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Showing posts from February, 2019

किसान कब होंगे ऋण मुक्त

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भारत में इन दिनों चुनावों में सबसे ज्यादा चर्चित कोई मुद्दा है तो वह किसानों की ऋण माफी। समझ नहीं आता आखिर यह मुद्दा केवल चुनावी वादा है या वास्तविक अर्थों में किसानों के ऋण माफी। आखिर पिछली यूपीए सरकार के समय से यही किस्सा देखने व सुनने में आ रहा है। उस समय किसानों के कर्ज के 64 हजार करोड़ माफ किये गये थे और वर्तमान केन्द्र सरकार भी हर साल बजट में हजारों करोड़ों रुपये किसानों के कर्ज के माफ करती है। फिर भी किसानों के कर्ज माफ नहीं होते हैं और कई किसान इस कर्ज माफी में आत्महत्या तक कर चुके हैं।  आखिर किस किसान के कर्ज माफ हो रहे हैं?  यह किसानों के नाम पर भुलभूलैया खेल है। जो चुनावों के समय राजनीतिक दलों के लिए बांये हाथ का खेल है। हां, इसमें राजनीतिक दलों को दोहरे लाभ होते हैं। किसान भी बंट गया है राजनीतिक दलों के साथ जो वादों के साथ सही व्यक्तित्व के चयन को नदारद कर देते हैं।  उन्हें लगता है कि हर किसान का कर्ज माफ होगा, पर किसान के नाम पर किसान छला जाता है क्यों?  अजी आप नहीं जानते?  पर शायद इन राजनीतिक पार्टियों को पता है कि किसान कर्ज माफी ...

RAS Main हल प्रश्न

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आर्य समाज की स्थापना किसने की? इसका लक्ष्य क्या था? आईएएस, 2000 आर्य समाज की स्थापना 1875 ई. में स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुंबई में की थी। तीन वर्ष बाद लाहौर में इसके मुख्यालय की स्थापना की गई। आर्य समाज के तीन प्रमुख उद्देश्य थे- पहला, यह वेदों के मूल विचार को पुनर्जीवित करना चाहता था।  दूसरा, यह समकालीन भारतीयों को देश के वैदिक अतीत के गौरवमय आदर्शों से प्रेरित करना चाहता था।  तीसरा, यह ईसाई मिशनरियों के अतिक्रमण के विरुद्ध भारत के लोगों को अपनी संस्कृति के मूलाधार पर संगठित करना चाहता था।  इन उद्देश्यों के साथ आर्य समाज शीघ्र ही शराब पीने, जात-पांत, मूर्तिपूजा और बाल-विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध खड़ा हो गया। इसके अतिरिक्त, इसने नारी शिक्षा, विधवा-पुनर्विवाह और सभी प्रकार के लोकोपकारी कार्यों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया। स्वामी दयानंद ने गैर हिन्दुओं को हिन्दू धर्म में परिवर्तित करने के लिए एक ‘शुद्धि आंदोलन’ भी चलाया। परंतु आर्य समाज ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान शिक्षा के क्षेत्र में किया।  वैदिक आदर्शों पर आधारित बड़ी संख्या में गुर...

राजस्थान में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण

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राजस्थान में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण  सिर पर पहने जाने वाले आभूषण: रखड़ी, शीशफूल, मेमन्द, बोर, बोरला, टीका, सरी या नली, गेड़ी सिर पर बांधें जाने वाले आभूषणों को चूडा रत्न कहा जाता है। माथे के आभूषण: फीणी, मांग टीका, साकंली, दामिनी, तावित, टिकड़ो, टीड़ी भल्लको नाक में पहने जाने वाले आभूषण:  लौंग, लटकन, नथ, चूनी, चोप, बुलाक, फीणीं, झालरा, बारी/बाली, कुडक, कांटा। कान में पहने जाने वाले आभूषण: झुमका, बाली, टॉप्स, मुरकिया, लोंग, कर्णफूल, पत्ती, सुरलिया, पीपल पत्रा, अंगोट्या, झेला, लटकन, जमेला, फूल झुमका, टोटी (टीडी)। बाली को जालौर-भीनमाल में ‘बेडला’ कहते हैं। गला में पहने जाने वाले आभूषण: सुरलिया हार, कण्ठी मटमाला, ठुस्सी, झालर, जंजीर, हंसली, पंचलड़ी, तिमणीयां, चंदन हार, चम्पा, कली, मोद्यरन, मंडली, मोहन माला, होलरो, खंगाली, गुलीबन्द, जंतर, रानीहार, जुगावली, मांदलिया, कंठमाला, मोहनमाला, हालरो, तुलसी, बजट्टी, पोत, चन्द्रहार, सरी, बलेवड़ा, निम्बोरी। छोटे बच्चों को हांसली पहनाने से उनकी हंसली डिगने का डर नहीं रहता है। बाजू: बाजूबन्द, ठड्डा, त...

फड़ क्या है

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लोककला फड़ चित्रण (पेंटिंग) उपलब्ध साक्ष्यों के मुताबिक फड़ चित्रण का उदय मेवाड़ राज्य में 700 वर्ष पूर्व माना जाता है।  कपड़े परर प्रचलित लोक गाथाओं का चित्रण को पुरातन पट्ट चित्रण कहते हैं। इस पुरातन पट्ट चित्रण को राजस्थानी भाषा में फड़ कहते हैं। फड़ चित्रण में एक साथ लोक नाट्य, गायन, वादन, मौखिक साहित्य, चित्रकला तथा लोकधर्म का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। फड़ चित्रण के माध्यम से किसी लोक देवताओं व लोक नायकों की कथा जो उनके के जीवन में घटित घटनाओं हुईं, को चित्रित किया जाता है। जिनमें प्रमुख है - पाबूजी, रामदेवजी, देवनारायणजी, भगवान कृष्ण एवं दुर्गा माता। फड़ की लम्बाई अधिक और चौड़ाई कम होती है। फड़ का वाचन भोपे करते हैं। फड़ ठण्डी करना - जब फड़ फट जाती है या जीर्णशीर्ण हो जाती है तो उसे पुष्कर झील में विसर्जित कर देने की क्रिया है। भीलवाड़ा जिले का शाहपुरा फड़ चित्रण के लिए विश्व प्रसिद्ध है। श्रीलाल जोशी ने इस कला को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याती दिलवाई है। श्री दुर्गालाल को 1967 में व शांतिलाल को 1993 में राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। पाबूजी ...

Qureka खेलो और कैश जीतो

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दोस्तों, आज मैं आपको ऐसी जानकारी देने जा रहा हूं जो आपके सामान्य अध्ययन (SSC, BANK, Railway, RPSC, UPSC Exam) को बढ़ायेगी, साथ ही आपको कुछ आर्थिक मदद भी मिलेगी। यह जानकारी मैं आपको शेयर कर रहा हूं ताकि आप भी अपनी प्रतिभा को परख सके। इसके पीछे मेरा कोई स्वार्थ नहीं है। यह मोबाइल पर उपलब्ध लाइव खेल है जो आपको 10 से 15 मिनट में कुछ राशि जीतने में मदद करेगा, साथ ही आपके GK को बढ़ाकर एक सफल अभ्यर्थी बना सकता है।  ये एप आपको कौन बनेगा करोड़पति की तरह करोड़पति तो नहीं बना पायेंगे किन्तु आपको कुछ पैसे जीता अवश्य देगा यदि आपने सभी 11 या 12 सवालों के सही जबाव दिया तो। इसके लिए आपके पास एक स्मार्ट मोबाइल होना आवश्यक है। जिसमें आपकों कुछ लाइव खेल अपलोड करना है और पूछे सभी प्रश्नों के जबाव सही देना है। यदि आपने पूरे प्रश्नों के सही जबाव दिया तो इनामी राशि में से जो हिस्सा आपका है वह या तो पेटीएम में ट्रांसफर हो जाते है। दोस्तों, आप यदि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हो तो अच्छी बात है कि आप सफल बनों।  पर अक्सर आज के समय में पैसा सफलता में बड़ी भूमिका निभाता है। जी हां, दोस्तों म...

भूपेन हजारिका

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लोक संगीत के जादूगर मशहूर गायक भूपेन हजारिका का जन्म 8 सितम्बर, 1926 ई. को असम के सादिया में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने अपना पहला गीत लिखा और उसे गाया भी। तक उनकी उम्र महज 10 साल थी। हजारिका ने करीब 13 साल की आयु में तेजपुर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई के लिए वे गुवाहाटी गये। वर्ष 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। वर्ष 1946 में हजारिका ने बीएचयू से राजनीति विज्ञान में बी.ए. और एम.ए. किया। इसके बाद पढ़ाई के लिए वे विदेश गये। न्यूयार्क स्थित कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने पीएचडी (जनसंचार) की डिग्री प्राप्त की। उन्हें सिनेमा के माध्यम से शैक्षणिक प्रोजेक्ट का विकास शिक्षा में प्रयोग करने के लिए शिकागो विश्वविद्यालय से लिस्ले फेलोशिप भी मिली थी। अमेरिका में रहने के दौरान हजारिका जाने-माने अश्वेत गायक पॉल रोबसन के संपर्क में आये, जिनके गाने ‘ओल्ड मैन रिवर’ को हिंदी में ‘ओ गंगा तू बहती हो क्यों’ का रूप दिया गया, जो वामपंथी कार्यकर्ताओं की कई पीढ़ियों के लिए एक तरह से राष्ट्रीय गान रहा। उन्होंने अपने गायन का श्रेय आदिवासी संगीत को दिया था। स्व...

राजस्थान के प्रमुख किसान आन्दोलन

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दूधवाखारा किसान आंदोलन 1944 ई. में जागीरदारों ने बकाया राशि के भुगतान का बहाना कर अनेक किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया। बीकानेर प्रजा परिषद ने हनुमानसिंह के नेतृत्व में किसान आन्दोलन का समर्थन किया। कांगड़ काण्ड बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास की अन्तिम महत्त्वपूर्ण घटना कांगड काण्ड थी। यह आन्दोलन जागीरदारों के अत्याचारों से उपजा स्वस्फूर्त किसान आंदोलन था। 1946 में खरीफ फसल नष्ट होने के कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। 30 मार्च, 1949 को बीकानेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही बीकानेर में राजतंत्र व सामन्तवाद को अन्तिम रूप से विदा कर दिया। जिसमें किसान आंदोलन की निर्णायक भूमिका थी। सीकर किसान आन्दोलन वर्षा न होने पर सामंत कल्याण सिंह ने 25 प्रतिशत कर वृद्धि की व कठोरता से वसूली की। खूडीगांव व कूदन गांव में वैब द्वारा नरसंहार रामनारायण चौधरी ने ‘तरुण राजस्थान’ पत्र में उनके प्रयासों से मई 1925 ई. में इंग्लैण्ड के ‘हाऊस ऑफ कॉमन्स’ में सदस्य मि. पैट्रिक लारेन्स ने सीकर के किसानों के मामले में प्रश्न पूछा। 1931 ई. में सीकर के जाटों ने ‘राजस्थान जाट क...