किसान कब होंगे ऋण मुक्त



  • भारत में इन दिनों चुनावों में सबसे ज्यादा चर्चित कोई मुद्दा है तो वह किसानों की ऋण माफी। समझ नहीं आता आखिर यह मुद्दा केवल चुनावी वादा है या वास्तविक अर्थों में किसानों के ऋण माफी। आखिर पिछली यूपीए सरकार के समय से यही किस्सा देखने व सुनने में आ रहा है। उस समय किसानों के कर्ज के 64 हजार करोड़ माफ किये गये थे और वर्तमान केन्द्र सरकार भी हर साल बजट में हजारों करोड़ों रुपये किसानों के कर्ज के माफ करती है। फिर भी किसानों के कर्ज माफ नहीं होते हैं और कई किसान इस कर्ज माफी में आत्महत्या तक कर चुके हैं। 
  • आखिर किस किसान के कर्ज माफ हो रहे हैं? 
  • यह किसानों के नाम पर भुलभूलैया खेल है। जो चुनावों के समय राजनीतिक दलों के लिए बांये हाथ का खेल है। हां, इसमें राजनीतिक दलों को दोहरे लाभ होते हैं। किसान भी बंट गया है राजनीतिक दलों के साथ जो वादों के साथ सही व्यक्तित्व के चयन को नदारद कर देते हैं। 
  • उन्हें लगता है कि हर किसान का कर्ज माफ होगा, पर किसान के नाम पर किसान छला जाता है क्यों? 
  • अजी आप नहीं जानते? 
  • पर शायद इन राजनीतिक पार्टियों को पता है कि किसान कर्ज माफी के नाम पर वादा कर दो और स्टार लगाकर टर्म एण्ड कंडीशन लगा दो। फिर देखों जीत आपकी ही होगी, क्योंकि किसान है वोट देगा, हम जीतेंगे और फिर कहेंगे हमारी कंडीशन आपने ढंग से पढ़ा नहीं, जनाब।

  • कोई नेक आदमी किये गये वादा पूरा करने के लिए कहेगा तो उसे बहला-फुसलाकर समझायेंगे। 
  • अजी कर तो रहे हैं हम कर्ज माफ, 
  • अरे विज्ञापन नहीं देखा क्या, किसी कम्पनी का। उसमें बड़ी छूट दी होती है पर साथ में एक स्टार भी तो लगा होता है, उस पर कौन गौर करता है, हमने भी ऐसा ही किया है। 
  • किसान जी आपने पढ़ा नहीं, और ठीक से सुना नहीं हमने कुछ कंडीशन दी थी। 
  • अब हम सत्ता में आये हैं बस कुछ ही दिनों में कर्ज माफी किये देते हैं। लेकिन हमारी कंडीशन जरूर पढ़ लेना कर्ज माफ उसी का होगा जो निम्नलिखित शर्तें पूरी करता हो। 
  • हां जो किसान इस दायरे से बाहर है वह किसान नहीं है। वे पूंजीपति है।
  • तो हमारी कंडीशन वाले किसान निम्नलिखित हैं -
  1. वे किसान जिन्होंने केवल सहकारी बैंकों से ही ऋण लिये हैं, वे इसके पात्र होंगे।
  • जब किसानों के केवल सहकारी बैंकों के ही ऋण माफ करने हैं तो फिर इतना बड़ा ढोल क्यों पिट रहे हो। हम किसानों पूरा कर्जा माफ करेंगे। फिर पूरे किसान समुदाय को क्यों भ्रमित किया जाता है।
  • किसान सच्चे अर्थों में भोले हैं और कुछ बहुत ही ज्यादा तेज, जो गांवों में अपना वर्चस्व स्थापित कर चुके हैं। गांव के सचिव (सेक्रेटरी) से क्या खूब पटती है?
  • याराना अंदाज है एक साथ पार्टी करते हैं। 
  • कारण है कुछ लोग गांव के सबसे ताकतवर, पैसेवाले और नकारात्मक महत्त्वाकांक्षा वाला व्यक्तित्व है। वे अपने काम पैसे देकर करवाने में विश्वास करते हैं और यदि माने नहीं तो ताकत के जोर से करवा लेते हैं। 
  • अजी हम किसी पे इल्जाम नहीं लगा रहे हैं हम तो बता रहे हैं उन लोगों की बातें जो अक्सर कहते पाये गये हैं कि सरकारी वेतन से तो केवल पेट पलता है। पर ओर भी तो अय्यासी के खर्चे हैं जो पूरा नहीं कर पाती क्या जिन्दगी भर पैर रगडूंगा क्या? क्या किराये के मकान में ही जिन्दगी काट दूंगा क्या?
  • पता है इस सांठगांठ से वे शातिर किसान केसीसी लेकर नया साहूकार बन जाता है और उन पैसों को किसानों को 2 रुपये सैकड़े ब्याज पर उधार देता है और कई तो उससे भी अधिक में।
  • जी हां, यह सच है। वे किसान जो जरूरतमंद हैं व उन्हें कर्ज की जरूरत है उन्हें सहकारी बैंकों से पैसा नहीं मिलता है और किसी दूसरी बैंकों से केसीसी बनवाते हैं जिस पर उन्हें कई लोगों को पैसा खिलाना पड़ता है। नहीं तो वे नये साहूकारों की कुचालों के चंगुल में फंस जाते हैं और कभी किसान कर्ज माफी का फायदा नहीं ले पाते हैं। 
  • दूसरे वे किसान जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत होती पर, जानकारी के अभाव व भ्रष्टाचार के चलते गांव के सहकारी बैंकों से कर्ज नहीं ले पाते हैं और यदि मिले तो उसे पैसे खिलाने पड़ते हैं जोकि उसके लिए तो कोई फायदा नहीं होता। 
  • ऐसे में ज्यादा जमीन होने के बाद भी वे फसल के बर्बाद होने, बेटे-बेटियों की पढ़ाई एवं विवाह खर्च में कर्ज तले दब जाते हैं और सहकारी के अलावा किसी अन्य बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है। उन किसानों के लिए सरकारों के कर्ज माफी व किसी राजनीतिक पार्टी के कर्ज माफी से कोई लाभ नहीं मिलता है। 
  • किसान ऋण माफी के नाम पर छलावा है कितने वर्ष हो गये पर अभी तक किसान ऋण मुक्त नहीं हुए, आखिर क्यों?
  • क्या हमारे किसानों को अपनी आय के सही दाम नहीं मिलते?
  • क्या हर वर्ष बीमा कराने वाले किसानों की फसल बर्बाद का क्लेम सही अर्थों में नहीं मिलता?
  • या वे इस बीमा की शर्तों को समझ नहीं पा रहे हैं?
  • क्या यह एक राजनीतिक प्रपंच है?
  • क्या किसानों को भी व्यापारी वर्ग की तरह अपनी पूरी मेहनत व खर्च जोड़कर अपनी फसल के दाम लेने चाहिए?
  • क्या परिवार के जितने सदस्य है उनका मेहनताना मिलना चाहिए?
  • क्या सरकारें उच्च आय वर्ग वाले किसानों को अपने से कमजोर किसान को सरकारी लाभों के प्रति जागरूक करने की अपील करनी चाहिए?
  • आखिर उन किसानों के कर्ज माफ क्यों नहीं होते जिन्होंने अन्य बैंकों से कर्ज लिया है, क्या वे किसान नहीं है?
  • जमीन ज्यादा हो पर पैदा नहीं होती कारण कभी बारिश न होना, ओलावृष्टि से फसल बर्बाद होना व बेटे-बेटियों की पढ़ाई आदि खर्च अधिक होना भी मध्यम किसान के लिए कर्ज को दावत देता है।
  • ये सच्चाई है सरकारें दावा करती थी, करती है और करती रहेगी पर किसान उपेक्षित होते रहेंगे, कभी राजनीतिक स्वार्थों के चलते तो कभी प्राकृतिक आपदा के चलते।
  • पिछले दस सालों में एक नहीं कितने ही किसान परिवार हैं जिनका कर्ज का 1 रुपया माफ नहीं हुआ, जब ब्याज नहीं जमा हुआ तो कई नोटिस आये आखिर हार कर किसी नव साहूकार से कर्ज लेकर बैंक को पैसे जमा करवाये, इन्हीं राजनीतिक पार्टियों के वादे के बाद जो कहते हैं 10 दिन में कर्ज माफ कर देंगे।
  • दोष राजतंत्र को क्यों देते हो, साब? वो उसमें भी मानव थे और आज लोकतंत्र में भी वही स्वार्थी व महत्त्वाकांक्षी मानव है जो केवल अपने निजी स्वार्थों को सर्वोपरि मानता था और मानता है। 
  • देख लो साब, हर साल हजारों की संख्या में अधिकारी रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं। पता है कौन है वे लोकतंत्र का पाठ पढ़ने वाले और लोकतंत्र के प्रहरी, जो सिर्फ जनता तक उसका हक नहीं पहुंचने देता है। 


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