जीवाणु


  • जीवाणु वास्तव में पौधे नहीं होते।
  • जीवाणु की कोशिकाभित्ति का रासायनिक संगठन पौधों की कोशिका के रासायनिक संगठन से बिल्कुल भिन्न होता है।
  • कुछ जीवाणु प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं, लेकिन उनमें विद्यमान बैक्टीरियोक्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल से बिल्कुल अगल होता है।
  • सभी जीवाणु प्रोकैरियोटी होते हैं। अतः जीवाणु क्लोरोफिल रहित, एककोशिकीय अथवा बहुकोशिकीय सूक्ष्म प्रोकैरियोटी जीवधारी हैं।
  • जीवाणु का सर्वप्रथम विवरण ल्यूवेनहॉक ने 1676 में दिया था, जबकि बैक्टीरिया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एहरेनबर्ग ने 1838 में किया।
  • कायिक जनन प्रायः द्विखंडन द्वारा होता है। इस प्रक्रिया में जीवाणु-कोशिका समान प्रकार की दो संतति कोशिकाओं में बंट जाती है। 
  • इसका विखंडन इतना तेज होता है कि यदि दशाएं अनुकूल हों तो 6 घंटे में एक कोशिका से 10 लाख तक जीवाणु बन सकते हैं।

जीवाणु तथा दुग्ध उत्पाद

  • पदार्थ जीवाणु 
  1. योगर्ट लैक्टोबैसिलस वल्गेरिकस व स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस
  2. दही         स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस, लैक्टोबैसिलस एसिडोफोलिस
  3. बटर मिल्क लैक्टोबैसिलस वल्गेरिकस
  4. पनीर लैक्टोबैसिलस लैक्टिस व स्ट्रेप्टोकोकस क्रिमोरिस
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पढ़ने के लिए क्लिक करें - साइनोबैक्टीरिया: नीलहरित शैवाल 
मानव में होने वाले रोग

कवकसम जीवाणु (एक्टिनोमाइसिटीज)
  • ये वे जीवाणु है जिनकी रचना कवकजाल के समान तंतुवत या शाखित होती है। पहले इन्हें कवक माना जाता था, परंतु प्रोकैरियोटी कोशिका संगठन के कारण इन्हें अब जीवाणु माना जाता है।
  • स्ट्रेप्टोमाइसीज इस समूह का एक महत्त्वूपर्ण वंश है। इससे एक महत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक स्ट्रेप्टोमाइसिन बनाया जाता है।
  • यह तपेदिक में लाभदायक है।
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन के अतिरिक्त के अतिरिक्त कवकसम जीवाणुओं की अनेक जातियों से विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक प्राप्त होते हैं। जैसे - टेट्रासाइक्लिन, क्लोरोमाइसिटीन आदि।
  • इस समूह की परजीवी जातियों से मानव तथा पौधों में अनेक प्रकार के रोग होते हैं। 
  • मानव में होने वाले रोग:- तपेदिक, कुष्ठ रोग, डिप्थीरिया तथा सिफलिस आदि।
  • पादप रोग:- गेहूं का तोंदू तथा आलू का स्कैब आदि।
आर्कीबैक्टीरिया  Archaebacteria
  • जिन परिस्थितियों में ये निवास करते हैं उनके आधार पर आर्कीबैक्टीरिया को तीन समूहों में बांटा जाता है - मैथेनेजोन, हैलोफाइल्स तथा थर्मोएसिडोफाइल्स।
  • ये जीवाणु असाधारण परिस्थितियों में, जैसे - ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में, उच्च ताप तथा अत्यधिक लवणता में अपने जीवन का भली-भांति निर्वाह कर सकते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि ये प्राचीनतम जीवधारियों के प्रतिनिधि हैं, इसलिए इनका नाम आर्की अर्थात् आदि बैक्टीरिया रखा है।
  • इसलिए उन्हें प्राचीनतम जीवित जीवाश्म कहा जाता है।


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