संन्यासी विद्रोह

संन्यासी विद्रोह

  • कृषक आंदोलनों का कारण ब्रिटिशों की भू-नीतियाँ एवं राजस्व की दमनात्मक वसूली आदि थी।
  • यद्यपि अधिकांश विद्रोहों का पुलिस तथा सेना की मदद से दमन किया गया, परंतु भारतीय किसानों ने विभिन्न स्थानों पर अपना प्रतिरोध दर्ज कराया।
  • जनजातीय विद्रोह का कारण उनके परंपरागत अधिकारों का हनन था।
  • आदिवासियों का वन पर परंपरागत अधिकार था परंतु सरकार ने वन नीति के तहत उसे सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया।
  • आबकारी कर, नमक कर जैसे करों की दमनकारी वसूली भी इन विद्रोहों का कारण बनी। ईसाई धर्म प्रचारकों ने भारतीय संस्कृति पर प्रहार किया।
प्रमुख जन विद्रोह
संन्यासी विद्रोह (बंगाल, 1770-1820)
  • इस आंदोलन का प्रमुख कारण अत्यधिक शोषण, अकालों की निरंतरता, अंग्रेजों की लूटखसोट, आर्थिक मंदी व राजनैतिक अशांति एवं तात्कालिक कारण अंग्रेजों द्वारा हिंदू व मुस्लिम तीर्थ स्थानों की यात्रा पर लगाया गया प्रतिबंध था।
  • संन्यासी प्रभाव क्षेत्रा ढाका, रंगपुर तथा मैमनपुर थे।
  • इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता मजनू शाह एवं देवी चौधरानी थे।
  • 1770 के अकाल के बाद तो इतना तीव्रगामी विद्रोह किया गया कि 1773 में विद्रोहियों ने समानांतर सरकार बना ली।
  • बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखित उपन्यास ‘आनंदमठ’ का कथानक संन्यासी विद्रोह पर आधरित है।
  • संन्यासी विद्रोह को दबाने का श्रेय ‘वारेन हेस्टिंग्स’ को दिया जाता है।
फकीर विद्रोह, बंगाल, 1776-77
  • यह एक धार्मिक विद्रोह था, जो घुमक्कड़ मुसलमान फकीरों के गुट द्वारा किया गया था।
  • इस विद्रोह के नेता मजनूमशाह ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह करते हुए जमींदारों और किसानों से धन की वसूली की।
  • मजनूमशाह की मृत्यु के पश्चात् आंदोलन की बागडोर चिरागअली शाह ने सँभाली। राजपूत, पठान एवं सेना के भूतपूर्व सैनिकों ने आंदोलन को सहयोग प्रदान किया।
  • भवानी पाठक व देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने इस आंदोलन की सहायता की।
  • कालांतर में इस आंदोलन के समर्थकों ने हिंसक गतिविधियाँ प्रारंभ कर दीं, जो अंग्रेजी फैक्ट्रियों एवं सैनिक साजो-सामान पर केंद्रित थीं।
  • 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक अंग्रेजी सेनाओं ने आंदोलन को कठोरतापूर्वक दबा दिया।
पाइक विद्रोह 1817-1825
  • यह विद्रोह उड़ीसा की ‘पाइक’ जाति द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह ओडिशा के खुर्दा जिले से शुरू हुआ।
  • बक्शी जगबंधु विद्याधर के नेतृत्व में इस विद्रोह को अंजाम दिया गया जो कि खुर्दा के राजा के सैन्य कमांडर थे।
  • पाइक जाति को परंपरागत रूप से खुर्दा के राजा द्वारा सैन्य गतिविधियों के लिये कर मुक्त भूमि का आवंटन किया जाता था। अंग्रेजों ने इस पर रोक लगा दी। अन्य कारणों में भारतीयों से अंग्रेजों द्वारा जबरन वसूली और उत्पीड़न भी शामिल रहा, जिससे यह आंदोलन आक्रोशित हो उठा।
  • 1825 तक इस आंदोलन का पूर्णतः दमन कर दिया गया।
अहोम विद्रोह 1828-1833
असम
  • 1824 में बर्मा-युद्ध के बाद अंग्रेजों ने उत्तरी असम पर अधिकार कर लिया था, जिसे असम के अहोम-वंश के उत्तराधिकारियों ने नापसंद किया और ईस्ट इंडिया कंपनी से असम छोड़कर चले जाने को कहा, परिणामस्वरूप विद्रोह फूट पड़ा।
  • 1828 से 1830 तक अहोमों ने गोमधर कुंवर के नेतृत्व में कंपनी के विरुद्ध विद्रोह किया, परंतु विद्रोह सफल न हो सका। अंग्रेज अधिकारियों ने गोमधर कुंवर को गिरफ्तार कर अंततः विद्रोह को दबा दिया।
  • 1830 में अहोमों ने कुमार रूपचंद के नेतृत्व में दूसरे विद्रोह की योजना बनाई, परंतु इससे पहले विद्रोह होता, कंपनी ने शांति की नीति अपनाते हुए 1833 में उत्तरी असम के प्रदेश महाराज पुरंदर सिंह को दे दिये। इस तरह अहोम विद्रोह शांत हो गया।

फराजी/फरैजी विद्रोह 1838-1857 बंगाल

  • फरैजी विद्रोह का सूत्रपात शरीयतुल्ला द्वारा बंगाल में किया गया। इसका प्रचार-प्रसार शरीयतुल्ला के पुत्र मोहम्मद मोहसिन (दादू मियाँ) ने किया।

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