साइनोबैक्टीरिया: नीलहरित शैवाल


  • संरचना के आधार पर इनकी कोशिकाओं की मूलभूत रचना शैवालों की अपेक्षा जीवाणुओं से अधिक समानता रखती है।
  • साइनोबैक्टीरिया साधारणतः प्रकाश संश्लेषी जीवधारी होते हैं। इन्हें पृथ्वी का सफलतम जीवधारियों का समूह माना जाता है।
  • ये विश्व के उन सभी स्थलों पर पाये जाते हैं, जहां ऑक्सीजन उत्पादक प्रकाश संश्लेषी जीवधारी निवास कर सकते हैं, जैसे - सामान्य जल, समुद्री जल, नम चट्टान, मिट्टी आदि।
  • लाल सागर का लाल रंग ट्राइकोडेस्थियम एरीथ्रियम नामक साइनोबैक्टीरिया के कारण दिखाई देता है, क्योंकि ये इस सागर में प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
  • कुछ साइनोबैक्टीरिया मिट्टी में रहकर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं, जिसे मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि होती है। जैसे - नॉस्टॉक
  • साइनोबैक्टीरिया अपना भोजन स्वयं प्रकाश संश्लेषण द्वारा बना लेते हैं। अधिकांश साइनोबैक्टीरिया नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भी करते हैं। इन कारणों से इन्हें अत्यधिक आत्मनिर्भर स्वपोषी माना जाता है।
  • साइनोबैक्टीरिया का लैंगिक प्रजनन नहीं होता। खंडन द्वारा इनका विकास होता है।
  • ऐसा माना जाता है कि साइनोबैक्टीरिया सर्वप्रथम ऑक्सीजनक प्रकाश संश्लेषी जीवधारी थे, इसलिए यह भी समझा जाता है कि इनकी क्रियाओं के फलस्वरूप ही पृथ्वी वायुवीय हो पायी। अतः वायुमंडल के निर्माण का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है। 
  • अनेक साइनोबैक्टीरिया जैसे ऑसिलेटोरिया, स्पाईरूलिना, एनाबिना इत्यादि मछलियों व अन्य जलीय जंतुओं के लिए भोजन का कार्य करते हैं, जिससे जीवों को प्रोटीन की आपूर्ति होती है।
  • साइनोबैक्टीरिया कवक से लेकर साइकस तक अनेक जीवधारियों के साथ सहजीवी के रूप में रहते हैं।
  • उपरोक्त के अलावा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में योगदान देने वाले साइनोबैक्टीरिया एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, क्लोस्ट्रीडियम, नॉस्टॉक आदि हैं।
  • सहजीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले साइनोबैक्टीरिया राइजोबियम, बैड़ी राइजोबियम।
  • चर्म उद्योग में चमड़े से बालों और वसा को हटाने का कार्य जीवाणुओं द्वारा होता है। इसे चमड़ा कमाना (Tanning) कहते हैं।
  • सन, जूट, पटसन इत्यादि रेशे प्राप्त करने के लिए जीवाणुओं को उपयोग में लाया जाता है। इस क्रिया को रैटिंग Ratting कहते हैं।
  • शीत संग्रहागार के तापमान (- 10 डिग्री से. से - 18 डिग्री से.) पर जीवाणुओं की वृद्धि तथा उपापचयी क्रियाएं कम हेा जाने से ये निष्क्रिय हो जाते हैं और सामग्री जल्दी नष्ट नहीं होती।


  • दूध को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए इसका पाश्चुरीकरण करते हैं। इसकी दो विधियां हैं:-


  1. Low Temperature Holding Method : दूध को 62.8 डिग्री सेल्सियस पर 30 मिनट तक गर्म करते हैं।
  2. High Temperature Short Time Method : दूध को 71.7 डिग्री से. पर 15 सेकेंड तक गर्म करते हैं।


  • अचार, मुरब्बे आदि में गाढ़ी चासनी या अधिक नमक रखते हैं, ताकि जीवाणुओं का संक्रमण होते ही जीवाणुओं का जीवद्रव्य संकुचित हो जाये तथा जीवाणु नष्ट हो जायें। इसलिए अचार, मुरब्बा आदि लंबी अवधि तक खराब नहीं होते।
  • डेलोविब्रियो बैक्टीरियोबोरस नामक जीवाणु अन्य जीवाणुओं को खा जाता है, इसलिए गंगा का जल शुद्ध रहता है। 
  • रॉबर्ट कॉक ने जीवाणुओं का संवर्धन करने के लिए विधि विकसित की। ऐसा माना जाता है कि जीवाणु कार्बानाइल नामक ऑक्सीजन युक्त यौगिक बनाते हैं, जो कि ओजोन के निर्माण के लिए उत्तरदायी है।


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