बेरोज़गारी

बेरोज़गारी के प्रकार

  • बेरोज़गारी वह सामाजिक-आर्थिक स्थिति है, जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति काम करना चाहता है, परंतु काम नहीं मिलता है। 
  • यह वह स्थिति है जब व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर या उससे कम पर भी काम करना चाहता हैं परंतु काम नहीं मिलता है। 
  • बेरोज़गारी का वह स्वरूप, जब श्रमिकों द्वारा जानबूझकर काम नहीं किया जाता है अथवा प्रचलित मजदूरी दर पर काम नहीं किया जाता है तो इसे ऐच्छिक बेरोज़गारी कहते हैं। 
  • इसके विपरीत बेरोज़गारी का दूसरा स्वरूप अनैच्छिक कहलाता है।

छिपी हुई बेरोज़गारी -
  • छिपी हुई बेरोज़गारी अल्प बेरोज़गारी का एक विशेष रूप हे। किसी उत्पादन कार्य में से कुछ श्रमिक को हटा देने पर भी जब उत्पादकता यथावत बनी रहती है, तो इसे छिपी हुई या अदृश्य बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • ऐसे श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य होती है। इस प्रकार की बेरोज़गारी कृषि क्षेत्र में प्रमुख रूप से पायी जाती है।

मौसमी बेरोज़गारी - 
  • मौसमी बेरोज़गारी के जन्म का कारण प्राकृतिक जलवायु तथा मौसम संबंधी कारण है। मौसमी बेरोज़गारी से आशय कु अवधियों में उत्पादन कार्य के ना होने के कारण श्रमिकों के कार्य से हटने से है। 
  • मौसमी बेरोज़गारी मुख्यतः कृषि और कृषि पर आधारित उद्योगों में पायी जाती है।

घर्षणात्मक बेरोज़गारी -
  • इस प्रकार की बेरोज़गारी के उत्पन्न होने का कारण अर्थव्यवस्था विशेषतः श्रम बाजार में निरंतर परिवर्तन का न होना तथा बदली हुई परिस्थितियों में उनका तात्कालिक समायोजन का न होना है।
  • श्रमिकों के एक उत्पादन क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने पर कई प्रकार की कठिनाइयां - व्यावसायिक, भौगोलिक, स्थान तथा भाषा संबंधी आती है। अतः नये उत्पादन क्षेत्र में वे अपने को जब तक समायोजित नहीं कर लेते, तब तक वे बेरोजगार रहते हैं। जिसे घर्षणात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है। इसकी प्रकृति अल्पावधि होती है।

संरचनात्मक बेरोज़गारी -
  • किसी अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन के कारण बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न होती है, तो इसको संरचनात्मक बेरोज़गारी की संज्ञा दी जाती है।
  • जब किसी देश के निर्यात व्यापार में कमी अथवा गिरावट होती है, तो यह स्थिति संरचनात्मक परिवर्तन की होती है। इसके फलस्वरूप निर्यात उद्योगों में उत्पन्न बेरोज़गारी संरचनात्मक बेरोज़गारी कहलाती है। 

चक्रीय बेरोज़गारी - 
  • आर्थिक क्रियाओं में उतार-चढ़ाव के कारण जनित या उत्पन्न बेरोज़गारी चक्रीय बेरोज़गारी कहलाती है। चक्रीय बेरोज़गारी में आर्थिक विकास की विभिन्न दशाएं सम्मिलित होती हैं। 
  • अर्थव्यवस्था में जब मंदी की स्थिति आती है, तो चक्रीय बेरोज़गारी बढ़ जाती है। चक्रीय क्रम में आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ यह बेरोज़गारी स्वतः समाप्त हो जाती है।

संगठित क्षेत्र में रोजगार की वृद्धि दर (प्रतिशत)

  • क्षेत्र 1993-94
  • सार्वजनिक 1.53
  • निजी 0.44


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