ जल की पूर्ति -  बर्फ के पिघलने से स्वच्छ जल लगातार प्राप्त होता है, जिससे लवणता की मात्रा पर काफी प्रभाव पड़ता है।  जिस समुद्र में स्वच्छ जल की लगाता...